लखनऊ l कहने को तो उत्तर प्रदेश भारत का सर्वाधिक आवादी वाला प्रदेश होने के कारण औधोगिक घरानों , पूंजीपतियों और निवेशकों के लिए सर्वाधिक संभावनाओं वाला प्रदेश होना चाहिए पर बदहाल कानून व्यवस्था, भ्रष्टाचार को पोषित करने के निहितार्थ लागू छद्म प्रशासनिक लालफीताशाही और ऊर्जा की कमी के चलते ही सूबे में औधोगिक क्षेत्रों में बड़े पूंजीनिवेश की दर लगभग नगण्य है l यह इस
प्रदेश का दुर्भाग्य ही है कि आजादी के 67 साल बाद भी उत्तर प्रदेश पर पूंजीपतियों का विश्वास जम नहीं पाया है और आज यूपी की विद्युत आवश्यकता का महज 19.65% उत्पादन ही निजी क्षेत्र द्वारा किया जा रहा है l
कहने को तो सूबे की सभी सरकारें ऊर्जा क्षेत्र में पूंजीनिवेश के बड़े बड़े सरकारी दावे करती रही है और प्रदेश को ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की बात करती हैं पर सामाजिक संस्था 'तहरीर'* के संस्थापक ई० संजय शर्मा की एक आरटीआई ने इन सरकारी दावों की पोल खोल दी है l
*'तहरीर' { Transparency, Accountability & Human Rights' Initiative for Revolution – TAHRIR } लोक जीवन में पारदर्शिता संवर्धन, जबाबदेही निर्धारण और आमजन के मानवाधिकारों के संरक्षण के हितार्थ उत्तर प्रदेश में जमीनी स्तर पर कार्यशील संस्था है l
उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन के ऊर्जा क्रय अनुबंध निदेशालय के जनसूचना अधिकारी कल्लन प्रसाद द्वारा संजय को दिए गए जबाब के अनुसार यूपी में निजी क्षेत्र में रोजा तापीय विधुत परियोजना में 1200 मेगावाट, लैंको अनपरा तापीय परियोजना में 1200 मेगावाट और बजाज एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड द्वारा 5 परियोजनाओं में कुल 450 मेगावाट बिजली उत्पादन हेतु पूंजीनिवेश किया गया है l संजय बताते हैं कि
इस प्रकार सूबे में केवल 2850 मेगावाट उत्पादन हेतु ही निजी क्षेत्र द्वारा निवेश किया गया है जबकि वर्ष 2014-15 क़े लिए यूपी की विद्युत आवश्यकता लगभग 14500 मेगावाट है और सूबे में 1400 मेगावाट विद्युत ऊर्जा की कमी है l
संजय बताते हैं कि आरटीआई में दिए गए इस जबाब के अनुसार यूपी ने पूर्ववर्ती सीएम मायावती के कार्यकाल में एनर्जी एक्सचेंज से वर्ष 2011 -12 में 34.3 मिलियन यूनिट बिजली खरीदी थी जो वर्तमान सीएम अखिलेश यादव के सत्ता संभालने के बाद और वर्ष 2012 -13 में 45.5 मिलियन यूनिट था पर वर्ष 2013 -14 में आश्चर्यजनक रूप से बढ़कर 1936.38 मिलियन यूनिट हो गया जबकि आम जनता को विद्युत आपूर्ति के सन्दर्भ में कोई राहत
नहीं मिली थी l संजय बताते हैं कि वर्ष 2011-12 में मायावती के कार्यकाल में भी यूपी की विद्युत आवश्यकता लगभग 13947 मेगावाट थी l
संजय का कहना है कि वर्ष 2014 -15 में भी मात्र 6 माह में सितम्बर 2014 तक यूपी ने एनर्जी एक्सचेंज से1518.23 मिलियन यूनिट बिजली खरीदी है और 1251.14 मिलियन यूनिट बिजली बैंकिंग के जरिये क्रय की है जो पिछले चार वर्षों में सर्वाधिक है पर इतने पर भी आम जनता का विद्युत आपूर्ति के लिए त्राहि-त्राहि करना स्वतः सिद्ध करता है कि वैद्युत ऊर्जा के प्रवंधन में अखिलेश यादव पूर्ववर्ती सीएम मायावती
मुकाबले अक्षम रहे हैं l
वर्ष 2016-17 में यूपी की विद्युत आवश्यकता बढ़कर लगभग 19622 मेगावाट हो जाने के मद्देनज़र कुशल ऊर्जा प्रवंधन की आवश्यकता पर बल देते हुए संजय ने 24 घंटे निर्वाध विधुत आपूर्ति पाने को आम नागरिक का मानवाधिकार बताते हुए सरकार से अपनी जबाबदेही को सच्चे दिल से आत्मसात करते हुए पारदर्शिता के साथ काम करके कानून व्यवस्था को पटरी पर लाने और भ्रष्टाचार को पोषित करने के निहितार्थ लागू
छद्म प्रशासनिक लालफीताशाही को समाप्त कर सूबे में विद्युत ऊर्जा के उत्पादन में निजी क्षेत्र द्वारा पूंजीनिवेश के अवसरों को अमली जामा पहनाकर प्रदेश को ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की अपील भी की है l
Scanned Copy of two pages of RTI reply is attached.
RTI ACT 2005 related posts on blog National RTI Forum for Research and Analysis
Friday, October 31, 2014
वैद्युत ऊर्जा के प्रवंधन में माया के मुकाबले अखिलेश अक्षम Akhilesh inefficient to Mayawati in Energy Management: यूपी की विद्युत आवश्यकता का महज 19.65% उत्पादन निजी क्षेत्र द्वारा only 19.65% of total Energy requirement of UP Produced by Private Sector: ऊर्जा क्षेत्र में पूंजीनिवेश के सरकारी दावे खोखले : 14500 मेगावाट है यूपी की विद्युत आवश्यकता : केवल 2850 मेगावाट उत्पादन हेतु ही किया गया है निजी क्षेत्र द्वारा निवेश : लगभग 1400 मेगावाट वैद्युत ऊर्जा की कमी है यूपी में
वैद्युत ऊर्जा के प्रवंधन में माया के मुकाबले अखिलेश अक्षम Akhilesh inefficient to Mayawati in Energy Management: यूपी की विद्युत आवश्यकता का महज 19.65% उत्पादन निजी क्षेत्र द्वारा : ऊर्जा क्षेत्र में पूंजीनिवेश के सरकारी दावे खोखले : 14500 मेगावाट है यूपी की विद्युत आवश्यकता : केवल 2850 मेगावाट उत्पादन हेतु ही किया गया है निजी क्षेत्र द्वारा निवेश : लगभग 1400 मेगावाट वैद्युत ऊर्जा की कमी है यूपी में
लखनऊ l कहने को तो उत्तर प्रदेश भारत का सर्वाधिक आवादी वाला प्रदेश होने
के कारण औधोगिक घरानों , पूंजीपतियों और निवेशकों के लिए सर्वाधिक
संभावनाओं वाला प्रदेश होना चाहिए पर बदहाल कानून व्यवस्था, भ्रष्टाचार
को पोषित करने के निहितार्थ लागू छद्म प्रशासनिक लालफीताशाही और ऊर्जा
की कमी के चलते ही सूबे में औधोगिक क्षेत्रों में बड़े पूंजीनिवेश की दर
लगभग नगण्य है l यह इस प्रदेश का दुर्भाग्य ही है कि आजादी के 67 साल बाद
भी उत्तर प्रदेश पर पूंजीपतियों का विश्वास जम नहीं पाया है और आज यूपी
की विद्युत आवश्यकता का महज 19.65% उत्पादन ही निजी क्षेत्र द्वारा किया
जा रहा है l
कहने को तो सूबे की सभी सरकारें ऊर्जा क्षेत्र में पूंजीनिवेश के बड़े
बड़े सरकारी दावे करती रही है और प्रदेश को ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर
बनाने की बात करती हैं पर सामाजिक संस्था 'तहरीर'* के संस्थापक ई० संजय
शर्मा की एक आरटीआई ने इन सरकारी दावों की पोल खोल दी है l
*'तहरीर' { Transparency, Accountability & Human Rights' Initiative
for Revolution – TAHRIR } लोक जीवन में पारदर्शिता संवर्धन, जबाबदेही
निर्धारण और आमजन के मानवाधिकारों के संरक्षण के हितार्थ उत्तर प्रदेश
में जमीनी स्तर पर कार्यशील संस्था है l
उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन के ऊर्जा क्रय अनुबंध निदेशालय के जनसूचना
अधिकारी कल्लन प्रसाद द्वारा संजय को दिए गए जबाब के अनुसार यूपी में
निजी क्षेत्र में रोजा तापीय विधुत परियोजना में 1200 मेगावाट, लैंको
अनपरा तापीय परियोजना में 1200 मेगावाट और बजाज एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड
द्वारा 5 परियोजनाओं में कुल 450 मेगावाट बिजली उत्पादन हेतु पूंजीनिवेश
किया गया है l संजय बताते हैं कि इस प्रकार सूबे में केवल 2850 मेगावाट
उत्पादन हेतु ही निजी क्षेत्र द्वारा निवेश किया गया है जबकि वर्ष
2014-15 क़े लिए यूपी की विद्युत आवश्यकता लगभग 14500 मेगावाट है और सूबे
में 1400 मेगावाट विद्युत ऊर्जा की कमी है l
संजय बताते हैं कि आरटीआई में दिए गए इस जबाब के अनुसार यूपी ने
पूर्ववर्ती सीएम मायावती के कार्यकाल में एनर्जी एक्सचेंज से वर्ष 2011
-12 में 34.3 मिलियन यूनिट बिजली खरीदी थी जो वर्तमान सीएम अखिलेश यादव
के सत्ता संभालने के बाद और वर्ष 2012 -13 में 45.5 मिलियन यूनिट था पर
वर्ष 2013 -14 में आश्चर्यजनक रूप से बढ़कर 1936.38 मिलियन यूनिट हो गया
जबकि आम जनता को विद्युत आपूर्ति के सन्दर्भ में कोई राहत नहीं मिली थी
l संजय बताते हैं कि वर्ष 2011-12 में मायावती के कार्यकाल में भी यूपी
की विद्युत आवश्यकता लगभग 13947 मेगावाट थी l
संजय का कहना है कि वर्ष 2014 -15 में भी मात्र 6 माह में सितम्बर
2014 तक यूपी ने एनर्जी एक्सचेंज से1518.23 मिलियन यूनिट बिजली खरीदी है
और 1251.14 मिलियन यूनिट बिजली बैंकिंग के जरिये क्रय की है जो पिछले
चार वर्षों में सर्वाधिक है पर इतने पर भी आम जनता का विद्युत आपूर्ति
के लिए त्राहि-त्राहि करना स्वतः सिद्ध करता है कि वैद्युत ऊर्जा के
प्रवंधन में अखिलेश यादव पूर्ववर्ती सीएम मायावती मुकाबले अक्षम रहे
हैं l
वर्ष 2016-17 में यूपी की विद्युत आवश्यकता बढ़कर लगभग 19622 मेगावाट हो
जाने के मद्देनज़र कुशल ऊर्जा प्रवंधन की आवश्यकता पर बल देते हुए संजय
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हुए सरकार से अपनी जबाबदेही को सच्चे दिल से आत्मसात करते हुए
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-Sincerely Yours,
Urvashi Sharma
Secretary - YAISHWARYAJ SEVA SANSTHAAN
101,Narayan Tower, Opposite F block Idgah
Rajajipuram,Lucknow-226017,Uttar Pradesh,India
Contact 9369613513
Right to Information Helpline 8081898081
Helpline Against Corruption 9455553838
http://upcpri.blogspot.in/
Note : if you don't want to receive mails from me,kindly inform me so
that i should delete your name from my mailing list.
के कारण औधोगिक घरानों , पूंजीपतियों और निवेशकों के लिए सर्वाधिक
संभावनाओं वाला प्रदेश होना चाहिए पर बदहाल कानून व्यवस्था, भ्रष्टाचार
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लगभग नगण्य है l यह इस प्रदेश का दुर्भाग्य ही है कि आजादी के 67 साल बाद
भी उत्तर प्रदेश पर पूंजीपतियों का विश्वास जम नहीं पाया है और आज यूपी
की विद्युत आवश्यकता का महज 19.65% उत्पादन ही निजी क्षेत्र द्वारा किया
जा रहा है l
कहने को तो सूबे की सभी सरकारें ऊर्जा क्षेत्र में पूंजीनिवेश के बड़े
बड़े सरकारी दावे करती रही है और प्रदेश को ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर
बनाने की बात करती हैं पर सामाजिक संस्था 'तहरीर'* के संस्थापक ई० संजय
शर्मा की एक आरटीआई ने इन सरकारी दावों की पोल खोल दी है l
*'तहरीर' { Transparency, Accountability & Human Rights' Initiative
for Revolution – TAHRIR } लोक जीवन में पारदर्शिता संवर्धन, जबाबदेही
निर्धारण और आमजन के मानवाधिकारों के संरक्षण के हितार्थ उत्तर प्रदेश
में जमीनी स्तर पर कार्यशील संस्था है l
उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन के ऊर्जा क्रय अनुबंध निदेशालय के जनसूचना
अधिकारी कल्लन प्रसाद द्वारा संजय को दिए गए जबाब के अनुसार यूपी में
निजी क्षेत्र में रोजा तापीय विधुत परियोजना में 1200 मेगावाट, लैंको
अनपरा तापीय परियोजना में 1200 मेगावाट और बजाज एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड
द्वारा 5 परियोजनाओं में कुल 450 मेगावाट बिजली उत्पादन हेतु पूंजीनिवेश
किया गया है l संजय बताते हैं कि इस प्रकार सूबे में केवल 2850 मेगावाट
उत्पादन हेतु ही निजी क्षेत्र द्वारा निवेश किया गया है जबकि वर्ष
2014-15 क़े लिए यूपी की विद्युत आवश्यकता लगभग 14500 मेगावाट है और सूबे
में 1400 मेगावाट विद्युत ऊर्जा की कमी है l
संजय बताते हैं कि आरटीआई में दिए गए इस जबाब के अनुसार यूपी ने
पूर्ववर्ती सीएम मायावती के कार्यकाल में एनर्जी एक्सचेंज से वर्ष 2011
-12 में 34.3 मिलियन यूनिट बिजली खरीदी थी जो वर्तमान सीएम अखिलेश यादव
के सत्ता संभालने के बाद और वर्ष 2012 -13 में 45.5 मिलियन यूनिट था पर
वर्ष 2013 -14 में आश्चर्यजनक रूप से बढ़कर 1936.38 मिलियन यूनिट हो गया
जबकि आम जनता को विद्युत आपूर्ति के सन्दर्भ में कोई राहत नहीं मिली थी
l संजय बताते हैं कि वर्ष 2011-12 में मायावती के कार्यकाल में भी यूपी
की विद्युत आवश्यकता लगभग 13947 मेगावाट थी l
संजय का कहना है कि वर्ष 2014 -15 में भी मात्र 6 माह में सितम्बर
2014 तक यूपी ने एनर्जी एक्सचेंज से1518.23 मिलियन यूनिट बिजली खरीदी है
और 1251.14 मिलियन यूनिट बिजली बैंकिंग के जरिये क्रय की है जो पिछले
चार वर्षों में सर्वाधिक है पर इतने पर भी आम जनता का विद्युत आपूर्ति
के लिए त्राहि-त्राहि करना स्वतः सिद्ध करता है कि वैद्युत ऊर्जा के
प्रवंधन में अखिलेश यादव पूर्ववर्ती सीएम मायावती मुकाबले अक्षम रहे
हैं l
वर्ष 2016-17 में यूपी की विद्युत आवश्यकता बढ़कर लगभग 19622 मेगावाट हो
जाने के मद्देनज़र कुशल ऊर्जा प्रवंधन की आवश्यकता पर बल देते हुए संजय
ने 24 घंटे निर्वाध विधुत आपूर्ति पाने को आम नागरिक का मानवाधिकार बताते
हुए सरकार से अपनी जबाबदेही को सच्चे दिल से आत्मसात करते हुए
पारदर्शिता के साथ काम करके कानून व्यवस्था को पटरी पर लाने और
भ्रष्टाचार को पोषित करने के निहितार्थ लागू छद्म प्रशासनिक लालफीताशाही
को समाप्त कर सूबे में विद्युत ऊर्जा के उत्पादन में निजी क्षेत्र
द्वारा पूंजीनिवेश के अवसरों को अमली जामा पहनाकर प्रदेश को ऊर्जा
क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की अपील भी की है l
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Thursday, October 30, 2014
REPORT: 'दंगा बैंक' बना यूपी, माया-अखिलेश नाकारे!
http://www.lucknow.amarujala.com/feature/city-news-lkw/mayawati-and-akhilesh-both-cannot-stop-riots-in-up-hindi-news/
REPORT: 'दंगा बैंक' बना यूपी, माया-अखिलेश नाकारे!
