उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति/जनजाति के बच्चों को तकनीकी शिक्षा देने के नाम पर करोड़ों रुपयों के घोटाले का मामला प्रकाश में आया है. लखनऊ में येश्वर्याज सेवा संस्थान की सचिव उर्वशी शर्मा ने पूर्ववर्ती मायावती सरकार के अधिकारियों पर आरोप लगाया है कि 1416 लाख की निर्गत धनराशि को दलित हितों की उपेक्षा कर बन्दरबांट कर लिया गया है. लखनऊ में मोहान रोड पर राजकीय गोविन्द बल्लभ पन्त पॉलीटेक्निक के निरीक्षण में संस्था की लैब एवं वर्कशाप को आधुनिक रुप से सुसज्जित करने के लिए दिए गए 164 लाख रुपये में 6 वाटर कूलर,18 एसी 1.5 टन और 70 कम्प्यूटर खरीदे गए हैं. वाटर कूलर जब से आये हैं, काम नहीं कर रहे हैं और ब्रांड और कम्पनी का पता नहीं है. संस्था में कम्प्यूटर ट्रेड नहीं है और 70 कम्प्यूटर खरीदे गए. जबकि लैब के लिए कोई सामान नहीं खरीदा गया है. पैटर्न वर्कशाप में भी कोई मशीन व उपकरण नहीं खरीदे गये हैं. रिपोर्ट बताती है कि मशीन वर्कशाप में पांच नई मशीनें खरीदी गई लेकिन स्टालेशन अभी तक नहीं कराया गया है. संस्थान के समस्त भवनों की मरम्मत के लिए 13 करोड़ का धनराशि उपलब्ध कराई गई थी, उसका भी समुचित उपयोग नहीं हुआ है. 2009 में प्राविधिक शिक्षा विभाग की उच्चस्तरीय तकनीकी समिति एवं संस्था के तकनीकी कार्मिकों द्वारा संस्था की लैब,वर्कशॉप आदि के तकनीकी अद्यतनीकरण हेतु नवीन उपकरण /मशीन/उपस्कर आदि क्रय कर पॉलीटेक्निक में स्थापित कराने हेतु प्रस्ताव उत्तर प्रदेश शासन को प्रेषित किया गया था. उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश शासन ने इस प्रस्ताव का मदवार अनुमोदन/अस्वीकृति कर रुपये 1416 लाख की धनराशि निर्गत की गयी. इस रुपये 1416 लाख की धनराशि का व्यय उत्तर प्रदेश शासन द्वारा पूर्व प्रेषित प्रस्ताव के मदवार अनुमोदन के अनुसार करने हेतु उत्तर प्रदेश शासन द्वारा मिश्री लाल पासवान निदेशक समाज कल्याण की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया था. इसमें सुरेन्द्र प्रसाद- सचिव प्राविधिक शिक्षा परिषद उत्तर प्रदेश, राजीव सिन्हा-अधिशाषी अभियंता समाज कल्याण निर्माण निगम लखनऊ एवं राजेश चन्द्रा-तत्कालीन प्रधानाचार्य राजकीय गोविन्द बल्लभ पन्त पॉलीटेक्निक समिति के सदस्य थे. इस समिति का कार्य उत्तर प्रदेश शासन द्वारा पूर्वानुमोदित सूची के अनुसार नवीन उपकरण /मशीन/उपस्कर आदि को नियमानुसार क्रय कर संस्था में स्थापित कराना सुनिश्चित करना था किन्तु उक्त समिति द्वारा मनमाना व्यवहार कर उत्तर प्रदेश शासन द्वारा पूर्वानुमोदित सूची से इतर अनावश्यक मदों में धनराशि व्यय की गयी जिसके कारण वित्तीय दुर्विनियोग एवं शासकीय धनराशि में दुरभिसंधि की प्रबल संभावना है. यही नहीं, दो वर्ष से अधिक का समय व्यतीत हो जाने पर भी अभी तक कोई भी उपकरण /मशीन/उपस्कर आदि संस्था में स्थापित नहीं किया गया है. समिति द्वारा संपादित किये गये क्रय व अन्य कार्य भी संदेहास्पद है. किये गए सभी क्रय व अन्य कार्यों का स्वतंत्र व निष्पक्ष जांच एजेंसी से भौतिक सत्यापन आवश्यक है. पॉलीटेक्निक में शैक्षिक सत्र माह जुलाई से आरम्भ होता है किन्तु पांच माह में संस्था में शैक्षिक गतिविधियाँ लगभग शून्य होना तत्कालीन प्रधानाचार्य राजेश चन्द्रा की शैक्षिक कार्यों के प्रति उदासीनता ही दर्शाता है. इससे यह भी स्पष्ट है कि तत्कालीन प्रधानाचार्य राजेश चन्द्रा के कार्यकाल में कक्षाएँ तो चली ही नहीं हैं साथ ही साथ दो वर्ष से अधिक का समय व्यतीत हो जाने पर भी अभी तक कोई भी उपकरण /मशीन/उपस्कर आदि संस्था में स्थापित नहीं किया गया है. इस प्रकार अनुसूचित जाति/जनजाति एवं अन्य पिछड़े वर्ग के छात्रों के भविष्य के साथ जमकर खिलवाड़ किया गया है. गौरतलब है कि अनुसूचित जाति/जनजाति एवं अन्य पिछड़े वर्ग को तकनीकी क्षेत्र में गुणवत्तापूर्ण शिक्षण प्रदान कर देश की मुख्यधारा में जोड़ने के उद्देश्य से लखनऊ में मोहान रोड पर राजकीय गोविन्द बल्लभ पन्त पॉलीटेक्निक 1965 से समाज कल्याण विभाग से संचालित हो रहा है. संस्था में अनुसूचित जाति/जनजाति के 70 फीसद छात्र, अन्य पिछड़े वर्ग के 27 फीसद छात्र एवं सामान्य वर्ग के तीन फीसद छात्र शिक्षा ग्रहण करते हैं. उर्वशी ने इस भ्रष्टाचार को उजागर करने के लिये मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को 21 अप्रैल को प्रेषित पत्र में उपनिदेशक समाज कल्याण लखनऊ मंडल की निरीक्षण आख्या (10 अप्रैल 2012), प्रधानाचार्य के पत्र (2 दिसम्बर 11) प्रतियाँ भेजी हैं. |
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Sunday, April 29, 2012
उत्तर प्रदेश में दलित बच्चों की शिक्षा पर 1416 लाख का बन्दरबांट!
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