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भारत या इंडिया...? बड़ा सवाल
Last Updated on 13 October 2012
अतुल श्रीवास्तव
सवाल बड़ा महत्वपूर्ण है। बरसों से लोगों के जेहन में यह सवाल कौंधता
जरूर रहा होगा, लेकिन किसी ने अपनी जिज्ञासा को शांत करने की कोशिश नहीं
की और अब जब एक सामाजिक कार्यकर्ता ने ऐसी कोशिश की है, सरकार के माथे पर
पसीने निकल आए हैं। किसी भी शब्द का हिंदी और अंग्रेजी उच्चारण अलग अलग
होता है, लेकिन देश के मामले में ऐसा नहीं होता (भारत को छोड़कर), और जब
सूचना के अधिकार के तहत इस तरह का सवाल पूछा गया है तो जवाब देते नहीं बन
रहा है। भारत कहें या हिंदूस्तान, इस पर बहस हो सकती है पर भारत और
इंडिया, हिंदी और अंग्रेजी में इस तरह का नामकरण प्रचलन में है, इसे लेकर
सरकार के पास किसी तरह की जानकारी न होना आश्चर्यजनक है।
लखनऊ की एक सामाजिक कार्यकर्ता उर्वशी शर्मा ने सरकार से यह सवाल पूछकर
उसे मुश्किल में डाल दिया है। शर्मा कहती हैं कि इसे लेकर उनके सामने
असमंजस की तब पैदा हो जाती है जब बच्चे उनसे पूछते हैं कि जापान का एक
नाम है, चीन का एक नाम है, अमेरिका का एक नाम है और दुनिया के तमाम देशों
का हिंदी और अंग्रेजी में एक नाम है तो फिर हमारे देश को हिंदी में भारत
और अंग्रेजी में इंडिया क्यों कहा जाता है? अब उर्वशी का सवाल भारत सरकार
के मंत्रालयों और विभागों का चक्कर काट रहा है लेकिन किसी के पास इसका
जवाब नहीं मिल रहा है। सूचना का अधिकार का यह आवेदन प्रधानमंत्री
कार्यालय में लगाया गया, जहां से आवेदनकर्ता को जवाब मिला कि उनका आवेदन
गृह मंत्रालय भेजा गया है। गृह मंत्रालय को जब कोई जवाब नहीं सूझा तो
आवेदन संस्कृति विभाग को भेज दिया गया। वहां से यह आवेदन राष्ट्रीय
अभिलेखागार भेजा गया है, जहां जानकारी खोजने का काम किया जा रहा है।
सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि सरकारी तौर पर इंडिया और भारत दोनों
शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है। बात सिर्फ आम बोलचाल तक सीमित नहीं है।
सरकारी तौर पर भारत सरकार और गवर्नमेंट ऑफ इंडिया भी कहा जाता है। भारतीय
संविधान की प्रस्तावना में भी लिखा हुआ है, इंडिया दैट इस भारत। यानि
भारत दुनिया का संभवत: इकलौता ऐसा देश है जिसके दो नाम प्रचलन में हैं।
हिंदी में भारत और अंग्रेजी में इंडिया। सरकारी भाषा में भी दोनों को चलन
में लिया गया है, इसी भ्रम को दूर करने के लिए लगाये गए सूचना के अधिकार
आवेदन पर सरकार को जवाब तैयार करने में मुश्किल हो रही है। वैसे यह
इकलौता सवाल नहीं है, जिसने सरकार को मुसीबत में डाला है। इसके अलावा भी
कई ऐसे सवाल हैं जिसने सरकार की बोलती बंद कर दी है। मसलन, देश में चल
रही मुद्रा में गांधी जी की तस्वीर लगाए जाने का आदेश हो या फिर गांधी जी
को राष्ट्रपिता का दर्जा दिए जाने का मसला हो। और भी कई सवाल हैं।
यदि वजह यह हो कि अंग्रेजों ने भारत पर शासन किया था और इस वजह से उन
लोगों ने अपनी सहुलियत के हिसाब से देश का एक अंग्रेजी नाम भी रखा था तो
सवाल यह उठता है कि अंग्रेजों के जाने के बाद भी देश अंग्रेजों के नाम को
क्यों ढो रहा है और यदि ऐसा है कि किसी का नाम हिंदी में कुछ और, और
अंग्रेजी में कुछ और हो सकता है तो यह अजूबा अपने देश के साथ ही क्यों और
क्यों देश में इतने सालों में सरकार का ध्यान इस पर नहीं गया? जो भी हो,
सूचना के अधिकार के इसी प्रकृति के कुछ आवेदनों ने एक बहस तो छेड़ ही दी
है।
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