टीम डिजीटल
गुरुवार, 30 अक्टूबर 2014
अमर उजाला, लखनऊ
Updated @ 3:42 PM IST
तहरीर की रिपोर्ट में हुआ खुलासा
मायावती हों या अखिलेश यादव, दोनों ही सीएम यूपी में दंगों पर लगाम लगाने में पूरी तरह से विफल रहे हैं। यूपी में हो रहे दंगों के आकंडे इस बात के साक्षी हैं। 2010 से लेकर 2013 तक लगातार प्रदेश में दंगों का ग्राफ बढ़ा है।
2010 की तुलना में 2011 में प्रदेश में होने वाले दंगों की घटनाएं 19.97% तक बढ़े। वहीं 2011 से 2012 तक दंगे 35.57% तक बढ़े हैं। अगर 2012 से 2013 तक दंगों का प्रतिशत देखा जाए तो ये 45 प्रतिशत तक बढ़ गए।
यूपी की सरकार महज एक दंगा बैंक बनकर रह गई है। उत्तर प्रदेश में चाहें मायावती हों या अखिलेश यादव, ये दोनों ही सीएम के रूप में दावे तो बड़े बड़े करते रहे पर यूपी के दंगों पर लगाम लगाने में पूर्णतः विफल ही रहे हैं।
इस कड़वी हक़ीक़त का खुलासा सामाजिक संस्था 'तहरीर' के संस्थापक संजय शर्मा की एक आरटीआई पर राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के जन सूचना अधिकारी के पी उदय शंकर द्वारा दिए गए एक जवाब से हुआ है।
1 of 3
आगे पढ़ें >> आंकड़ों से जानिए दंगों का ग्राफ
REPORT: 'दंगा बैंक' बना यूपी, माया-अखिलेश नाकारे!
आंकड़ों से जानिए दंगों का ग्राफ
आंकड़ों से जानिए दंगों का ग्राफ
'तहरीर' लोक जीवन में पारदर्शिता संवर्धन, जबाबदेही निर्धारण और आमजन के मानवाधिकारों के संरक्षण के हितार्थ उत्तर प्रदेश में जमीनी स्तर पर कार्यशील संस्था है।
संजय को उपलब्ध कराई गई सूचना के अनुसार उत्तर प्रदेश में साल 2010 में 4186, साल 2011 में 5022, साल 2012 में 5676 और साल 2013 में दंगों की 6089 घटनाएं सरकारी आंकड़ों में दर्ज हैं।
गौरतलब है कि वर्ष 2010 से मार्च 2012 तक सूबे की कमान मायावती के हाथ में थी और मार्च 2012 से वर्ष 2013 तक की अवधि में अखिलेश यादव सूबे के मुखिया रहे हैं।
इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश में साल 2011 में साल 2010 के मुकाबले दंगों की 836 अधिक घटनाएं (19.97%) हुईं। साल 2012 में साल 2010 के मुकाबले दंगों की 1489 अधिक घटनाएं (35.57%) हुईं तो वही साल 2013 में साल 2010 के मुकाबले� दंगों की 1903 अधिक घटनाएं (45%) हुईं हैं।
संजय कहते हैं कि इन आकड़ों के साल-दर-साल विश्लेषण से भी यह स्पष्ट है कि साल 2010 से 2013 तक यूपी में लगातार दंगों की घटनाओं में वृद्धि ही हो रही है।
2 of 3
आगे पढ़ें >> यूपी की सबसे बड़ी बाधा बन गए दंगे
REPORT: 'दंगा बैंक' बना यूपी, माया-अखिलेश नाकारे!
यूपी की सबसे बड़ी बाधा बन गए दंगे
यूपी की सबसे बड़ी बाधा बन गए दंगे
संजय का कहना है कि सभी सरकारें दंगे रोकने के मामले में महज कोरी वयानवाजी कर जनता को गुमराह ही करती� रही हैं। ये दोनों सरकारें प्रदेश में दंगे रोकने में पूर्णतयाः विफल रही हैं। सूबे में दंगों की संख्या में हो रही बेतहाशा उत्तरोत्तर वृद्धि पर तंज कसते हुए संजय कहते है कि इतनी तेजी से तो बैंक में रखा पैसा भी नहीं बढ़ता है।
सरकार को दंगों का उच्च ब्याजदर पर डिपाजिट कर जनता को ब्याज समेत वापस करने बाले 'दंगा बैंक' की संघ्या दी है।
दंगों को उत्तर प्रदेश के सामाजिक और आर्थिक विकास के रास्ते की सबसे बड़ी बाधा बताया गया। सरकारें भी दंगे हो जाने के बाद
महज सरकारी खानापूर्ति कर मामले की इतिश्री कर देती हैं पर दंगों का असली देश स्थानीय जनता सालों साल झेलती रहती है।
संजय ने अब दंगों के परिपेक्ष्य में प्रशासनिक अमले और स्थानीय जनप्रतिनिधियों की स्पष्ट जबाबदेही के निर्धारण के लिए सामाजिक संस्था 'तहरीर' के माध्यम से एक व्यापक मुहिम चलाने का ऐलान किया है।
संस्था ने इस सम्बन्ध में देश� के प्रधानमंत्री , गृहमंत्री और� सूबे के राज्यपाल, मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर प्रशासनिक अमले और स्थानीय जनप्रतिनिधियों को दंगों को रोकने के उपायों के क्रियान्वयन के प्रति गंभीर बनाने हेतु नियम-कानून� बनाने� की मांग करने का भी ऐलान किया है।
REPORT: 'दंगा बैंक' बना यूपी, माया-अखिलेश नाकारे!
टीम डिजीटल
गुरुवार, 30 अक्टूबर 2014
अमर उजाला, लखनऊ
Updated @ 3:42 PM IST
तहरीर की रिपोर्ट में हुआ खुलासा
मायावती हों या अखिलेश यादव, दोनों ही सीएम यूपी में दंगों पर लगाम लगाने में पूरी तरह से विफल रहे हैं। यूपी में हो रहे दंगों के आकंडे इस बात के साक्षी हैं। 2010 से लेकर 2013 तक लगातार प्रदेश में दंगों का ग्राफ बढ़ा है।
2010 की तुलना में 2011 में प्रदेश में होने वाले दंगों की घटनाएं 19.97% तक बढ़े। वहीं 2011 से 2012 तक दंगे 35.57% तक बढ़े हैं। अगर 2012 से 2013 तक दंगों का प्रतिशत देखा जाए तो ये 45 प्रतिशत तक बढ़ गए।
यूपी की सरकार महज एक दंगा बैंक बनकर रह गई है। उत्तर प्रदेश में चाहें मायावती हों या अखिलेश यादव, ये दोनों ही सीएम के रूप में दावे तो बड़े बड़े करते रहे पर यूपी के दंगों पर लगाम लगाने में पूर्णतः विफल ही रहे हैं।
इस कड़वी हक़ीक़त का खुलासा सामाजिक संस्था 'तहरीर' के संस्थापक संजय शर्मा की एक आरटीआई पर राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के जन सूचना अधिकारी के पी उदय शंकर द्वारा दिए गए एक जवाब से हुआ है।
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REPORT: 'दंगा बैंक' बना यूपी, माया-अखिलेश नाकारे!
आंकड़ों से जानिए दंगों का ग्राफ
आंकड़ों से जानिए दंगों का ग्राफ
'तहरीर' लोक जीवन में पारदर्शिता संवर्धन, जबाबदेही निर्धारण और आमजन के मानवाधिकारों के संरक्षण के हितार्थ उत्तर प्रदेश में जमीनी स्तर पर कार्यशील संस्था है।
संजय को उपलब्ध कराई गई सूचना के अनुसार उत्तर प्रदेश में साल 2010 में 4186, साल 2011 में 5022, साल 2012 में 5676 और साल 2013 में दंगों की 6089 घटनाएं सरकारी आंकड़ों में दर्ज हैं।
गौरतलब है कि वर्ष 2010 से मार्च 2012 तक सूबे की कमान मायावती के हाथ में थी और मार्च 2012 से वर्ष 2013 तक की अवधि में अखिलेश यादव सूबे के मुखिया रहे हैं।
इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश में साल 2011 में साल 2010 के मुकाबले दंगों की 836 अधिक घटनाएं (19.97%) हुईं। साल 2012 में साल 2010 के मुकाबले दंगों की 1489 अधिक घटनाएं (35.57%) हुईं तो वही साल 2013 में साल 2010 के मुकाबले� दंगों की 1903 अधिक घटनाएं (45%) हुईं हैं।
संजय कहते हैं कि इन आकड़ों के साल-दर-साल विश्लेषण से भी यह स्पष्ट है कि साल 2010 से 2013 तक यूपी में लगातार दंगों की घटनाओं में वृद्धि ही हो रही है।
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REPORT: 'दंगा बैंक' बना यूपी, माया-अखिलेश नाकारे!
यूपी की सबसे बड़ी बाधा बन गए दंगे
यूपी की सबसे बड़ी बाधा बन गए दंगे
संजय का कहना है कि सभी सरकारें दंगे रोकने के मामले में महज कोरी वयानवाजी कर जनता को गुमराह ही करती� रही हैं। ये दोनों सरकारें प्रदेश में दंगे रोकने में पूर्णतयाः विफल रही हैं। सूबे में दंगों की संख्या में हो रही बेतहाशा उत्तरोत्तर वृद्धि पर तंज कसते हुए संजय कहते है कि इतनी तेजी से तो बैंक में रखा पैसा भी नहीं बढ़ता है।
सरकार को दंगों का उच्च ब्याजदर पर डिपाजिट कर जनता को ब्याज समेत वापस करने बाले 'दंगा बैंक' की संघ्या दी है।
दंगों को उत्तर प्रदेश के सामाजिक और आर्थिक विकास के रास्ते की सबसे बड़ी बाधा बताया गया। सरकारें भी दंगे हो जाने के बाद
महज सरकारी खानापूर्ति कर मामले की इतिश्री कर देती हैं पर दंगों का असली देश स्थानीय जनता सालों साल झेलती रहती है।
संजय ने अब दंगों के परिपेक्ष्य में प्रशासनिक अमले और स्थानीय जनप्रतिनिधियों की स्पष्ट जबाबदेही के निर्धारण के लिए सामाजिक संस्था 'तहरीर' के माध्यम से एक व्यापक मुहिम चलाने का ऐलान किया है।
संस्था ने इस सम्बन्ध में देश� के प्रधानमंत्री , गृहमंत्री और� सूबे के राज्यपाल, मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर प्रशासनिक अमले और स्थानीय जनप्रतिनिधियों को दंगों को रोकने के उपायों के क्रियान्वयन के प्रति गंभीर बनाने हेतु नियम-कानून� बनाने� की मांग करने का भी ऐलान किया है।
Wednesday, October 29, 2014
Only 7% IAS officers filed property returns : Out of the serving 4,619 officers, only 311 IAS officers have filed the returns.
http://www.sunday-guardian.com/news/only-7-ias-officers-filed-property-returns
Only 7% IAS officers filed property returns
Out of the serving 4,619 officers, only 311 IAS officers have filed the returns.
NAVTAN KUMAR New Delhi | 25th Oct 2014
DoPT's IPR rules are listed on its website.
everal Indian Administrative Service (IAS) officers are reluctant to file annual property returns, a mandatory obligation under the Lokpal and Lokayukta Act.
According to an RTI reply, the Department of Personnel and Training (DoPT) has said that only "311 IAS officers have filed online property returns in the prescribed format as mentioned in the Lokpal and Lokayukta Act".
Though the sanctioned strength of the IAS is 6,270, the total number of serving IAS officers in the country is 4,619, as per information provided by the DoPT. That means only about 7% of them have filed their returns.
In July, the DoPT under the Ministry of Personnel, Public Grievances and Pensions, had issued a notification that under the Lokpal and Lokayuktas Act, every public servant must every year file a declaration, information and annual returns of his assets and liabilities as of 31 March on or before 31 July. However, for the current year, the last date of filing such returns was postponed to 15 September.
The government had introduced the facility of filing the returns online, for which an application named Property Related Information System (PRISM) has been designed.
"If IAS officers themselves do not follow the government's directives, how can they expect others to do so?" asked Sanjay Sharma, the Lucknow-based RTI activist who filed the query.
"Corruption is another aspect of this issue. The fact that they are reluctant to share information about their property hints at possible corruption. Our Prime Minister's USP is good governance. If IAS officers conceal information about their property, how can Narendra Modi's vision of providing good and efficient governance be realised?" Sharma asked.
Only 7% IAS officers filed property returns
Out of the serving 4,619 officers, only 311 IAS officers have filed the returns.
NAVTAN KUMAR New Delhi | 25th Oct 2014
DoPT's IPR rules are listed on its website.
everal Indian Administrative Service (IAS) officers are reluctant to file annual property returns, a mandatory obligation under the Lokpal and Lokayukta Act.
According to an RTI reply, the Department of Personnel and Training (DoPT) has said that only "311 IAS officers have filed online property returns in the prescribed format as mentioned in the Lokpal and Lokayukta Act".
Though the sanctioned strength of the IAS is 6,270, the total number of serving IAS officers in the country is 4,619, as per information provided by the DoPT. That means only about 7% of them have filed their returns.
In July, the DoPT under the Ministry of Personnel, Public Grievances and Pensions, had issued a notification that under the Lokpal and Lokayuktas Act, every public servant must every year file a declaration, information and annual returns of his assets and liabilities as of 31 March on or before 31 July. However, for the current year, the last date of filing such returns was postponed to 15 September.
The government had introduced the facility of filing the returns online, for which an application named Property Related Information System (PRISM) has been designed.
"If IAS officers themselves do not follow the government's directives, how can they expect others to do so?" asked Sanjay Sharma, the Lucknow-based RTI activist who filed the query.
"Corruption is another aspect of this issue. The fact that they are reluctant to share information about their property hints at possible corruption. Our Prime Minister's USP is good governance. If IAS officers conceal information about their property, how can Narendra Modi's vision of providing good and efficient governance be realised?" Sharma asked.
