नन्हे हाथों में आरटीआइ की ताकत
दुर्गा शर्मा, लखनऊ
जीतने वाले कुछ नया नहीं करते बल्कि वह कुछ अलग तरीके से कार्यो को अंजाम
देते हैं। उनका यह प्रयास उन्हें कुछ खास बना देता है। कक्षा छह की
छात्रा ऐश्वर्या को इसी श्रेणी में रखना गलत न होगा। उसके बाल मन में
उमड़ती जिज्ञासाएं और उनके जवाब तलाशने के लिए उसने किया इस्तेमाल सूचना
के अधिकार का। अब लोग उसे नन्ही (11 वर्षीय) आरटीआइ एक्टीविस्ट के रूप
में जानते हैं। सीएमएस राजाजीपुरम की कक्षा छह की छात्रा ऐश्र्वर्या ने
पहली आरटीआइ वर्ष 2009 में डाली थी। बकौल ऐश्र्वर्या, स्कूल के मेन गेट
के बगल में ही कूड़ा घर बना था, जिससे उठती दुर्गध से हमेशा दिक्कत होती
थी। स्कूल को तो विद्या का मंदिर कहा जाता है, फिर मंदिर के पास कूड़ाघर
कैसे? ऐसे सवालों के उत्तर तो मिलते थे, पर संतुष्टि नहीं। मम्मी ने
सूचना के अधिकार अधिनियम के बारे में बताया। पूछा कि मेरे स्कूल के पास
कूड़ाघर है, उससे बच्चे बीमार हो सकते हैं, अगर ऐसा हुआ तो इसके लिए
जिम्मेदार कौन होगा? निवेदन किया कि कूड़ाघर हटा दिया जाए। उत्तर नहीं
मिला। छह महीने बाद फिर सीएम कार्यालय में प्रार्थना पत्र दिया, जिसे
लखनऊ नगर निगम अग्रसारित कर दिया गया। बाद में वहां पब्लिक लाइबे्ररी
बनवा दी गई।
आठ वर्ष की उम्र में पहली बार किया सूचना के अधिकार का प्रयोग
राष्ट्रपिता राष्ट्रीय पर्व और प्रतीकों समेत कई विषयों पर मांगी जानकारी
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