Sunday, February 9, 2014

क्या आप जानते हैं कि देश में किन्नरों की ठीक संख्या क्या है!

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नई दिल्ली: विकास के लाख दावों के बावजूद भारतीय समाज आज भी स्त्री और पुरूष के परंपरागत दायरे में इस कदर बंधा हुआ है कि ट्रांसजेंडर और किन्नर को स्वीकार नहीं कर पाया है और सरकार के पास इनकी सही संख्या के बारे में आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं.


आरटीआई के तहत सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार, 'मंत्रालय के पास यह सूचना (जनसंख्या के बारे में) उपलब्ध नहीं है. भारत के महापंजीयक के पास यह सूचना हो सकती है.'
मंत्रालय ने कहा, 'कैबिनेट सचिवालय ने हाल ही में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय को ट्रांसजेंडरों की समस्याओं से निपटने का दायित्व सौंपा. मंत्रालय ने 22 अक्तूबर 2013 को ट्रांसजेंडर समुदाय की समस्याओं को देखने के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया. समिति जल्द ही अपनी रिपोर्ट पेश करेगी.'

सूचना के अधिकार के तहत लखनउ स्थित आरटीआई कार्यकर्ता संजय शर्मा ने इस बारे में प्रधानमंत्री कार्यालय और सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय से जानकारी मांगी थी. मंत्रालय के एक अधिकारी ने 'भाषा' से कहा कि इस समिति की दो बैठकें हुई हैं और विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई.

किन्नर और समुदाय से जुड़ी कार्यकर्ता दुलारी ने कहा कि हमारा समुदाय शताब्दियों से है . धर्म में हमें स्वीकार किया गया है, संस्कृति में हम स्वीकार्य हैं लेकिन फिर भी हमें बुनियादी संवैधानिक अधिकारों से वंचित किया गया है.

उन्होंने कहा कि दूसरी बातों को छोड़ भी दें तब भी हम सम्मान के साथ जीने का अधिकार चाहते हैं.

उन्होंने सवाल किया, 'क्यों नौकरियां केवल पुरूषों और महिलाओं के लिए हैं. देश के किसी भी नागरिक को नौकरी के लिए आवेदन करने का अधिकार होना चाहिए. शैक्षणिक संस्थाओं में ट्रांसजेंडरों को क्यों छोड़ दिया गया ?' शिक्षा के अधिकार कानून में हालांकि सभी बच्चों को शिक्षा पाने का अधिकार अधिकार है . जारी
 
कुछ समय पहले राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण ने एक सामाजिक न्याय वाद तैयार किया था. उच्चतम न्यायालय में ट्रांसजेंडरों और किन्नरों के कानूनी पहचान के बारे में शीर्ष अदालत में याचिका दायर की गई थी. ट्रांसजेंडरों एवं किन्नरों की स्थिति पर उठ रही चिंताओं के मद्देनजर पहली बार 23 अगस्त 2013 को राष्ट्रीय विचार विमर्श बैठक का आयोजन किया गया था. पहली बार देश में योजना आयोग ने 12वीं पंचवर्षीय योजना में ट्रांसजेंडरों के मुद्दों का उल्लेख किया है.

सामाजिक कार्यकर्ता अंजली गोपालन ने कहा कि प्राचीन काल से इस समुदाय के लोगों का उल्लेख मिलता है. अंग्रेजों के शासनकाल में दशा में काफी बदलाव आया और एक ऐसा कानून बना जिसमें स्वाभाविक और अस्वाभाविक की अलग परिभाषा सामने आई. इस कानून ने इनकी स्थिति को बदतर करने का काम किया.

अक्तूबर 2013 में उच्चतम न्यायालय में न्यायमूर्ति के राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति ए के सिकरी की पीठ ने कहा था कि किन्नर समाज आज भी अछूत बने हुए हैं और आम तौर पर स्कूलों एवं शिक्षण संस्थाओ में दाखिला नहीं मिल पाता. उनके लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है.

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