अखिलेश सरकार ने पुनः टाला सूचना आयुक्तों की बैठक
http://www.jansattaexpress.net/print/8510.html
अखिलेश सरकार ने पुनः टाला सूचना आयुक्तों की बैठक
'तहरीर' के धरने और सूचना आयुक्तों को चुनौती देने से दबाब में आयी सरकार ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सूचना आयुक्त और 1 सूचना आयुक्त के चयन के लिए बीते बृहस्पतिवार होने वाली बैठक स्थगित कर दी है। 'तहरीर' के विरोध के चलते ही यह बैठक इसके पहले भी एक बार स्थगित हो चुकी है।
अखिलेश सरकार ने पुनः टाला सूचना आयुक्तों की बैठक 'तहरीर' के धरने और सूचना आयुक्तों को चुनौती देने से दबाब में आयी सरकार ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सूचना आयुक्त और 1 सूचना आयुक्त के चयन के लिए बीते बृहस्पतिवार होने वाली बैठक स्थगित कर दी है। 'तहरीर' के विरोध के चलते ही यह बैठक इसके पहले भी एक बार स्थगित हो चुकी है।
उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त का पद 30 जून 2014 से खाली है। इससे पहले सरकार ने इन दोनों पदों पर चयन के लिए पहले 28 जून 2014 को चयन समिति की बैठक बुलाई थी जिसमें बिना आवेदन के सीधे चयन समिति द्वारा इन दोनों पदों पर चयन की तैयारी थी जिसका कड़ा विरोध किया गया था और पूर्व की भांति आवेदन मंगाने की मांग की गयी थी। हमारे दबाब में यह बैठक स्थगित कर दी गई
थी और प्रशासनिक सुधार विभाग द्वारा बीते अगस्त में इन दोनों पदों पर चयन के लिए आवेदन मांगे गए थे।
लोक जीवन में पारदर्शिता संवर्धन, जबाबदेही निर्धारण और आमजन के मानवाधिकारों के संरक्षण के हितार्थ उत्तर प्रदेश में जमीनी स्तर पर कार्यशील संस्था 'तहरीर' द्वारा आरटीआई एक्ट की नौवीं सालगिरह पर दिनांक 12 अक्टूबर 2014 को राजधानी लखनऊ के लक्ष्मण मेला मैदान धरना स्थल पर उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग के निराशाजनक प्रदर्शन के विरोध में धरना और यूपी के हालिया कार्यरत 9 सूचना
आयुक्तों पर अक्षमता का आरोप लगाते हुए उनको कैमरे के सामने एक्ट पर खुली बहस की चुनौती के कार्यक्रम का आयोजन येश्वर्याज सेवा संस्थान, एक्शन ग्रुप फॉर राइट टु इनफार्मेशन , आरटीआई कॉउंसिल ऑफ़ यूपी , ट्रैप संस्था अलीगढ , सूचना का अधिकार कार्यकर्ता एसोसिएशन, पीपल्स फोरम, मानव विकास सेवा समिति मुरादाबाद , जन सूचना अधिकार जागरूकता मंच,भ्रष्टाचार हटाओ देश बचाओ मंच , एसआरपीडी
मेमोरियल समाज सेवा संस्थान , आल इण्डिया शैडयूल्ड कास्ट्स एंड शैडयूल्ड ट्राइब्स एम्पलाइज वेलफेयर एसोसिएशन, भागीदारी मंच, सार्वजनिक जबाबदेही भारत निर्माण मंच आदि संगठनों के साथ संयुक्त रूप से किया गया. कार्यक्रम में ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया लखनऊ चैप्टर, सोसाइटी फॉर फ़ास्ट जस्टिस लखनऊ और उत्तर प्रदेश रोडवेज संविदा कर्मचारी संघ ने भी तहरीर को समर्थन प्रदान
करते हुए शिरकत की थी l 'तहरीर' इन सभी संगठनों को उनके सहयोग के लिए धन्यवाद ज्ञापित करता है l इस सम्बन्ध में ज्ञापन को जिला प्रशासन के माध्यम से भेजने के साथ साथ हमारे द्वारा सीधे उत्तर प्रदेश के राज्यपाल महोदय को तथा भारत के मुख्य न्यायाधीश को भी प्रेषित कर दिया गया है जो इस स्टेटस के साथ अपलोड किया जा रहा है।
यदि आपके पास भी मीडिया जगत से संबंधित कोई समाचार या फिर आलेख हो तो हमें jansattaexp@gmail.com पर य़ा फिर फोन नंबर 9650258033 पर बता सकते हैं। हम आपकी पहचान हमेशा गुप्त रखेंगे। - संपादक
अखिलेश सरकार ने पुनः टाला सूचना आयुक्तों की बैठक
'तहरीर' के धरने और सूचना आयुक्तों को चुनौती देने से दबाब में आयी सरकार ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सूचना आयुक्त और 1 सूचना आयुक्त के चयन के लिए बीते बृहस्पतिवार होने वाली बैठक स्थगित कर दी है। 'तहरीर' के विरोध के चलते ही यह बैठक इसके पहले भी एक बार स्थगित हो चुकी है।
अखिलेश सरकार ने पुनः टाला सूचना आयुक्तों की बैठक 'तहरीर' के धरने और सूचना आयुक्तों को चुनौती देने से दबाब में आयी सरकार ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सूचना आयुक्त और 1 सूचना आयुक्त के चयन के लिए बीते बृहस्पतिवार होने वाली बैठक स्थगित कर दी है। 'तहरीर' के विरोध के चलते ही यह बैठक इसके पहले भी एक बार स्थगित हो चुकी है।
उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त का पद 30 जून 2014 से खाली है। इससे पहले सरकार ने इन दोनों पदों पर चयन के लिए पहले 28 जून 2014 को चयन समिति की बैठक बुलाई थी जिसमें बिना आवेदन के सीधे चयन समिति द्वारा इन दोनों पदों पर चयन की तैयारी थी जिसका कड़ा विरोध किया गया था और पूर्व की भांति आवेदन मंगाने की मांग की गयी थी। हमारे दबाब में यह बैठक स्थगित कर दी गई
थी और प्रशासनिक सुधार विभाग द्वारा बीते अगस्त में इन दोनों पदों पर चयन के लिए आवेदन मांगे गए थे।
लोक जीवन में पारदर्शिता संवर्धन, जबाबदेही निर्धारण और आमजन के मानवाधिकारों के संरक्षण के हितार्थ उत्तर प्रदेश में जमीनी स्तर पर कार्यशील संस्था 'तहरीर' द्वारा आरटीआई एक्ट की नौवीं सालगिरह पर दिनांक 12 अक्टूबर 2014 को राजधानी लखनऊ के लक्ष्मण मेला मैदान धरना स्थल पर उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग के निराशाजनक प्रदर्शन के विरोध में धरना और यूपी के हालिया कार्यरत 9 सूचना
आयुक्तों पर अक्षमता का आरोप लगाते हुए उनको कैमरे के सामने एक्ट पर खुली बहस की चुनौती के कार्यक्रम का आयोजन येश्वर्याज सेवा संस्थान, एक्शन ग्रुप फॉर राइट टु इनफार्मेशन , आरटीआई कॉउंसिल ऑफ़ यूपी , ट्रैप संस्था अलीगढ , सूचना का अधिकार कार्यकर्ता एसोसिएशन, पीपल्स फोरम, मानव विकास सेवा समिति मुरादाबाद , जन सूचना अधिकार जागरूकता मंच,भ्रष्टाचार हटाओ देश बचाओ मंच , एसआरपीडी
मेमोरियल समाज सेवा संस्थान , आल इण्डिया शैडयूल्ड कास्ट्स एंड शैडयूल्ड ट्राइब्स एम्पलाइज वेलफेयर एसोसिएशन, भागीदारी मंच, सार्वजनिक जबाबदेही भारत निर्माण मंच आदि संगठनों के साथ संयुक्त रूप से किया गया. कार्यक्रम में ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया लखनऊ चैप्टर, सोसाइटी फॉर फ़ास्ट जस्टिस लखनऊ और उत्तर प्रदेश रोडवेज संविदा कर्मचारी संघ ने भी तहरीर को समर्थन प्रदान
करते हुए शिरकत की थी l 'तहरीर' इन सभी संगठनों को उनके सहयोग के लिए धन्यवाद ज्ञापित करता है l इस सम्बन्ध में ज्ञापन को जिला प्रशासन के माध्यम से भेजने के साथ साथ हमारे द्वारा सीधे उत्तर प्रदेश के राज्यपाल महोदय को तथा भारत के मुख्य न्यायाधीश को भी प्रेषित कर दिया गया है जो इस स्टेटस के साथ अपलोड किया जा रहा है।
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अखिलेश सरकार ने पुनः टाला सूचना आयुक्तों की बैठक
http://www.jansattaexpress.net/print/8510.html
अखिलेश सरकार ने पुनः टाला सूचना आयुक्तों की बैठक
'तहरीर' के धरने और सूचना आयुक्तों को चुनौती देने से दबाब में आयी
सरकार ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सूचना आयुक्त और 1 सूचना आयुक्त के चयन
के लिए बीते बृहस्पतिवार होने वाली बैठक स्थगित कर दी है। 'तहरीर' के
विरोध के चलते ही यह बैठक इसके पहले भी एक बार स्थगित हो चुकी है।
अखिलेश सरकार ने पुनः टाला सूचना आयुक्तों की बैठक 'तहरीर' के धरने और
सूचना आयुक्तों को चुनौती देने से दबाब में आयी सरकार ने उत्तर प्रदेश के
मुख्य सूचना आयुक्त और 1 सूचना आयुक्त के चयन के लिए बीते बृहस्पतिवार
होने वाली बैठक स्थगित कर दी है। 'तहरीर' के विरोध के चलते ही यह बैठक
इसके पहले भी एक बार स्थगित हो चुकी है।
उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त
का पद 30 जून 2014 से खाली है। इससे पहले सरकार ने इन दोनों पदों पर चयन
के लिए पहले 28 जून 2014 को चयन समिति की बैठक बुलाई थी जिसमें बिना
आवेदन के सीधे चयन समिति द्वारा इन दोनों पदों पर चयन की तैयारी थी जिसका
कड़ा विरोध किया गया था और पूर्व की भांति आवेदन मंगाने की मांग की गयी
थी। हमारे दबाब में यह बैठक स्थगित कर दी गई थी और प्रशासनिक सुधार विभाग
द्वारा बीते अगस्त में इन दोनों पदों पर चयन के लिए आवेदन मांगे गए थे।
लोक जीवन में पारदर्शिता संवर्धन, जबाबदेही निर्धारण और आमजन के
मानवाधिकारों के संरक्षण के हितार्थ उत्तर प्रदेश में जमीनी स्तर पर
कार्यशील संस्था 'तहरीर' द्वारा आरटीआई एक्ट की नौवीं सालगिरह पर दिनांक
12 अक्टूबर 2014 को राजधानी लखनऊ के लक्ष्मण मेला मैदान धरना स्थल पर
उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग के निराशाजनक प्रदर्शन के विरोध में धरना
और यूपी के हालिया कार्यरत 9 सूचना आयुक्तों पर अक्षमता का आरोप लगाते
हुए उनको कैमरे के सामने एक्ट पर खुली बहस की चुनौती के कार्यक्रम का
आयोजन येश्वर्याज सेवा संस्थान, एक्शन ग्रुप फॉर राइट टु इनफार्मेशन ,
आरटीआई कॉउंसिल ऑफ़ यूपी , ट्रैप संस्था अलीगढ , सूचना का अधिकार
कार्यकर्ता एसोसिएशन, पीपल्स फोरम, मानव विकास सेवा समिति मुरादाबाद , जन
सूचना अधिकार जागरूकता मंच,भ्रष्टाचार हटाओ देश बचाओ मंच , एसआरपीडी
मेमोरियल समाज सेवा संस्थान , आल इण्डिया शैडयूल्ड कास्ट्स एंड शैडयूल्ड
ट्राइब्स एम्पलाइज वेलफेयर एसोसिएशन, भागीदारी मंच, सार्वजनिक जबाबदेही
भारत निर्माण मंच आदि संगठनों के साथ संयुक्त रूप से किया गया. कार्यक्रम
में ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया लखनऊ चैप्टर, सोसाइटी फॉर फ़ास्ट
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--
-Sincerely Yours,
Urvashi Sharma
Secretary - YAISHWARYAJ SEVA SANSTHAAN
101,Narayan Tower, Opposite F block Idgah
Rajajipuram,Lucknow-226017,Uttar Pradesh,India
Contact 9369613513
Right to Information Helpline 8081898081
Helpline Against Corruption 9455553838
http://upcpri.blogspot.in/
Note : if you don't want to receive mails from me,kindly inform me so
that i should delete your name from my mailing list.
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के लिए पहले 28 जून 2014 को चयन समिति की बैठक बुलाई थी जिसमें बिना
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उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग के निराशाजनक प्रदर्शन के विरोध में धरना
और यूपी के हालिया कार्यरत 9 सूचना आयुक्तों पर अक्षमता का आरोप लगाते
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आयोजन येश्वर्याज सेवा संस्थान, एक्शन ग्रुप फॉर राइट टु इनफार्मेशन ,
आरटीआई कॉउंसिल ऑफ़ यूपी , ट्रैप संस्था अलीगढ , सूचना का अधिकार
कार्यकर्ता एसोसिएशन, पीपल्स फोरम, मानव विकास सेवा समिति मुरादाबाद , जन
सूचना अधिकार जागरूकता मंच,भ्रष्टाचार हटाओ देश बचाओ मंच , एसआरपीडी
मेमोरियल समाज सेवा संस्थान , आल इण्डिया शैडयूल्ड कास्ट्स एंड शैडयूल्ड
ट्राइब्स एम्पलाइज वेलफेयर एसोसिएशन, भागीदारी मंच, सार्वजनिक जबाबदेही
भारत निर्माण मंच आदि संगठनों के साथ संयुक्त रूप से किया गया. कार्यक्रम
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जस्टिस लखनऊ और उत्तर प्रदेश रोडवेज संविदा कर्मचारी संघ ने भी तहरीर को
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Only 7% IAS officers filed property returns
http://www.sunday-guardian.com/news/only-7-ias-officers-filed-property-returns
Only 7% IAS officers filed property returns
Out of the serving 4,619 officers, only 311 IAS officers have filed the returns.
NAVTAN KUMAR New Delhi | 25th Oct 2014
DoPT's IPR rules are listed on its website.
everal Indian Administrative Service (IAS) officers are reluctant to
file annual property returns, a mandatory obligation under the Lokpal
and Lokayukta Act.
According to an RTI reply, the Department of Personnel and Training
(DoPT) has said that only "311 IAS officers have filed online property
returns in the prescribed format as mentioned in the Lokpal and
Lokayukta Act".
Though the sanctioned strength of the IAS is 6,270, the total number
of serving IAS officers in the country is 4,619, as per information
provided by the DoPT. That means only about 7% of them have filed
their returns.
In July, the DoPT under the Ministry of Personnel, Public Grievances
and Pensions, had issued a notification that under the Lokpal and
Lokayuktas Act, every public servant must every year file a
declaration, information and annual returns of his assets and
liabilities as of 31 March on or before 31 July. However, for the
current year, the last date of filing such returns was postponed to 15
September.
The government had introduced the facility of filing the returns
online, for which an application named Property Related Information
System (PRISM) has been designed.
"If IAS officers themselves do not follow the government's directives,
how can they expect others to do so?" asked Sanjay Sharma, the
Lucknow-based RTI activist who filed the query.
"Corruption is another aspect of this issue. The fact that they are
reluctant to share information about their property hints at possible
corruption. Our Prime Minister's USP is good governance. If IAS
officers conceal information about their property, how can Narendra
Modi's vision of providing good and efficient governance be realised?"
Sharma asked.
Only 7% IAS officers filed property returns
Out of the serving 4,619 officers, only 311 IAS officers have filed the returns.
NAVTAN KUMAR New Delhi | 25th Oct 2014
DoPT's IPR rules are listed on its website.
everal Indian Administrative Service (IAS) officers are reluctant to
file annual property returns, a mandatory obligation under the Lokpal
and Lokayukta Act.
According to an RTI reply, the Department of Personnel and Training
(DoPT) has said that only "311 IAS officers have filed online property
returns in the prescribed format as mentioned in the Lokpal and
Lokayukta Act".
Though the sanctioned strength of the IAS is 6,270, the total number
of serving IAS officers in the country is 4,619, as per information
provided by the DoPT. That means only about 7% of them have filed
their returns.
In July, the DoPT under the Ministry of Personnel, Public Grievances
and Pensions, had issued a notification that under the Lokpal and
Lokayuktas Act, every public servant must every year file a
declaration, information and annual returns of his assets and
liabilities as of 31 March on or before 31 July. However, for the
current year, the last date of filing such returns was postponed to 15
September.
The government had introduced the facility of filing the returns
online, for which an application named Property Related Information
System (PRISM) has been designed.
"If IAS officers themselves do not follow the government's directives,
how can they expect others to do so?" asked Sanjay Sharma, the
Lucknow-based RTI activist who filed the query.
"Corruption is another aspect of this issue. The fact that they are
reluctant to share information about their property hints at possible
corruption. Our Prime Minister's USP is good governance. If IAS
officers conceal information about their property, how can Narendra
Modi's vision of providing good and efficient governance be realised?"
Sharma asked.
Tuesday, October 21, 2014
सोचिये छात्रों को क्या और कैसी शिक्षा देता होगा अखिलेश राज के भ्रष्ट आईएएस अधिकारी प्रमुख सचिव समाज कल्याण सुनील कुमार का कृपापात्र ये श्री ४२० अध्यापक पवन कुमार मिश्रा ?
सोचिये छात्रों को क्या और कैसी शिक्षा देता होगा अखिलेश राज के भ्रष्ट आईएएस अधिकारी प्रमुख सचिव समाज कल्याण सुनील कुमार का कृपापात्र ये श्री ४२० अध्यापक पवन कुमार मिश्रा ?
http://epaper.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20141021g_006163009&ileft=619&itop=403&zoomRatio=211&AN=20141021g_006163009
पाॅलीटेक्निक का कार्यशाला अधीक्षक कोर्ट में तलब
लखनऊ (ब्यूरो)। फर्जी प्रमाण पत्र के सहारे पालीटेक्निक कॉलेज में नौकरी करने के आरोपों को लेकर राजकीय गोविन्द बल्लब पंत पालीटेक्निक के कार्यशाला अधीक्षक पवन कुमार मिश्रा के खिलाफ सीजेएम सुनील कुमार ने सम्मन जारी किया है। कोर्ट ने आरोपी को तलब करते हुए मामले की सुनवाई के लिए 22 नवंबर की तारीख तय की है।
पत्रावली के अनुसार राजाजीपुरम की रहने वाली उर्वशी शर्मा ने 28 जनवरी 2008 को काकोरी थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि उसके पति संजय शर्मा का चयन 29 जून 1995 को लोक सेवा आयोग से हो गया था। इसी बीच मोहान रोड स्थित गोविन्द बल्लभ पंत पालीटेक्निक में 40 रुपये प्रति कक्षा के हिसाब से पढ़ा रहे पवन कुमार मिश्रा ने हाईकोर्ट में खुद को बेरोजगार तथा मैकेनिकल इंजीनियर बताकर नियुक्ति पर स्टे
ले लिया था। कहा गया कि पवन मिश्रा ने खुद को मैकेनिकल इंजीनियर बताया जबकि वह प्रोडक्शन में इंजीनियर है। आरोप लगाया गया कि पवन मिश्रा ने नौकरी प्राप्त करने के लिए जिस समयावधि में खुद को बेरोजगार बताया था उसी समय वह अवध इंडस्ट्रीज का कार्य अनुभव का प्रमाण पत्र लगाकर सेवा लाभ ले लिया। इस वजह से संजय शर्मा को 5 वर्ष से अधिक समय तक सेवा से वंचित रहना पड़ा।
काकोरी पुलिस ने मामले की विवेचना के बाद 20 सितंबर 2008 को मामले में फाइनल रिपोर्ट लगा दी थी। जिसको उर्वशी शर्मा द्वारा चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने वादिनी के पेश किए साक्ष्य देखने के बाद पवन कुमार मिश्रा को प्रथम दृष्टया आरोपी पाते हुए तलब किया है।
http://epaper.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20141021g_006163009&ileft=619&itop=403&zoomRatio=211&AN=20141021g_006163009
पाॅलीटेक्निक का कार्यशाला अधीक्षक कोर्ट में तलब
लखनऊ (ब्यूरो)। फर्जी प्रमाण पत्र के सहारे पालीटेक्निक कॉलेज में नौकरी करने के आरोपों को लेकर राजकीय गोविन्द बल्लब पंत पालीटेक्निक के कार्यशाला अधीक्षक पवन कुमार मिश्रा के खिलाफ सीजेएम सुनील कुमार ने सम्मन जारी किया है। कोर्ट ने आरोपी को तलब करते हुए मामले की सुनवाई के लिए 22 नवंबर की तारीख तय की है।
पत्रावली के अनुसार राजाजीपुरम की रहने वाली उर्वशी शर्मा ने 28 जनवरी 2008 को काकोरी थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि उसके पति संजय शर्मा का चयन 29 जून 1995 को लोक सेवा आयोग से हो गया था। इसी बीच मोहान रोड स्थित गोविन्द बल्लभ पंत पालीटेक्निक में 40 रुपये प्रति कक्षा के हिसाब से पढ़ा रहे पवन कुमार मिश्रा ने हाईकोर्ट में खुद को बेरोजगार तथा मैकेनिकल इंजीनियर बताकर नियुक्ति पर स्टे
ले लिया था। कहा गया कि पवन मिश्रा ने खुद को मैकेनिकल इंजीनियर बताया जबकि वह प्रोडक्शन में इंजीनियर है। आरोप लगाया गया कि पवन मिश्रा ने नौकरी प्राप्त करने के लिए जिस समयावधि में खुद को बेरोजगार बताया था उसी समय वह अवध इंडस्ट्रीज का कार्य अनुभव का प्रमाण पत्र लगाकर सेवा लाभ ले लिया। इस वजह से संजय शर्मा को 5 वर्ष से अधिक समय तक सेवा से वंचित रहना पड़ा।
काकोरी पुलिस ने मामले की विवेचना के बाद 20 सितंबर 2008 को मामले में फाइनल रिपोर्ट लगा दी थी। जिसको उर्वशी शर्मा द्वारा चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने वादिनी के पेश किए साक्ष्य देखने के बाद पवन कुमार मिश्रा को प्रथम दृष्टया आरोपी पाते हुए तलब किया है।
सोचिये मोहान रोड स्थित गोविन्द बल्लभ पंत पालीटेक्निक के छात्रों को क्या और कैसी शिक्षा देता होगा अखिलेश राज के भ्रष्ट आईएएस अधिकारी प्रमुख सचिव समाज कल्याण सुनील कुमार का कृपापात्र ये श्री ४२० अध्यापक पवन कुमार मिश्रा ?
सोचिये मोहान रोड स्थित गोविन्द बल्लभ पंत पालीटेक्निक के छात्रों को
क्या और कैसी शिक्षा देता होगा अखिलेश राज के भ्रष्ट आईएएस अधिकारी
प्रमुख सचिव समाज कल्याण सुनील कुमार का कृपापात्र ये श्री ४२० अध्यापक
पवन कुमार मिश्रा ?
================================================================
पाॅलीटेक्निक का कार्यशाला अधीक्षक कोर्ट में तलब
लखनऊ (ब्यूरो)। फर्जी प्रमाण पत्र के सहारे पालीटेक्निक कॉलेज में नौकरी
करने के आरोपों को लेकर राजकीय गोविन्द बल्लब पंत पालीटेक्निक के
कार्यशाला अधीक्षक पवन कुमार मिश्रा के खिलाफ सीजेएम सुनील कुमार ने
सम्मन जारी किया है। कोर्ट ने आरोपी को तलब करते हुए मामले की सुनवाई के
लिए 22 नवंबर की तारीख तय की है।
पत्रावली के अनुसार राजाजीपुरम की रहने वाली उर्वशी शर्मा ने 28 जनवरी
2008 को काकोरी थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि उसके पति संजय शर्मा का
चयन 29 जून 1995 को लोक सेवा आयोग से हो गया था। इसी बीच मोहान रोड स्थित
गोविन्द बल्लभ पंत पालीटेक्निक में 40 रुपये प्रति कक्षा के हिसाब से
पढ़ा रहे पवन कुमार मिश्रा ने हाईकोर्ट में खुद को बेरोजगार तथा मैकेनिकल
इंजीनियर बताकर नियुक्ति पर स्टे ले लिया था। कहा गया कि पवन मिश्रा ने
खुद को मैकेनिकल इंजीनियर बताया जबकि वह प्रोडक्शन में इंजीनियर है। आरोप
लगाया गया कि पवन मिश्रा ने नौकरी प्राप्त करने के लिए जिस समयावधि में
खुद को बेरोजगार बताया था उसी समय वह अवध इंडस्ट्रीज का कार्य अनुभव का
प्रमाण पत्र लगाकर सेवा लाभ ले लिया। इस वजह से संजय शर्मा को 5 वर्ष से
अधिक समय तक सेवा से वंचित रहना पड़ा।
काकोरी पुलिस ने मामले की विवेचना के बाद 20 सितंबर 2008 को मामले में
फाइनल रिपोर्ट लगा दी थी। जिसको उर्वशी शर्मा द्वारा चुनौती दी गई थी।
कोर्ट ने वादिनी के पेश किए साक्ष्य देखने के बाद पवन कुमार मिश्रा को
प्रथम दृष्टया आरोपी पाते हुए तलब किया है।
http://epaper.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20141021g_006163009&ileft=619&itop=403&zoomRatio=211&AN=20141021g_006163009
--
-Sincerely Yours,
Urvashi Sharma
Secretary - YAISHWARYAJ SEVA SANSTHAAN
101,Narayan Tower, Opposite F block Idgah
Rajajipuram,Lucknow-226017,Uttar Pradesh,India
Contact 9369613513
Right to Information Helpline 8081898081
Helpline Against Corruption 9455553838
http://upcpri.blogspot.in/
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that i should delete your name from my mailing list.
क्या और कैसी शिक्षा देता होगा अखिलेश राज के भ्रष्ट आईएएस अधिकारी
प्रमुख सचिव समाज कल्याण सुनील कुमार का कृपापात्र ये श्री ४२० अध्यापक
पवन कुमार मिश्रा ?
================================================================
पाॅलीटेक्निक का कार्यशाला अधीक्षक कोर्ट में तलब
लखनऊ (ब्यूरो)। फर्जी प्रमाण पत्र के सहारे पालीटेक्निक कॉलेज में नौकरी
करने के आरोपों को लेकर राजकीय गोविन्द बल्लब पंत पालीटेक्निक के
कार्यशाला अधीक्षक पवन कुमार मिश्रा के खिलाफ सीजेएम सुनील कुमार ने
सम्मन जारी किया है। कोर्ट ने आरोपी को तलब करते हुए मामले की सुनवाई के
लिए 22 नवंबर की तारीख तय की है।
पत्रावली के अनुसार राजाजीपुरम की रहने वाली उर्वशी शर्मा ने 28 जनवरी
2008 को काकोरी थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि उसके पति संजय शर्मा का
चयन 29 जून 1995 को लोक सेवा आयोग से हो गया था। इसी बीच मोहान रोड स्थित
गोविन्द बल्लभ पंत पालीटेक्निक में 40 रुपये प्रति कक्षा के हिसाब से
पढ़ा रहे पवन कुमार मिश्रा ने हाईकोर्ट में खुद को बेरोजगार तथा मैकेनिकल
इंजीनियर बताकर नियुक्ति पर स्टे ले लिया था। कहा गया कि पवन मिश्रा ने
खुद को मैकेनिकल इंजीनियर बताया जबकि वह प्रोडक्शन में इंजीनियर है। आरोप
लगाया गया कि पवन मिश्रा ने नौकरी प्राप्त करने के लिए जिस समयावधि में
खुद को बेरोजगार बताया था उसी समय वह अवध इंडस्ट्रीज का कार्य अनुभव का
प्रमाण पत्र लगाकर सेवा लाभ ले लिया। इस वजह से संजय शर्मा को 5 वर्ष से
अधिक समय तक सेवा से वंचित रहना पड़ा।
काकोरी पुलिस ने मामले की विवेचना के बाद 20 सितंबर 2008 को मामले में
फाइनल रिपोर्ट लगा दी थी। जिसको उर्वशी शर्मा द्वारा चुनौती दी गई थी।
कोर्ट ने वादिनी के पेश किए साक्ष्य देखने के बाद पवन कुमार मिश्रा को
प्रथम दृष्टया आरोपी पाते हुए तलब किया है।
http://epaper.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20141021g_006163009&ileft=619&itop=403&zoomRatio=211&AN=20141021g_006163009
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-Sincerely Yours,
Urvashi Sharma
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101,Narayan Tower, Opposite F block Idgah
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Sunday, October 19, 2014
'तहरीर' के धरने और सूचना आयुक्तों को चुनौती देने से दबाब में आयी सरकार ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सूचना आयुक्त और 1 सूचना आयुक्त के चयन के लिए बीते बृहस्पतिवार होने वाली बैठक स्थगित
Taken from Facebook Wall of Sanjay Sharma
'तहरीर' के धरने और सूचना आयुक्तों को चुनौती देने से दबाब में आयी सरकार ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सूचना आयुक्त और 1 सूचना आयुक्त के चयन के लिए बीते बृहस्पतिवार होने वाली बैठक स्थगित कर दी है l 'तहरीर' के विरोध के चलते ही यह बैठक इसके पहले भी एक बार स्थगित हो चुकी है।
उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त और 1 सूचना आयुक्तका पद 30 जून 2014 से खाली है। इससे पहले सरकार ने इन दोनों पदों पर चयन के लिए पहले 28 जून 2014 को चयन समिति की बैठक बुलाई थी जिसमें बिना आवेदन के सीधे चयन समिति द्वारा इन दोनों पदों पर चयन की तैयारी थी जिसका हमारे द्वारा कड़ा विरोध किया गया था और पूर्व की भांति आवेदन मंगाने की मांग की गयी थी l हमारे दबाब में यह बैठक
स्थगित कर दी गई थी और प्रशासनिक सुधार विभाग द्वारा बीते अगस्त में इन दोनों पदों पर चयन के लिए आवेदन मांगे गए थे l
लोक जीवन में पारदर्शिता संवर्धन, जबाबदेही निर्धारण और आमजन के मानवाधिकारों के संरक्षण के हितार्थ उत्तर प्रदेश में जमीनी स्तर पर कार्यशील संस्था 'तहरीर' द्वारा आरटीआई एक्ट की नौवीं सालगिरह पर दिनांक 12 अक्टूबर 2014 को राजधानी लखनऊ के लक्ष्मण मेला मैदान धरना स्थल पर उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग के निराशाजनक प्रदर्शन के विरोध में धरना और यूपी के हालिया कार्यरत 9 सूचना
आयुक्तों पर अक्षमता का आरोप लगाते हुए उनको कैमरे के सामने एक्ट पर खुली बहस की चुनौती के कार्यक्रम का आयोजन येश्वर्याज सेवा संस्थान, एक्शन ग्रुप फॉर राइट टु इनफार्मेशन , आरटीआई कॉउंसिल ऑफ़ यूपी , ट्रैप संस्था अलीगढ , सूचना का अधिकार कार्यकर्ता एसोसिएशन, पीपल्स फोरम, मानव विकास सेवा समिति मुरादाबाद , जन सूचना अधिकार जागरूकता मंच,भ्रष्टाचार हटाओ देश बचाओ मंच , एसआरपीडी
मेमोरियल समाज सेवा संस्थान , आल इण्डिया शैडयूल्ड कास्ट्स एंड शैडयूल्ड ट्राइब्स एम्पलाइज वेलफेयर एसोसिएशन, भागीदारी मंच, सार्वजनिक जबाबदेही भारत निर्माण मंच आदि संगठनों के साथ संयुक्त रूप से किया गया l कार्यक्रम में ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया लखनऊ चैप्टर, सोसाइटी फॉर फ़ास्ट जस्टिस लखनऊ और उत्तर प्रदेश रोडवेज संविदा कर्मचारी संघ ने भी तहरीर को समर्थन प्रदान
करते हुए शिरकत की थी l 'तहरीर' इन सभी संगठनों को उनके सहयोग के लिए धन्यवाद ज्ञापित करता है l इस सम्बन्ध में ज्ञापन को जिला प्रशासन के माध्यम से भेजने के साथ साथ हमारे द्वारा सीधे उत्तर प्रदेश के राज्यपाल महोदय को तथा भारत के मुख्य न्यायाधीश को भी प्रेषित कर दिया गया है जो इस स्टेटस के साथ अपलोड किया जा रहा है l
'तहरीर' के धरने और सूचना आयुक्तों को चुनौती देने से दबाब में आयी सरकार ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सूचना आयुक्त और 1 सूचना आयुक्त के चयन के लिए बीते बृहस्पतिवार होने वाली बैठक स्थगित कर दी है l 'तहरीर' के विरोध के चलते ही यह बैठक इसके पहले भी एक बार स्थगित हो चुकी है।
उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त और 1 सूचना आयुक्तका पद 30 जून 2014 से खाली है। इससे पहले सरकार ने इन दोनों पदों पर चयन के लिए पहले 28 जून 2014 को चयन समिति की बैठक बुलाई थी जिसमें बिना आवेदन के सीधे चयन समिति द्वारा इन दोनों पदों पर चयन की तैयारी थी जिसका हमारे द्वारा कड़ा विरोध किया गया था और पूर्व की भांति आवेदन मंगाने की मांग की गयी थी l हमारे दबाब में यह बैठक
स्थगित कर दी गई थी और प्रशासनिक सुधार विभाग द्वारा बीते अगस्त में इन दोनों पदों पर चयन के लिए आवेदन मांगे गए थे l
लोक जीवन में पारदर्शिता संवर्धन, जबाबदेही निर्धारण और आमजन के मानवाधिकारों के संरक्षण के हितार्थ उत्तर प्रदेश में जमीनी स्तर पर कार्यशील संस्था 'तहरीर' द्वारा आरटीआई एक्ट की नौवीं सालगिरह पर दिनांक 12 अक्टूबर 2014 को राजधानी लखनऊ के लक्ष्मण मेला मैदान धरना स्थल पर उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग के निराशाजनक प्रदर्शन के विरोध में धरना और यूपी के हालिया कार्यरत 9 सूचना
आयुक्तों पर अक्षमता का आरोप लगाते हुए उनको कैमरे के सामने एक्ट पर खुली बहस की चुनौती के कार्यक्रम का आयोजन येश्वर्याज सेवा संस्थान, एक्शन ग्रुप फॉर राइट टु इनफार्मेशन , आरटीआई कॉउंसिल ऑफ़ यूपी , ट्रैप संस्था अलीगढ , सूचना का अधिकार कार्यकर्ता एसोसिएशन, पीपल्स फोरम, मानव विकास सेवा समिति मुरादाबाद , जन सूचना अधिकार जागरूकता मंच,भ्रष्टाचार हटाओ देश बचाओ मंच , एसआरपीडी
मेमोरियल समाज सेवा संस्थान , आल इण्डिया शैडयूल्ड कास्ट्स एंड शैडयूल्ड ट्राइब्स एम्पलाइज वेलफेयर एसोसिएशन, भागीदारी मंच, सार्वजनिक जबाबदेही भारत निर्माण मंच आदि संगठनों के साथ संयुक्त रूप से किया गया l कार्यक्रम में ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया लखनऊ चैप्टर, सोसाइटी फॉर फ़ास्ट जस्टिस लखनऊ और उत्तर प्रदेश रोडवेज संविदा कर्मचारी संघ ने भी तहरीर को समर्थन प्रदान
करते हुए शिरकत की थी l 'तहरीर' इन सभी संगठनों को उनके सहयोग के लिए धन्यवाद ज्ञापित करता है l इस सम्बन्ध में ज्ञापन को जिला प्रशासन के माध्यम से भेजने के साथ साथ हमारे द्वारा सीधे उत्तर प्रदेश के राज्यपाल महोदय को तथा भारत के मुख्य न्यायाधीश को भी प्रेषित कर दिया गया है जो इस स्टेटस के साथ अपलोड किया जा रहा है l
तहरीर' के धरने और सूचना आयुक्तों को चुनौती देने से दबाब में आयी सरकार ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सूचना आयुक्त और 1 सूचना आयुक्त के चयन के लिए बीते बृहस्पतिवार होने वाली बैठक स्थगित
Taken From Facebook wall of Sanjay Sharma
'तहरीर' के धरने और सूचना आयुक्तों को चुनौती देने से दबाब में आयी सरकार
ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सूचना आयुक्त और 1 सूचना आयुक्त के चयन के लिए
बीते बृहस्पतिवार होने वाली बैठक स्थगित कर दी है l 'तहरीर' के विरोध के
चलते ही यह बैठक इसके पहले भी एक बार स्थगित हो चुकी है।
उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त और 1 सूचना
आयुक्तका पद 30 जून 2014 से खाली है। इससे पहले सरकार ने इन दोनों पदों
पर चयन के लिए पहले 28 जून 2014 को चयन समिति की बैठक बुलाई थी जिसमें
बिना आवेदन के सीधे चयन समिति द्वारा इन दोनों पदों पर चयन की तैयारी थी
जिसका हमारे द्वारा कड़ा विरोध किया गया था और पूर्व की भांति आवेदन
मंगाने की मांग की गयी थी l हमारे दबाब में यह बैठक स्थगित कर दी गई थी
और प्रशासनिक सुधार विभाग द्वारा बीते अगस्त में इन दोनों पदों पर चयन के
लिए आवेदन मांगे गए थे l
लोक जीवन में पारदर्शिता संवर्धन, जबाबदेही निर्धारण और आमजन के
मानवाधिकारों के संरक्षण के हितार्थ उत्तर प्रदेश में जमीनी स्तर पर
कार्यशील संस्था 'तहरीर' द्वारा आरटीआई एक्ट की नौवीं सालगिरह पर दिनांक
12 अक्टूबर 2014 को राजधानी लखनऊ के लक्ष्मण मेला मैदान धरना स्थल पर
उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग के निराशाजनक प्रदर्शन के विरोध में धरना
और यूपी के हालिया कार्यरत 9 सूचना आयुक्तों पर अक्षमता का आरोप लगाते
हुए उनको कैमरे के सामने एक्ट पर खुली बहस की चुनौती के कार्यक्रम का
आयोजन येश्वर्याज सेवा संस्थान, एक्शन ग्रुप फॉर राइट टु इनफार्मेशन ,
आरटीआई कॉउंसिल ऑफ़ यूपी , ट्रैप संस्था अलीगढ , सूचना का अधिकार
कार्यकर्ता एसोसिएशन, पीपल्स फोरम, मानव विकास सेवा समिति मुरादाबाद , जन
सूचना अधिकार जागरूकता मंच,भ्रष्टाचार हटाओ देश बचाओ मंच , एसआरपीडी
मेमोरियल समाज सेवा संस्थान , आल इण्डिया शैडयूल्ड कास्ट्स एंड शैडयूल्ड
ट्राइब्स एम्पलाइज वेलफेयर एसोसिएशन, भागीदारी मंच, सार्वजनिक जबाबदेही
भारत निर्माण मंच आदि संगठनों के साथ संयुक्त रूप से किया गया l
कार्यक्रम में ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया लखनऊ चैप्टर, सोसाइटी फॉर
फ़ास्ट जस्टिस लखनऊ और उत्तर प्रदेश रोडवेज संविदा कर्मचारी संघ ने भी
तहरीर को समर्थन प्रदान करते हुए शिरकत की थी l 'तहरीर' इन सभी संगठनों
को उनके सहयोग के लिए धन्यवाद ज्ञापित करता है l इस सम्बन्ध में ज्ञापन
को जिला प्रशासन के माध्यम से भेजने के साथ साथ हमारे द्वारा सीधे उत्तर
प्रदेश के राज्यपाल महोदय को तथा भारत के मुख्य न्यायाधीश को भी प्रेषित
कर दिया गया है जो इस स्टेटस के साथ अपलोड किया जा रहा है l
'तहरीर' के धरने और सूचना आयुक्तों को चुनौती देने से दबाब में आयी सरकार
ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सूचना आयुक्त और 1 सूचना आयुक्त के चयन के लिए
बीते बृहस्पतिवार होने वाली बैठक स्थगित कर दी है l 'तहरीर' के विरोध के
चलते ही यह बैठक इसके पहले भी एक बार स्थगित हो चुकी है।
उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त और 1 सूचना
आयुक्तका पद 30 जून 2014 से खाली है। इससे पहले सरकार ने इन दोनों पदों
पर चयन के लिए पहले 28 जून 2014 को चयन समिति की बैठक बुलाई थी जिसमें
बिना आवेदन के सीधे चयन समिति द्वारा इन दोनों पदों पर चयन की तैयारी थी
जिसका हमारे द्वारा कड़ा विरोध किया गया था और पूर्व की भांति आवेदन
मंगाने की मांग की गयी थी l हमारे दबाब में यह बैठक स्थगित कर दी गई थी
और प्रशासनिक सुधार विभाग द्वारा बीते अगस्त में इन दोनों पदों पर चयन के
लिए आवेदन मांगे गए थे l
लोक जीवन में पारदर्शिता संवर्धन, जबाबदेही निर्धारण और आमजन के
मानवाधिकारों के संरक्षण के हितार्थ उत्तर प्रदेश में जमीनी स्तर पर
कार्यशील संस्था 'तहरीर' द्वारा आरटीआई एक्ट की नौवीं सालगिरह पर दिनांक
12 अक्टूबर 2014 को राजधानी लखनऊ के लक्ष्मण मेला मैदान धरना स्थल पर
उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग के निराशाजनक प्रदर्शन के विरोध में धरना
और यूपी के हालिया कार्यरत 9 सूचना आयुक्तों पर अक्षमता का आरोप लगाते
हुए उनको कैमरे के सामने एक्ट पर खुली बहस की चुनौती के कार्यक्रम का
आयोजन येश्वर्याज सेवा संस्थान, एक्शन ग्रुप फॉर राइट टु इनफार्मेशन ,
आरटीआई कॉउंसिल ऑफ़ यूपी , ट्रैप संस्था अलीगढ , सूचना का अधिकार
कार्यकर्ता एसोसिएशन, पीपल्स फोरम, मानव विकास सेवा समिति मुरादाबाद , जन
सूचना अधिकार जागरूकता मंच,भ्रष्टाचार हटाओ देश बचाओ मंच , एसआरपीडी
मेमोरियल समाज सेवा संस्थान , आल इण्डिया शैडयूल्ड कास्ट्स एंड शैडयूल्ड
ट्राइब्स एम्पलाइज वेलफेयर एसोसिएशन, भागीदारी मंच, सार्वजनिक जबाबदेही
भारत निर्माण मंच आदि संगठनों के साथ संयुक्त रूप से किया गया l
कार्यक्रम में ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया लखनऊ चैप्टर, सोसाइटी फॉर
फ़ास्ट जस्टिस लखनऊ और उत्तर प्रदेश रोडवेज संविदा कर्मचारी संघ ने भी
तहरीर को समर्थन प्रदान करते हुए शिरकत की थी l 'तहरीर' इन सभी संगठनों
को उनके सहयोग के लिए धन्यवाद ज्ञापित करता है l इस सम्बन्ध में ज्ञापन
को जिला प्रशासन के माध्यम से भेजने के साथ साथ हमारे द्वारा सीधे उत्तर
प्रदेश के राज्यपाल महोदय को तथा भारत के मुख्य न्यायाधीश को भी प्रेषित
कर दिया गया है जो इस स्टेटस के साथ अपलोड किया जा रहा है l
Saturday, October 18, 2014
उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री के भाई के ससुर को सूचना आयुक्त नियुक्त करने का उदाहरण देते हुए सूचना आयोगों में सूचना आयुक्तों की नियुक्ति में भाई-भतीजावाद रोकने के लिए नियमों में संशोधन करने की याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर
सूचना आयोग में भाई-भतीजावाद रोकने की मांग
नई दिल्ली, श्याम सुमन
First Published:18-10-14 09:22 PM
Last Updated:18-10-14 09:22 PM
उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री के भाई के ससुर को सूचना आयुक्त नियुक्त करने का उदाहरण देते हुए सूचना आयोगों में सूचना आयुक्तों की नियुक्ति में भाई-भतीजावाद रोकने के लिए नियमों में संशोधन करने की याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई है।
लोक प्रहरी संगठन ने याचिका में कहा है कि सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के नियमों में उम्मीदवारों के लिए सार्वजनिक जीवन में 'ख्यातिलब्ध हस्ती' की परिभाषा स्पष्ट करनी चाहिए, क्योंकि इस श्रेणी के तहत सरकारें अपनी मर्जी के व्यक्तियों को सूचना आयुक्त बना रही हैं, जो न तो स्वतंत्र हैं और न ही निष्पक्ष। इस प्रक्रिया में पारदिर्शता है, क्योंकि शार्ट लिस्ट किए गए लोगों के नाम सार्वजनिक नहीं किए जाते।
लोकप्रहरी के संगठन के संयोजक तथा पूर्व आईएएस एसएन शुक्ला ने कहा कि याचिका में यूपी में हाल ही में आठ सूचना आयुक्त नियुक्त किए गए हैं, जिन्हें हाईकोर्ट में चुनौती दी जा चुकी है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट इस बारे में कानून बना सकता है, क्योंकि सूचना के अधिकार कानून के तहत नियुक्तियों के बारे में नियम अब तक नहीं बनाए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट कई फैसलों में तय कर चुका है कि जहां विधायिका ने कानून नहीं बनाया है, वहां नागरिकों के मौलिक अधिकारों को संरक्षित करने के लिए न्यायिक हस्तक्षेप से कानून बनाए जा सकते हैं।
याचिका में शुक्ला ने कहा कि सार्वजनिक जीवन में 'ख्यातिलब्ध हस्ती' में सामाजिक कार्यो में पद्मभूषण या पद्मविभूषण, राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त व्यक्तियों को रखना चाहिए। साथ ही उन्हें व्यापक ज्ञान और अनुभव भी होना चाहिए। यह योग्यता ऐसी हो जिसकी पुष्टि की जा सके।
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एचएल दत्तू की पीठ इस याचिका पर 15 दिसंबर को सुनवाई करेगी। लोकप्रहरी की याचिका पर ही सुप्रीम कोर्ट गत वर्ष आपराधिक मामलों में दंडित जनप्रतिनिधियों को तुरंत प्रभाव से अयोग्य घोषित करने का फैसला दिया था।
लोक प्रहरी संगठन ने याचिका में कहा है कि सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के नियमों में उम्मीदवारों के लिए सार्वजनिक जीवन में 'ख्यातिलब्ध हस्ती' की परिभाषा स्पष्ट करनी चाहिए, क्योंकि इस श्रेणी के तहत सरकारें अपनी मर्जी के व्यक्तियों को सूचना आयुक्त बना रही हैं, जो न तो स्वतंत्र हैं और न ही निष्पक्ष। इस प्रक्रिया में पारदिर्शता है, क्योंकि शार्ट लिस्ट किए गए लोगों के नाम सार्वजनिक नहीं किए जाते।
लोकप्रहरी के संगठन के संयोजक तथा पूर्व आईएएस एसएन शुक्ला ने कहा कि याचिका में यूपी में हाल ही में आठ सूचना आयुक्त नियुक्त किए गए हैं, जिन्हें हाईकोर्ट में चुनौती दी जा चुकी है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट इस बारे में कानून बना सकता है, क्योंकि सूचना के अधिकार कानून के तहत नियुक्तियों के बारे में नियम अब तक नहीं बनाए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट कई फैसलों में तय कर चुका है कि जहां विधायिका ने कानून नहीं बनाया है, वहां नागरिकों के मौलिक अधिकारों को संरक्षित करने के लिए न्यायिक हस्तक्षेप से कानून बनाए जा सकते हैं।
याचिका में शुक्ला ने कहा कि सार्वजनिक जीवन में 'ख्यातिलब्ध हस्ती' में सामाजिक कार्यो में पद्मभूषण या पद्मविभूषण, राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त व्यक्तियों को रखना चाहिए। साथ ही उन्हें व्यापक ज्ञान और अनुभव भी होना चाहिए। यह योग्यता ऐसी हो जिसकी पुष्टि की जा सके।
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एचएल दत्तू की पीठ इस याचिका पर 15 दिसंबर को सुनवाई करेगी। लोकप्रहरी की याचिका पर ही सुप्रीम कोर्ट गत वर्ष आपराधिक मामलों में दंडित जनप्रतिनिधियों को तुरंत प्रभाव से अयोग्य घोषित करने का फैसला दिया था।
उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री के भाई के ससुर को सूचना आयुक्त नियुक्त करने का उदाहरण देते हुए सूचना आयोगों में सूचना आयुक्तों की नियुक्ति में भाई-भतीजावाद रोकने के लिए नियमों में संशोधन करने की याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर
http://www.livehindustan.com/news/desh/deshlocalnews/article1--39-0-457320.html
Image Loading बिलावल को जवाब नहीं देना चाहते इमरान नतीजा लाइव:
महाराष्ट्र में भाजपा को शुरुआती बढ़त, हरियाणा में भी आगे नतीजा लाइव:
महाराष्ट्र में भाजपा को शुरुआती बढ़त, हरियाणा में भी आगे नतीजा लाइव:
महाराष्ट्र में भाजपा को शुरुआती बढ़त, हरियाणा में भी आगे डीजी पर
आत्महत्या के लिए मजबूर करने का आरोप जम्मू-कश्मीर में चुनाव तारीख पर
और विचार करेगा आयोग हरियाणा में निर्दलियों से सम्पर्क साध रही है भाजपा
मोदी सरकार की राह में रोड़ा नहीं अटकाना चाहता संघ मोदी सरकार की राह
में रोड़ा नहीं अटकाना चाहता संघ मोदी सरकार की राह में रोड़ा नहीं
अटकाना चाहता संघ
सूचना आयोग में भाई-भतीजावाद रोकने की मांग
नई दिल्ली, श्याम सुमन
First Published:18-10-14 09:22 PM
Last Updated:18-10-14 09:22 PM
उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री के भाई के ससुर को सूचना आयुक्त नियुक्त
करने का उदाहरण देते हुए सूचना आयोगों में सूचना आयुक्तों की नियुक्ति
में भाई-भतीजावाद रोकने के लिए नियमों में संशोधन करने की याचिका सुप्रीम
कोर्ट में दायर की गई है।
लोक प्रहरी संगठन ने याचिका में कहा है कि सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के
नियमों में उम्मीदवारों के लिए सार्वजनिक जीवन में 'ख्यातिलब्ध हस्ती' की
परिभाषा स्पष्ट करनी चाहिए, क्योंकि इस श्रेणी के तहत सरकारें अपनी मर्जी
के व्यक्तियों को सूचना आयुक्त बना रही हैं, जो न तो स्वतंत्र हैं और न
ही निष्पक्ष। इस प्रक्रिया में पारदिर्शता है, क्योंकि शार्ट लिस्ट किए
गए लोगों के नाम सार्वजनिक नहीं किए जाते।
लोकप्रहरी के संगठन के संयोजक तथा पूर्व आईएएस एसएन शुक्ला ने कहा कि
याचिका में यूपी में हाल ही में आठ सूचना आयुक्त नियुक्त किए गए हैं,
जिन्हें हाईकोर्ट में चुनौती दी जा चुकी है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम
कोर्ट इस बारे में कानून बना सकता है, क्योंकि सूचना के अधिकार कानून के
तहत नियुक्तियों के बारे में नियम अब तक नहीं बनाए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट
कई फैसलों में तय कर चुका है कि जहां विधायिका ने कानून नहीं बनाया है,
वहां नागरिकों के मौलिक अधिकारों को संरक्षित करने के लिए न्यायिक
हस्तक्षेप से कानून बनाए जा सकते हैं।
याचिका में शुक्ला ने कहा कि सार्वजनिक जीवन में 'ख्यातिलब्ध हस्ती' में
सामाजिक कार्यो में पद्मभूषण या पद्मविभूषण, राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय
पुरस्कार प्राप्त व्यक्तियों को रखना चाहिए। साथ ही उन्हें व्यापक ज्ञान
और अनुभव भी होना चाहिए। यह योग्यता ऐसी हो जिसकी पुष्टि की जा सके।
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एचएल दत्तू की पीठ इस याचिका पर 15 दिसंबर को
सुनवाई करेगी। लोकप्रहरी की याचिका पर ही सुप्रीम कोर्ट गत वर्ष आपराधिक
मामलों में दंडित जनप्रतिनिधियों को तुरंत प्रभाव से अयोग्य घोषित करने
का फैसला दिया था।
--
-Sincerely Yours,
Urvashi Sharma
Secretary - YAISHWARYAJ SEVA SANSTHAAN
101,Narayan Tower, Opposite F block Idgah
Rajajipuram,Lucknow-226017,Uttar Pradesh,India
Contact 9369613513
Right to Information Helpline 8081898081
Helpline Against Corruption 9455553838
http://upcpri.blogspot.in/
Note : if you don't want to receive mails from me,kindly inform me so
that i should delete your name from my mailing list.
Image Loading बिलावल को जवाब नहीं देना चाहते इमरान नतीजा लाइव:
महाराष्ट्र में भाजपा को शुरुआती बढ़त, हरियाणा में भी आगे नतीजा लाइव:
महाराष्ट्र में भाजपा को शुरुआती बढ़त, हरियाणा में भी आगे नतीजा लाइव:
महाराष्ट्र में भाजपा को शुरुआती बढ़त, हरियाणा में भी आगे डीजी पर
आत्महत्या के लिए मजबूर करने का आरोप जम्मू-कश्मीर में चुनाव तारीख पर
और विचार करेगा आयोग हरियाणा में निर्दलियों से सम्पर्क साध रही है भाजपा
मोदी सरकार की राह में रोड़ा नहीं अटकाना चाहता संघ मोदी सरकार की राह
में रोड़ा नहीं अटकाना चाहता संघ मोदी सरकार की राह में रोड़ा नहीं
अटकाना चाहता संघ
सूचना आयोग में भाई-भतीजावाद रोकने की मांग
नई दिल्ली, श्याम सुमन
First Published:18-10-14 09:22 PM
Last Updated:18-10-14 09:22 PM
उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री के भाई के ससुर को सूचना आयुक्त नियुक्त
करने का उदाहरण देते हुए सूचना आयोगों में सूचना आयुक्तों की नियुक्ति
में भाई-भतीजावाद रोकने के लिए नियमों में संशोधन करने की याचिका सुप्रीम
कोर्ट में दायर की गई है।
लोक प्रहरी संगठन ने याचिका में कहा है कि सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के
नियमों में उम्मीदवारों के लिए सार्वजनिक जीवन में 'ख्यातिलब्ध हस्ती' की
परिभाषा स्पष्ट करनी चाहिए, क्योंकि इस श्रेणी के तहत सरकारें अपनी मर्जी
के व्यक्तियों को सूचना आयुक्त बना रही हैं, जो न तो स्वतंत्र हैं और न
ही निष्पक्ष। इस प्रक्रिया में पारदिर्शता है, क्योंकि शार्ट लिस्ट किए
गए लोगों के नाम सार्वजनिक नहीं किए जाते।
लोकप्रहरी के संगठन के संयोजक तथा पूर्व आईएएस एसएन शुक्ला ने कहा कि
याचिका में यूपी में हाल ही में आठ सूचना आयुक्त नियुक्त किए गए हैं,
जिन्हें हाईकोर्ट में चुनौती दी जा चुकी है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम
कोर्ट इस बारे में कानून बना सकता है, क्योंकि सूचना के अधिकार कानून के
तहत नियुक्तियों के बारे में नियम अब तक नहीं बनाए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट
कई फैसलों में तय कर चुका है कि जहां विधायिका ने कानून नहीं बनाया है,
वहां नागरिकों के मौलिक अधिकारों को संरक्षित करने के लिए न्यायिक
हस्तक्षेप से कानून बनाए जा सकते हैं।
याचिका में शुक्ला ने कहा कि सार्वजनिक जीवन में 'ख्यातिलब्ध हस्ती' में
सामाजिक कार्यो में पद्मभूषण या पद्मविभूषण, राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय
पुरस्कार प्राप्त व्यक्तियों को रखना चाहिए। साथ ही उन्हें व्यापक ज्ञान
और अनुभव भी होना चाहिए। यह योग्यता ऐसी हो जिसकी पुष्टि की जा सके।
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एचएल दत्तू की पीठ इस याचिका पर 15 दिसंबर को
सुनवाई करेगी। लोकप्रहरी की याचिका पर ही सुप्रीम कोर्ट गत वर्ष आपराधिक
मामलों में दंडित जनप्रतिनिधियों को तुरंत प्रभाव से अयोग्य घोषित करने
का फैसला दिया था।
--
-Sincerely Yours,
Urvashi Sharma
Secretary - YAISHWARYAJ SEVA SANSTHAAN
101,Narayan Tower, Opposite F block Idgah
Rajajipuram,Lucknow-226017,Uttar Pradesh,India
Contact 9369613513
Right to Information Helpline 8081898081
Helpline Against Corruption 9455553838
http://upcpri.blogspot.in/
Note : if you don't want to receive mails from me,kindly inform me so
that i should delete your name from my mailing list.
Friday, October 17, 2014
SP spent Rs 100 crore on airport at Mulayam's village, 'wasted money'
SP spent Rs 100 crore on airport at Mulayam's village, 'wasted money'
Sanjay Pandey, Lucknow, Oct 16,2014, DHNews Service:
Samajwadi Party governments have spent almost Rs 100 crore during its different tenures on the construction of a modern airport at Saifai, the native village of the SP supremo Mulayam Singh Yadav in Uttar Pradesh's Etawah district, about 250 kilometres from here.
The revelation came in the reply to a query filed under the Right to Information Act (RTI) by a Lucknow based RTI activist Sanjay Sharma.
In his reply to the RTI query, Deepak Srivastava, the Principal Information Officer, Civil Aviation Directorate, said that Rs 9,249.42 lakh had been spent on the construction, beautification and renovation of Saifai airport so far.
On the query about the details of national and international flights arriving and departing from the airport, the official replied that there was no record available with the directorate in this regard.
The PIO also expressed his inability to furnish information about the earnings, if any, from the airport to the public exchequer from the airport saying that it was not available.
Citing Section 8 of RTI Act, Srivastava denied information related to UP Chief Minister Akhilesh Yadav's flight details landing at and taking-off from Safai airport.
Sharma plans to file a second appeal to seek the same information.
"It is sheer wastage of the public money. Such a huge amount of money was wasted only to satisfy the ego of the ruling family. The common citizens of the state have not in any way benefitted from the airport," Sharma told Deccan Herald on Thursday.
He said that it was really surprising that so much of money was "wasted" on a project which was not only "useless" but had not brought anything in return.
Sharma said that he would also be sending a memorandum to Governor of UP to take action against IAS officials who approved the project of Safai airport as it was not viable at all.
Saifai also has a modern sports stadium and a super specialty hospital.
The SP organises 'Saifai Festival' every year in which many Bollywood personalities take part.
SP spent Rs 100 crore on airport at Mulayam's village, 'wasted money'
Sanjay Pandey, Lucknow, Oct 16,2014, DHNews Service:
Samajwadi Party governments have spent almost Rs 100 crore during its different tenures on the construction of a modern airport at Saifai, the native village of the SP supremo Mulayam Singh Yadav in Uttar Pradesh's Etawah district, about 250 kilometres from here.
The revelation came in the reply to a query filed under the Right to Information Act (RTI) by a Lucknow based RTI activist Sanjay Sharma.
In his reply to the RTI query, Deepak Srivastava, the Principal Information Officer, Civil Aviation Directorate, said that Rs 9,249.42 lakh had been spent on the construction, beautification and renovation of Saifai airport so far.
On the query about the details of national and international flights arriving and departing from the airport, the official replied that there was no record available with the directorate in this regard.
The PIO also expressed his inability to furnish information about the earnings, if any, from the airport to the public exchequer from the airport saying that it was not available.
Citing Section 8 of RTI Act, Srivastava denied information related to UP Chief Minister Akhilesh Yadav's flight details landing at and taking-off from Safai airport.
Sharma plans to file a second appeal to seek the same information.
"It is sheer wastage of the public money. Such a huge amount of money was wasted only to satisfy the ego of the ruling family. The common citizens of the state have not in any way benefitted from the airport," Sharma told Deccan Herald on Thursday.
He said that it was really surprising that so much of money was "wasted" on a project which was not only "useless" but had not brought anything in return.
Sharma said that he would also be sending a memorandum to Governor of UP to take action against IAS officials who approved the project of Safai airport as it was not viable at all.
Saifai also has a modern sports stadium and a super specialty hospital.
The SP organises 'Saifai Festival' every year in which many Bollywood personalities take part.
SP spent Rs 100 crore on airport at Mulayam's village, 'wasted money'
SP spent Rs 100 crore on airport at Mulayam's village, '... Samajwadi Party governments have spent almost Rs 100 crore during its different tenures on the construction of a modern airport at Saifai, the native villa... | |||||||
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यूपी के यादव वंश की सनक, सैफई हवाई अड्डे पर बर्बाद जनता के 92 करोड़ !
यूपी के यादव वंश की सनक, सैफई हवाई अड्डे पर बर्बाद जनता के 92 करोड़ !
Tags:
उत्तर प्रदेश,सैफई,अखिलेश यादव,एयरपोर्ट,सपा सरकार
Published by: RK Mishra
Published on: Fri, 17 Oct 2014 at 10:07 IST
लखनऊ| "कहने को तो भारत में प्रजातंत्र है पर जबाबदेही के अभाव और चापलूस नौकरशाही के चलते यह प्रजातंत्र भी राजतंत्र की ही भांति व्यवहार कर रहा है और लाचार, बेबस जनता को हर कदम पर छला जा रहा है|" यह कहना है पारदर्शिता, जबाबदेही और मानवाधिकार के क्षेत्र में कार्यरत सामाजिक संगठन 'तहरीर' के संस्थापक अध्यक्ष ई० संजय शर्मा का| जिनकी एक आरटीआई से खुलासा हुआ है कि यूपी के 'सैफई हवाई अड्डे पर अब तक जनता के 92 करोड़ रुपयों की भारी भरकम रकम खर्च के बाद भी सरकार के पास हवाई अड्डे की उड़ानों और आमदनी का कोई ब्यौरा उपलब्ध नहीं है l
यूपी के 'सैफई हवाई अड्डे पर जनता के 92 करोड़ रुपये पानी की तरह बहाने बाली सरकार अब अखिलेश की उड़ानों की जानकारी देने में भी बहानेबाजी कर रही हैल संजय ने इसे यूपी के यादव वंश की व्यक्तिगत सनक 'सैफई हवाई अड्डे पर यूपी की सरकारों द्वारा की गयी जनता के 92 करोड़ की विशुद्ध बर्बादी बताया है| और सरकार से इस तरह की व्यक्ति विशेष की व्यक्तिगत सनक पर जनता का धन बर्बाद न करने की अपील भी की हैl
संजय अब सूबे के राज्यपाल से मिलकर जनता को कोई लाभ न पंहुचाने बाले 'सैफई हवाई अड्डे के प्रोजेक्ट पर जनता 92 करोड़ रुपयों की भारी भरकम रकम की शाहखर्ची को मंजूरी देने की पत्रावली के आधार पर जिम्मेदार अधिकारियों के विरुद्ध कार्यवाही की मांग करेंगे l
यूपी के यादव वंश की सनक, सैफई हवाई अड्डे पर बर्बाद जनता के 92 करोड़ !
Tags:
उत्तर प्रदेश,सैफई,अखिलेश यादव,एयरपोर्ट,सपा सरकार
Published by: RK Mishra
Published on: Fri, 17 Oct 2014 at 10:07 IST
लखनऊ| "कहने को तो भारत में प्रजातंत्र है पर जबाबदेही के अभाव और चापलूस नौकरशाही के चलते यह प्रजातंत्र भी राजतंत्र की ही भांति व्यवहार कर रहा है और लाचार, बेबस जनता को हर कदम पर छला जा रहा है|" यह कहना है पारदर्शिता, जबाबदेही और मानवाधिकार के क्षेत्र में कार्यरत सामाजिक संगठन 'तहरीर' के संस्थापक अध्यक्ष ई० संजय शर्मा का| जिनकी एक आरटीआई से खुलासा हुआ है कि यूपी के 'सैफई हवाई अड्डे पर अब तक जनता के 92 करोड़ रुपयों की भारी भरकम रकम खर्च के बाद भी सरकार के पास हवाई अड्डे की उड़ानों और आमदनी का कोई ब्यौरा उपलब्ध नहीं है l
यूपी के 'सैफई हवाई अड्डे पर जनता के 92 करोड़ रुपये पानी की तरह बहाने बाली सरकार अब अखिलेश की उड़ानों की जानकारी देने में भी बहानेबाजी कर रही हैल संजय ने इसे यूपी के यादव वंश की व्यक्तिगत सनक 'सैफई हवाई अड्डे पर यूपी की सरकारों द्वारा की गयी जनता के 92 करोड़ की विशुद्ध बर्बादी बताया है| और सरकार से इस तरह की व्यक्ति विशेष की व्यक्तिगत सनक पर जनता का धन बर्बाद न करने की अपील भी की हैl
संजय अब सूबे के राज्यपाल से मिलकर जनता को कोई लाभ न पंहुचाने बाले 'सैफई हवाई अड्डे के प्रोजेक्ट पर जनता 92 करोड़ रुपयों की भारी भरकम रकम की शाहखर्ची को मंजूरी देने की पत्रावली के आधार पर जिम्मेदार अधिकारियों के विरुद्ध कार्यवाही की मांग करेंगे l
यूपी के यादव वंश की सनक, सैफई हवाई अड्डे पर बर्बाद जनता के 92 करोड़ !
यूपी के यादव वंश की सनक, सैफई हवाई अड्डे पर बर्बाद जनता ... Tamanchey stars Richa Chadda, Nikhil Dwivedi promote their film in Lucknow Samajwadi Party's National Convention Day 2014 | |||||||
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Wednesday, October 15, 2014
आरटीआई विशेषज्ञ संजय की चुनौती पर सामने नहीं आया यूपी का कोई सूचना आयुक्त!
आज आरटीआई एक्ट की नौवीं सालगिरह पर राजधानी लखनऊ के लक्ष्मण मेला मैदान धरना स्थल पर पूर्वान्ह 11 बजे से अपरान्ह 03 बजे तक संस्था 'येश्वर्याज सेवा संस्थान' द्वारा जनसुनवाई और जनजागरूकता कैंप का आयोजन किया गया तो वही लोक जीवन में पारदर्शिता संवर्धन, जबाबदेही निर्धारण और आमजन के मानवाधिकारों के संरक्षण के हितार्थ उत्तर प्रदेश में जमीनी स्तर पर कार्यशील संस्था 'तहरीर' द्वारा उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग के निराशाजनक प्रदर्शन के विरोध में धरना और यूपी के हालिया कार्यरत 9 सूचना आयुक्तों पर अक्षमता का आरोप लगाते हुए उनको कैमरे के सामने एक्ट पर खुली बहस की आरटीआई विशेषज्ञ ई० संजय शर्मा द्वारा दी गयी चुनौती के कार्यक्रम का आयोजन एक्शन ग्रुप फॉर राइट टु इनफार्मेशन, आरटीआई कॉउंसिल ऑफ़ यूपी, ट्रैप संस्था अलीगढ, सूचना का अधिकार कार्यकर्ता एसोसिएशन, पीपल्स फोरम, मानव विकास सेवा समिति मुरादाबाद , जन सूचना अधिकार जागरूकता मंच, भ्रष्टाचार हटाओ देश बचाओ मंच, एसआरपीडी मेमोरियल समाज सेवा संस्थान, आल इण्डिया शैडयूल्ड कास्ट्स एंड शैडयूल्ड ट्राइब्स एम्पलाइज वेलफेयर एसोसिएशन, भागीदारी मंच, सार्वजनिक जबाबदेही भारत निर्माण मंच आदि संगठनों के साथ संयुक्त रूप से किया गया l कार्यक्रम की अध्यक्षता तहरीर संस्था के संस्थापक और अध्यक्ष ईo संजय शर्मा ने की l संजय शर्मा की गिनती देश के मूर्धन्य आरटीआई विशेषज्ञों में होती है और उत्तर प्रदेश में आरटीआई के क्षेत्र में उनकी विशेषज्ञता का लोहा प्रदेश के सभी आरटीआई कार्यकर्ता मानते हैं l कार्यक्रम में प्रतिभागी संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ साथ उत्तर प्रदेश के सभी जिलों के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने प्रतिभाग किया l कैंप में आरटीआई विशेषज्ञों ने लोगों को आरटीआई के जनोपयोगी प्रयोग करने के लिए प्रशिक्षित किया तो वही जनसुनवाई में जनसूचना अधिकारी, अपीलीय प्राधिकारी और सूचना आयोग की आरटीआई एक्ट के क्रियान्वयन के प्रति उदासीनता से व्यथित लोगों ने अपनी समस्याएं आरटीआई विशेषज्ञों के साथ साझा कर समस्याओ के समाधान के सम्बन्ध में मार्गदर्शन प्राप्त किया l संयुक्त कार्यक्रम के प्रतिभागियों ने अपनी मांगों के सम्बन्ध में उत्तर प्रदेश के राज्यपाल को सम्बोधित एक मांगपत्र हस्ताक्षरित कर प्रेषित किया l कार्यक्रम में कामनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव नई दिल्ली की ओर से येश्वर्याज को निःशुल्क उपलब्ध कराई गयी आरटीआई गाइड का भी निःशुल्क वितरण किया गया l
इस सम्बन्ध में बात करते हुए संजय शर्मा ने बताया कि लोक जीवन में पारदर्शिता संवर्धन, जबाबदेही निर्धारण और आमजन के मानवाधिकारों के संरक्षण के हितार्थ उत्तर प्रदेश में जमीनी स्तर पर कार्यशील संस्था 'तहरीर' को प्राप्त प्रमाणों के आधार पर उन्हें यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि सूचना आयुक्तों की अक्षमता के कारण ही आरटीआई के तहत सूचना दिलाने बाली संस्था सूचना आयोग ही आज सूचना दिलाने के मार्ग की सबसे बड़ी वाधा बन गयी है l संजय ने कहा कि इन सूचना आयुक्तों की पोल-पट्टी खोलकर इनकी हकीकत संसार के सामने लाने के लिए ही उन्होंने यूपी के हालिया कार्यरत 9 सूचना आयुक्तों पर अक्षमता का आरोप लगाते हुए उनको कैमरे के सामने एक्ट पर खुली बहस की चुनौती दी है और कहा कि इन आयुक्तों से हार जाने की दशा में उन्होंने इन आयुक्तों द्वारा मुक़र्रर सजाये मौत तक की हर सजा को स्वीकारने का वादा भी किया है l संजय ने बताया कि चुनौती के सम्बन्ध में उन्होंने राज्य सूचना आयोग को 2 ई-मेल दिनांक 09-10-14 और 10-10-14 को प्रेषित करने के साथ साथ उत्तर प्रदेश के राज्य सूचना आयोग के सचिव के कार्यालय में दिनांक 10-10-14 को एक तीन पेज का चुनौती पत्र व्यक्तिगत रूप से आयोग जाकर भी प्राप्त करा दिया है l संजय ने बताया कि उनके आंकलन के अनुसार उत्तर प्रदेश के वर्तमान सूचना आयुक्तों में से कोई भी सूचना आयुक्त पद के लिए निर्धारित योग्यताओं में से 10% भी योग्यता धारित नहीं करते है l संजय बताते हैं कि प्रदेश के सूचना आयुक्त का पद मुख्य सचिव के समकक्ष है और एक सवाल उठाते हैं कि क्या यह माना जा सकता है कि जिस कार्यालय में योग्यतानुसार नियुक्त 9 मुख्य सचिव कार्यरत हों वहां ऐसी भयंकर बदहाली व्याप्त हो जबकि मात्र 1 मुख्य सचिव पूरा सूबा संभालता है ? इस सबाल का जबाब देते हुए संजय कहते हैं कि ऐसा इसलिए है क्योंकि वर्तमान में नियुक्त सभी सूचना आयुक्त नितांत अयोग्य हैं और वे मात्र अपने राजनैतिक संबंधों के चलते ही यह महत्वपूर्ण पद पा गए हैं l बौद्धिक असम्बेदनशीलता , अक्षमता और अपने राजनैतिक आकाओं के दबाब के चलते ही वे अपने पद की गरिमा के अनुकूल कार्य नहीं कर पा रहे हैं और इस उच्च पद को कलंकित कर रहे हैं l
आरटीआई विशेषज्ञ संजय शर्मा ने बताया कि उनकी खुली बहस की चुनौती पर आज यूपी का कोई भी सूचना आयुक्तसामने नहीं आया l संजय ने अब अयोग्य सूचना आयुक्तों की नियुक्तियां रद्द कराने को उच्च न्यायालय में याचिका दायर करने का निर्णय लिया है l
आरटीआई एक्टिविस्ट उर्वशी शर्मा के अनुसार उत्तर प्रदेश सूचना आयोग स्वयं ही आरटीआई एक्ट का विनाश करने में लगा है l उर्वशी ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि नौ सूचना आयुक्त नियुक्त होने के बाबजूद आयोग में 55000 से अधिक वाद लंबित हैं जो पूरे देश के सभी सूचना आयोगों में सर्वाधिक हैं l नौ सालों में आयोग की नियमावली तक नहीं लागू हो पाई है और आयोग का हर कार्मिक मनमाने रूप से स्व घोषित नियमों के अनुसार कार्य कर रहा है जिसके कारण उत्तर प्रदेश में लागू होने के 9 वर्षों में ही सूचना का अधिकार लगभग मृतप्राय हो चुका है l
यूपी के राज्य सूचना आयोग के खिलाफ लामबंद हुए संगठनों ने एक सुर से सूचना आयुक्तों द्वारा आयुक्त पद ग्रहण करने के बाद से अब तक की अवधि में चल-अचल सम्पत्तियों में किये गए निवेशों को सार्वजनिक कराने, यूपी के अक्षम सूचना आयुक्तों को तत्काल निलंबित कर के उनके अब तक के कार्यों की विधिक समीक्षा कराकर इनके विरुद्ध कार्यवाही कराने , सूचना आयुक्तों के रिक्त पदों पर पद की योग्यतानुसार पारदर्शी प्रक्रिया से सूचना आयुक्तों की नियुक्ति कराने , 55000 से अधिक लम्वित वादों की विशेष सुनवाईयां शनिवार और रविवार के अवकाश के दिनों में कराने, आयोग की नियमावली तत्काल लागू कराने,आयोग में नयी अपीलों और शिकायतों के प्राप्त होने के 1 सप्ताह के अंदर प्रथम सुनवाई कराने, आदेशों की नक़ल आदेश होने के 1 सप्ताह के अंदर आयोग की वेबसाइट पर अपलोड कराने, सूचना आयोग में रिश्वत मांगे जाने की शिकायतें करने के लिए एक सतर्कता अधिकारी नियुक्त कराने , अपीलों और शिकायतों की सुनवाई की अगली तारीखें अधिकतम 30 दिन बाद की देने,सूचना आयुक्तों और नागरिकों/ आरटीआई कार्यकर्ताओं के पारस्परिक संवाद की प्रणाली विकसित करके प्रतिमाह एक बैठक कराने, आरटीआई कार्यकर्ताओं को जनहित के लिए सूचना मांगने को प्रेरित करने का तंत्र विकसित कराने, सूचना आयोग में वादियों के मानवाधिकारों को संरक्षित रखने हेतु उनको खड़ा कर के सुनवाई करने के स्थान पर कुर्सी पर बैठाकर सुनवाई कराने, वादियों को झूठे मामलों में फसाए जाने की स्थिति में अपना समुचित वचाव करने के लिए वादी द्वारा मांगे जाने पर आयोग की सीसीटीवी फुटेज तत्काल उपलब्ध कराने, आयुक्तों द्वारा पारित आदेश लोकप्राधिकारियों की सुविधानुसार बदलने की प्रवृत्ति रोकने के लिए आयुक्त के स्टेनो की शॉर्टहैंड बुक पर पेंसिल के स्थान पर पेन से लिखना अनिवार्य करने तथा शॉर्टहैंड बुक पर उपस्थित वादी और प्रतिवादी के हस्ताक्षर कराने , आयुक्तों द्वारा दण्डादेशों को बापस लेने के असंवैधानिक कारनामों पर तत्काल रोक लगाने, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न रोकथाम कानून के तहत तत्काल समिति बनाकर इस समिति द्वारा अब तक सूचना आयुक्तों के विरुद्ध महिलाओं द्वारा की गयी उत्पीड़न की शिकायतों की तत्काल जांच कराने, आयोग के कार्यालयीन कार्यों की लिखित प्रक्रिया बनाये जाने, आयोग के द्वारा सम्पादित कार्यों की मासिक रिपोर्ट तैयार कराकर स्वतः ही सार्वजनिक कराने आदि मांगों के साथ धरना देते हुए राज्यपाल को एक ज्ञापन भी प्रेषित किया l
कार्यक्रम का समापन करते हुए येश्वर्याज सेवा संस्थान की सचिव उर्वशी शर्मा ने सभी आगंतुकों को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए 3 माह में उनकी मांगें न माने जाने पर प्रदेश के अन्य सभी संगठनों को साथ लेकर सूचना आयोग और प्रदेश सरकार के खिलाफ वृहद स्तर पर उग्र आंदोलन करने को तैयार रहने का आव्हान किया l
कार्यक्रम का समापन करते हुए येश्वर्याज सेवा संस्थान की सचिव उर्वशी शर्मा ने सभी आगंतुकों को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए 3 माह में उनकी मांगें न माने जाने पर प्रदेश के अन्य सभी संगठनों को साथ लेकर सूचना आयोग और प्रदेश सरकार के खिलाफ वृहद स्तर पर उग्र आंदोलन करने को तैयार रहने का आव्हान किया l
CURRENT ISSUE
October 2014
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आरटीआई विशेषज्ञ संजय की चुनौती पर सामने नहीं आया यूपी का कोई सूचना आयुक्त!
आरटीआई विशेषज्ञ संजय की चुनौती पर सामने नहीं आया यूपी का कोई सूचना आयुक्त!
Posted On 14 October 2014, By Dialogue India
आज आरटीआई एक्ट की नौवीं सालगिरह पर राजधानी लखनऊ के लक्ष्मण मेला मैदान
धरना स्थल पर पूर्वान्ह 11 बजे से अपरान्ह 03 बजे तक संस्था 'येश्वर्याज
सेवा संस्थान' द्वारा जनसुनवाई और जनजागरूकता कैंप का आयोजन किया गया तो
वही लोक जीवन में पारदर्शिता संवर्धन, जबाबदेही निर्धारण और आमजन के
मानवाधिकारों के संरक्षण के हितार्थ उत्तर प्रदेश में जमीनी स्तर पर
कार्यशील संस्था 'तहरीर' द्वारा उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग के
निराशाजनक प्रदर्शन के विरोध में धरना और यूपी के हालिया कार्यरत 9 सूचना
आयुक्तों पर अक्षमता का आरोप लगाते हुए उनको कैमरे के सामने एक्ट पर खुली
बहस की आरटीआई विशेषज्ञ ई० संजय शर्मा द्वारा दी गयी चुनौती के कार्यक्रम
का आयोजन एक्शन ग्रुप फॉर राइट टु इनफार्मेशन, आरटीआई कॉउंसिल ऑफ़ यूपी,
ट्रैप संस्था अलीगढ, सूचना का अधिकार कार्यकर्ता एसोसिएशन, पीपल्स फोरम,
मानव विकास सेवा समिति मुरादाबाद , जन सूचना अधिकार जागरूकता मंच,
भ्रष्टाचार हटाओ देश बचाओ मंच, एसआरपीडी मेमोरियल समाज सेवा संस्थान, आल
इण्डिया शैडयूल्ड कास्ट्स एंड शैडयूल्ड ट्राइब्स एम्पलाइज वेलफेयर
एसोसिएशन, भागीदारी मंच, सार्वजनिक जबाबदेही भारत निर्माण मंच आदि
संगठनों के साथ संयुक्त रूप से किया गया l कार्यक्रम की अध्यक्षता तहरीर
संस्था के संस्थापक और अध्यक्ष ईo संजय शर्मा ने की l संजय शर्मा की
गिनती देश के मूर्धन्य आरटीआई विशेषज्ञों में होती है और उत्तर प्रदेश
में आरटीआई के क्षेत्र में उनकी विशेषज्ञता का लोहा प्रदेश के सभी आरटीआई
कार्यकर्ता मानते हैं l कार्यक्रम में प्रतिभागी संगठनों के प्रतिनिधियों
के साथ साथ उत्तर प्रदेश के सभी जिलों के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने
प्रतिभाग किया l कैंप में आरटीआई विशेषज्ञों ने लोगों को आरटीआई के
जनोपयोगी प्रयोग करने के लिए प्रशिक्षित किया तो वही जनसुनवाई में
जनसूचना अधिकारी, अपीलीय प्राधिकारी और सूचना आयोग की आरटीआई एक्ट के
क्रियान्वयन के प्रति उदासीनता से व्यथित लोगों ने अपनी समस्याएं आरटीआई
विशेषज्ञों के साथ साझा कर समस्याओ के समाधान के सम्बन्ध में मार्गदर्शन
प्राप्त किया l संयुक्त कार्यक्रम के प्रतिभागियों ने अपनी मांगों के
सम्बन्ध में उत्तर प्रदेश के राज्यपाल को सम्बोधित एक मांगपत्र
हस्ताक्षरित कर प्रेषित किया l कार्यक्रम में कामनवेल्थ ह्यूमन राइट्स
इनिशिएटिव नई दिल्ली की ओर से येश्वर्याज को निःशुल्क उपलब्ध कराई गयी
आरटीआई गाइड का भी निःशुल्क वितरण किया गया l
इस सम्बन्ध में बात करते हुए संजय शर्मा ने बताया कि लोक जीवन में
पारदर्शिता संवर्धन, जबाबदेही निर्धारण और आमजन के मानवाधिकारों के
संरक्षण के हितार्थ उत्तर प्रदेश में जमीनी स्तर पर कार्यशील संस्था
'तहरीर' को प्राप्त प्रमाणों के आधार पर उन्हें यह कहने में कोई गुरेज
नहीं है कि सूचना आयुक्तों की अक्षमता के कारण ही आरटीआई के तहत सूचना
दिलाने बाली संस्था सूचना आयोग ही आज सूचना दिलाने के मार्ग की सबसे बड़ी
वाधा बन गयी है l संजय ने कहा कि इन सूचना आयुक्तों की पोल-पट्टी खोलकर
इनकी हकीकत संसार के सामने लाने के लिए ही उन्होंने यूपी के हालिया
कार्यरत 9 सूचना आयुक्तों पर अक्षमता का आरोप लगाते हुए उनको कैमरे के
सामने एक्ट पर खुली बहस की चुनौती दी है और कहा कि इन आयुक्तों से हार
जाने की दशा में उन्होंने इन आयुक्तों द्वारा मुक़र्रर सजाये मौत तक की हर
सजा को स्वीकारने का वादा भी किया है l संजय ने बताया कि चुनौती के
सम्बन्ध में उन्होंने राज्य सूचना आयोग को 2 ई-मेल दिनांक 09-10-14 और
10-10-14 को प्रेषित करने के साथ साथ उत्तर प्रदेश के राज्य सूचना आयोग
के सचिव के कार्यालय में दिनांक 10-10-14 को एक तीन पेज का चुनौती पत्र
व्यक्तिगत रूप से आयोग जाकर भी प्राप्त करा दिया है l संजय ने बताया कि
उनके आंकलन के अनुसार उत्तर प्रदेश के वर्तमान सूचना आयुक्तों में से कोई
भी सूचना आयुक्त पद के लिए निर्धारित योग्यताओं में से 10% भी योग्यता
धारित नहीं करते है l संजय बताते हैं कि प्रदेश के सूचना आयुक्त का पद
मुख्य सचिव के समकक्ष है और एक सवाल उठाते हैं कि क्या यह माना जा सकता
है कि जिस कार्यालय में योग्यतानुसार नियुक्त 9 मुख्य सचिव कार्यरत हों
वहां ऐसी भयंकर बदहाली व्याप्त हो जबकि मात्र 1 मुख्य सचिव पूरा सूबा
संभालता है ? इस सबाल का जबाब देते हुए संजय कहते हैं कि ऐसा इसलिए है
क्योंकि वर्तमान में नियुक्त सभी सूचना आयुक्त नितांत अयोग्य हैं और वे
मात्र अपने राजनैतिक संबंधों के चलते ही यह महत्वपूर्ण पद पा गए हैं l
बौद्धिक असम्बेदनशीलता , अक्षमता और अपने राजनैतिक आकाओं के दबाब के चलते
ही वे अपने पद की गरिमा के अनुकूल कार्य नहीं कर पा रहे हैं और इस उच्च
पद को कलंकित कर रहे हैं l
आरटीआई विशेषज्ञ संजय शर्मा ने बताया कि उनकी खुली बहस की चुनौती पर आज
यूपी का कोई भी सूचना आयुक्तसामने नहीं आया l संजय ने अब अयोग्य सूचना
आयुक्तों की नियुक्तियां रद्द कराने को उच्च न्यायालय में याचिका दायर
करने का निर्णय लिया है l
आरटीआई एक्टिविस्ट उर्वशी शर्मा के अनुसार उत्तर प्रदेश सूचना आयोग स्वयं
ही आरटीआई एक्ट का विनाश करने में लगा है l उर्वशी ने कहा कि यह
दुर्भाग्यपूर्ण है कि नौ सूचना आयुक्त नियुक्त होने के बाबजूद आयोग में
55000 से अधिक वाद लंबित हैं जो पूरे देश के सभी सूचना आयोगों में
सर्वाधिक हैं l नौ सालों में आयोग की नियमावली तक नहीं लागू हो पाई है और
आयोग का हर कार्मिक मनमाने रूप से स्व घोषित नियमों के अनुसार कार्य कर
रहा है जिसके कारण उत्तर प्रदेश में लागू होने के 9 वर्षों में ही सूचना
का अधिकार लगभग मृतप्राय हो चुका है l
यूपी के राज्य सूचना आयोग के खिलाफ लामबंद हुए संगठनों ने एक सुर से
सूचना आयुक्तों द्वारा आयुक्त पद ग्रहण करने के बाद से अब तक की अवधि में
चल-अचल सम्पत्तियों में किये गए निवेशों को सार्वजनिक कराने, यूपी के
अक्षम सूचना आयुक्तों को तत्काल निलंबित कर के उनके अब तक के कार्यों की
विधिक समीक्षा कराकर इनके विरुद्ध कार्यवाही कराने , सूचना आयुक्तों के
रिक्त पदों पर पद की योग्यतानुसार पारदर्शी प्रक्रिया से सूचना आयुक्तों
की नियुक्ति कराने , 55000 से अधिक लम्वित वादों की विशेष सुनवाईयां
शनिवार और रविवार के अवकाश के दिनों में कराने, आयोग की नियमावली तत्काल
लागू कराने,आयोग में नयी अपीलों और शिकायतों के प्राप्त होने के 1 सप्ताह
के अंदर प्रथम सुनवाई कराने, आदेशों की नक़ल आदेश होने के 1 सप्ताह के
अंदर आयोग की वेबसाइट पर अपलोड कराने, सूचना आयोग में रिश्वत मांगे जाने
की शिकायतें करने के लिए एक सतर्कता अधिकारी नियुक्त कराने , अपीलों और
शिकायतों की सुनवाई की अगली तारीखें अधिकतम 30 दिन बाद की देने,सूचना
आयुक्तों और नागरिकों/ आरटीआई कार्यकर्ताओं के पारस्परिक संवाद की
प्रणाली विकसित करके प्रतिमाह एक बैठक कराने, आरटीआई कार्यकर्ताओं को
जनहित के लिए सूचना मांगने को प्रेरित करने का तंत्र विकसित कराने, सूचना
आयोग में वादियों के मानवाधिकारों को संरक्षित रखने हेतु उनको खड़ा कर के
सुनवाई करने के स्थान पर कुर्सी पर बैठाकर सुनवाई कराने, वादियों को झूठे
मामलों में फसाए जाने की स्थिति में अपना समुचित वचाव करने के लिए वादी
द्वारा मांगे जाने पर आयोग की सीसीटीवी फुटेज तत्काल उपलब्ध कराने,
आयुक्तों द्वारा पारित आदेश लोकप्राधिकारियों की सुविधानुसार बदलने की
प्रवृत्ति रोकने के लिए आयुक्त के स्टेनो की शॉर्टहैंड बुक पर पेंसिल के
स्थान पर पेन से लिखना अनिवार्य करने तथा शॉर्टहैंड बुक पर उपस्थित वादी
और प्रतिवादी के हस्ताक्षर कराने , आयुक्तों द्वारा दण्डादेशों को बापस
लेने के असंवैधानिक कारनामों पर तत्काल रोक लगाने, कार्यस्थल पर यौन
उत्पीड़न रोकथाम कानून के तहत तत्काल समिति बनाकर इस समिति द्वारा अब तक
सूचना आयुक्तों के विरुद्ध महिलाओं द्वारा की गयी उत्पीड़न की शिकायतों की
तत्काल जांच कराने, आयोग के कार्यालयीन कार्यों की लिखित प्रक्रिया बनाये
जाने, आयोग के द्वारा सम्पादित कार्यों की मासिक रिपोर्ट तैयार कराकर
स्वतः ही सार्वजनिक कराने आदि मांगों के साथ धरना देते हुए राज्यपाल को
एक ज्ञापन भी प्रेषित किया l
कार्यक्रम का समापन करते हुए येश्वर्याज सेवा संस्थान की सचिव उर्वशी
शर्मा ने सभी आगंतुकों को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए 3 माह में उनकी
मांगें न माने जाने पर प्रदेश के अन्य सभी संगठनों को साथ लेकर सूचना
आयोग और प्रदेश सरकार के खिलाफ वृहद स्तर पर उग्र आंदोलन करने को तैयार
रहने का आव्हान किया l
CURRENT ISSUE
October 2014
SPECIAL ISSUE
http://www.dialogueindia.in/magazine/%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B0/%E0%A4%86%E0%A4%B0%E0%A4%9F%E0%A5%80%E0%A4%86%E0%A4%88-%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%87%E0%A4%B7%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%9E-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%9C%E0%A4%AF-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%9A%E0%A5%81%E0%A4%A8%E0%A5%8C%E0%A4%A4%E0%A5%80-%E0%A4%AA%E0%A4%B0-%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%A8%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%82-%E0%A4%86%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%AF%E0%A5%82%E0%A4%AA%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A5%8B%E0%A4%88-%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A4%BE-%E0%A4%86%E0%A4%AF%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4!-1884
--
-Sincerely Yours,
Urvashi Sharma
Secretary - YAISHWARYAJ SEVA SANSTHAAN
101,Narayan Tower, Opposite F block Idgah
Rajajipuram,Lucknow-226017,Uttar Pradesh,India
Contact 9369613513
Right to Information Helpline 8081898081
Helpline Against Corruption 9455553838
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Posted On 14 October 2014, By Dialogue India
आज आरटीआई एक्ट की नौवीं सालगिरह पर राजधानी लखनऊ के लक्ष्मण मेला मैदान
धरना स्थल पर पूर्वान्ह 11 बजे से अपरान्ह 03 बजे तक संस्था 'येश्वर्याज
सेवा संस्थान' द्वारा जनसुनवाई और जनजागरूकता कैंप का आयोजन किया गया तो
वही लोक जीवन में पारदर्शिता संवर्धन, जबाबदेही निर्धारण और आमजन के
मानवाधिकारों के संरक्षण के हितार्थ उत्तर प्रदेश में जमीनी स्तर पर
कार्यशील संस्था 'तहरीर' द्वारा उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग के
निराशाजनक प्रदर्शन के विरोध में धरना और यूपी के हालिया कार्यरत 9 सूचना
आयुक्तों पर अक्षमता का आरोप लगाते हुए उनको कैमरे के सामने एक्ट पर खुली
बहस की आरटीआई विशेषज्ञ ई० संजय शर्मा द्वारा दी गयी चुनौती के कार्यक्रम
का आयोजन एक्शन ग्रुप फॉर राइट टु इनफार्मेशन, आरटीआई कॉउंसिल ऑफ़ यूपी,
ट्रैप संस्था अलीगढ, सूचना का अधिकार कार्यकर्ता एसोसिएशन, पीपल्स फोरम,
मानव विकास सेवा समिति मुरादाबाद , जन सूचना अधिकार जागरूकता मंच,
भ्रष्टाचार हटाओ देश बचाओ मंच, एसआरपीडी मेमोरियल समाज सेवा संस्थान, आल
इण्डिया शैडयूल्ड कास्ट्स एंड शैडयूल्ड ट्राइब्स एम्पलाइज वेलफेयर
एसोसिएशन, भागीदारी मंच, सार्वजनिक जबाबदेही भारत निर्माण मंच आदि
संगठनों के साथ संयुक्त रूप से किया गया l कार्यक्रम की अध्यक्षता तहरीर
संस्था के संस्थापक और अध्यक्ष ईo संजय शर्मा ने की l संजय शर्मा की
गिनती देश के मूर्धन्य आरटीआई विशेषज्ञों में होती है और उत्तर प्रदेश
में आरटीआई के क्षेत्र में उनकी विशेषज्ञता का लोहा प्रदेश के सभी आरटीआई
कार्यकर्ता मानते हैं l कार्यक्रम में प्रतिभागी संगठनों के प्रतिनिधियों
के साथ साथ उत्तर प्रदेश के सभी जिलों के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने
प्रतिभाग किया l कैंप में आरटीआई विशेषज्ञों ने लोगों को आरटीआई के
जनोपयोगी प्रयोग करने के लिए प्रशिक्षित किया तो वही जनसुनवाई में
जनसूचना अधिकारी, अपीलीय प्राधिकारी और सूचना आयोग की आरटीआई एक्ट के
क्रियान्वयन के प्रति उदासीनता से व्यथित लोगों ने अपनी समस्याएं आरटीआई
विशेषज्ञों के साथ साझा कर समस्याओ के समाधान के सम्बन्ध में मार्गदर्शन
प्राप्त किया l संयुक्त कार्यक्रम के प्रतिभागियों ने अपनी मांगों के
सम्बन्ध में उत्तर प्रदेश के राज्यपाल को सम्बोधित एक मांगपत्र
हस्ताक्षरित कर प्रेषित किया l कार्यक्रम में कामनवेल्थ ह्यूमन राइट्स
इनिशिएटिव नई दिल्ली की ओर से येश्वर्याज को निःशुल्क उपलब्ध कराई गयी
आरटीआई गाइड का भी निःशुल्क वितरण किया गया l
इस सम्बन्ध में बात करते हुए संजय शर्मा ने बताया कि लोक जीवन में
पारदर्शिता संवर्धन, जबाबदेही निर्धारण और आमजन के मानवाधिकारों के
संरक्षण के हितार्थ उत्तर प्रदेश में जमीनी स्तर पर कार्यशील संस्था
'तहरीर' को प्राप्त प्रमाणों के आधार पर उन्हें यह कहने में कोई गुरेज
नहीं है कि सूचना आयुक्तों की अक्षमता के कारण ही आरटीआई के तहत सूचना
दिलाने बाली संस्था सूचना आयोग ही आज सूचना दिलाने के मार्ग की सबसे बड़ी
वाधा बन गयी है l संजय ने कहा कि इन सूचना आयुक्तों की पोल-पट्टी खोलकर
इनकी हकीकत संसार के सामने लाने के लिए ही उन्होंने यूपी के हालिया
कार्यरत 9 सूचना आयुक्तों पर अक्षमता का आरोप लगाते हुए उनको कैमरे के
सामने एक्ट पर खुली बहस की चुनौती दी है और कहा कि इन आयुक्तों से हार
जाने की दशा में उन्होंने इन आयुक्तों द्वारा मुक़र्रर सजाये मौत तक की हर
सजा को स्वीकारने का वादा भी किया है l संजय ने बताया कि चुनौती के
सम्बन्ध में उन्होंने राज्य सूचना आयोग को 2 ई-मेल दिनांक 09-10-14 और
10-10-14 को प्रेषित करने के साथ साथ उत्तर प्रदेश के राज्य सूचना आयोग
के सचिव के कार्यालय में दिनांक 10-10-14 को एक तीन पेज का चुनौती पत्र
व्यक्तिगत रूप से आयोग जाकर भी प्राप्त करा दिया है l संजय ने बताया कि
उनके आंकलन के अनुसार उत्तर प्रदेश के वर्तमान सूचना आयुक्तों में से कोई
भी सूचना आयुक्त पद के लिए निर्धारित योग्यताओं में से 10% भी योग्यता
धारित नहीं करते है l संजय बताते हैं कि प्रदेश के सूचना आयुक्त का पद
मुख्य सचिव के समकक्ष है और एक सवाल उठाते हैं कि क्या यह माना जा सकता
है कि जिस कार्यालय में योग्यतानुसार नियुक्त 9 मुख्य सचिव कार्यरत हों
वहां ऐसी भयंकर बदहाली व्याप्त हो जबकि मात्र 1 मुख्य सचिव पूरा सूबा
संभालता है ? इस सबाल का जबाब देते हुए संजय कहते हैं कि ऐसा इसलिए है
क्योंकि वर्तमान में नियुक्त सभी सूचना आयुक्त नितांत अयोग्य हैं और वे
मात्र अपने राजनैतिक संबंधों के चलते ही यह महत्वपूर्ण पद पा गए हैं l
बौद्धिक असम्बेदनशीलता , अक्षमता और अपने राजनैतिक आकाओं के दबाब के चलते
ही वे अपने पद की गरिमा के अनुकूल कार्य नहीं कर पा रहे हैं और इस उच्च
पद को कलंकित कर रहे हैं l
आरटीआई विशेषज्ञ संजय शर्मा ने बताया कि उनकी खुली बहस की चुनौती पर आज
यूपी का कोई भी सूचना आयुक्तसामने नहीं आया l संजय ने अब अयोग्य सूचना
आयुक्तों की नियुक्तियां रद्द कराने को उच्च न्यायालय में याचिका दायर
करने का निर्णय लिया है l
आरटीआई एक्टिविस्ट उर्वशी शर्मा के अनुसार उत्तर प्रदेश सूचना आयोग स्वयं
ही आरटीआई एक्ट का विनाश करने में लगा है l उर्वशी ने कहा कि यह
दुर्भाग्यपूर्ण है कि नौ सूचना आयुक्त नियुक्त होने के बाबजूद आयोग में
55000 से अधिक वाद लंबित हैं जो पूरे देश के सभी सूचना आयोगों में
सर्वाधिक हैं l नौ सालों में आयोग की नियमावली तक नहीं लागू हो पाई है और
आयोग का हर कार्मिक मनमाने रूप से स्व घोषित नियमों के अनुसार कार्य कर
रहा है जिसके कारण उत्तर प्रदेश में लागू होने के 9 वर्षों में ही सूचना
का अधिकार लगभग मृतप्राय हो चुका है l
यूपी के राज्य सूचना आयोग के खिलाफ लामबंद हुए संगठनों ने एक सुर से
सूचना आयुक्तों द्वारा आयुक्त पद ग्रहण करने के बाद से अब तक की अवधि में
चल-अचल सम्पत्तियों में किये गए निवेशों को सार्वजनिक कराने, यूपी के
अक्षम सूचना आयुक्तों को तत्काल निलंबित कर के उनके अब तक के कार्यों की
विधिक समीक्षा कराकर इनके विरुद्ध कार्यवाही कराने , सूचना आयुक्तों के
रिक्त पदों पर पद की योग्यतानुसार पारदर्शी प्रक्रिया से सूचना आयुक्तों
की नियुक्ति कराने , 55000 से अधिक लम्वित वादों की विशेष सुनवाईयां
शनिवार और रविवार के अवकाश के दिनों में कराने, आयोग की नियमावली तत्काल
लागू कराने,आयोग में नयी अपीलों और शिकायतों के प्राप्त होने के 1 सप्ताह
के अंदर प्रथम सुनवाई कराने, आदेशों की नक़ल आदेश होने के 1 सप्ताह के
अंदर आयोग की वेबसाइट पर अपलोड कराने, सूचना आयोग में रिश्वत मांगे जाने
की शिकायतें करने के लिए एक सतर्कता अधिकारी नियुक्त कराने , अपीलों और
शिकायतों की सुनवाई की अगली तारीखें अधिकतम 30 दिन बाद की देने,सूचना
आयुक्तों और नागरिकों/ आरटीआई कार्यकर्ताओं के पारस्परिक संवाद की
प्रणाली विकसित करके प्रतिमाह एक बैठक कराने, आरटीआई कार्यकर्ताओं को
जनहित के लिए सूचना मांगने को प्रेरित करने का तंत्र विकसित कराने, सूचना
आयोग में वादियों के मानवाधिकारों को संरक्षित रखने हेतु उनको खड़ा कर के
सुनवाई करने के स्थान पर कुर्सी पर बैठाकर सुनवाई कराने, वादियों को झूठे
मामलों में फसाए जाने की स्थिति में अपना समुचित वचाव करने के लिए वादी
द्वारा मांगे जाने पर आयोग की सीसीटीवी फुटेज तत्काल उपलब्ध कराने,
आयुक्तों द्वारा पारित आदेश लोकप्राधिकारियों की सुविधानुसार बदलने की
प्रवृत्ति रोकने के लिए आयुक्त के स्टेनो की शॉर्टहैंड बुक पर पेंसिल के
स्थान पर पेन से लिखना अनिवार्य करने तथा शॉर्टहैंड बुक पर उपस्थित वादी
और प्रतिवादी के हस्ताक्षर कराने , आयुक्तों द्वारा दण्डादेशों को बापस
लेने के असंवैधानिक कारनामों पर तत्काल रोक लगाने, कार्यस्थल पर यौन
उत्पीड़न रोकथाम कानून के तहत तत्काल समिति बनाकर इस समिति द्वारा अब तक
सूचना आयुक्तों के विरुद्ध महिलाओं द्वारा की गयी उत्पीड़न की शिकायतों की
तत्काल जांच कराने, आयोग के कार्यालयीन कार्यों की लिखित प्रक्रिया बनाये
जाने, आयोग के द्वारा सम्पादित कार्यों की मासिक रिपोर्ट तैयार कराकर
स्वतः ही सार्वजनिक कराने आदि मांगों के साथ धरना देते हुए राज्यपाल को
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शर्मा ने सभी आगंतुकों को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए 3 माह में उनकी
मांगें न माने जाने पर प्रदेश के अन्य सभी संगठनों को साथ लेकर सूचना
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Monday, October 13, 2014
Feature on RTI that was published in HINDUSTAN titled "दस साल में निकला दम"
दस साल में निकला दम
फरजंद अहमद, पूर्व सूचना आयुक्त, बिहार
First Published:12-10-14 09:10 PM
Last Updated:12-10-14 09:10 PM
जाने-माने ब्रिटिश कवि और स्कॉलर रिचर्ड गारनेट ने एक बार कहा था कि हर परदे की ख्वाहिश होती है कि कोई उसे बेपरदा करे, सिवाय पाखंड के परदे का। पाखंड का परदा व्यवस्था के चेहरे से उठे या न उठे, मगर सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करने वालों के बीच फैलता खौफ और सरकारी कामकाज में पारदर्शिता की गारंटी देने वाला सूचना अधिकार कानून खुद पाखंड के परदे के भीतर दम तोड़ रहा है। आज आरटीआई की दसवीं वर्षगांठ है, मगर पहली बार केंद्रीय सूचना आयोग में न तो कोई शिकवा-शिकायत करने वाला होगा और न ही सूचना का अधिकार, यानी सनशाइन कानून पर मंडराते स्याह बादलों पर कोई चर्चा होगी। केवल बंद कमरे में एक औपचारिकता पूरी की जाएगी, क्योंकि केंद्रीय सूचना आयोग में फिलहाल कोई मुख्य सूचना आयुक्त नहीं। पहले राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री इसका उद्घाटन करते थे और सरकार की नजर में इस कानून की कमजोरियों या उपलब्धि पर बहस की शुरुआत करते थे, लेकिन नई सरकार को इतनी फुरसत नहीं मिली कि वह मुख्य सूचना आयुक्त नियुक्त कर सके।
जो कानून अब तक जनता के हाथ में एक धारदार हथियार था, प्रजातंत्र के लिए ऑक्सीजन था, उस हथियार की धार दस वर्षों में ही कुंद हो चुकी है। सरकारें या प्रशासन हर आवेदक को शक की नजरों से देखते हैं, इसलिए लोक सूचना पदाधिकारी सूचना देने से कतराते हैं या फिर उन्हें दौड़ाते रहते हैं। नतीजा यह है कि वादों का अंबार आकाश छू रहा है। आवेदक अपनी अपील लेकर आयोग का चक्कर काटते-काटते थकते जा रहे हैं। युवा सामाजिक कार्यकर्ता उत्कर्ष सिन्हा को लगता है कि अब हर आवेदक राग दरबारी का बेबस लंगड़ बनकर रह जाएगा, जिसने पूरी जिंदगी एक दस्तावेज की नकल के लिए गंवा दी थी। आरटीआई असेसमेंट और एडवोकेसी ग्रुप और समय-सेंटर फॉर इक्विटीज के अनुसार, आज सूचना आयोगों में करीब दो लाख वाद सुनवाई के लिए तरस रहे हैं। अध्ययन के अनुसार, मध्य प्रदेश में यदि आज कोई अपील दाखिल करता है, तो 60 साल बाद उसका नंबर आएगा। वहीं पश्चिम बंगाल में उसे 17 साल, राजस्थान में तीन साल, असम और केरल में दो साल इंतजार करना होगा। खुद केंद्रीय सूचना आयोग में 26,115 मामले लंबित हैं।
अध्ययन के अनुसार, सबसे अधिक मामले सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में लंबित हैं। इनकी संख्या 48,442 है, जबकि महाराष्ट्र सूचना मांगने वालों की हत्या और उत्पीड़न में पूरे देश में अव्वल नंबर पर है। कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट इनीशिएटिव के अनुसार, महाराष्ट्र में अब तक 53 आवेदकों पर जानलेवा हमले हो चुके हैं, जिनमें नौ लोगों की जान जा चुकी है, जबकि बिहार में छह लोग सूचना मांगने के कारण मारे गए हैं। जाने-माने आरटीआई एक्टिविस्ट शिव प्रकाश राय (जिन्होंने सूचना मांगने के कारण झूठे मामले में कई महीने जेल में गुजारे थे) के अनुसार, बिहार में आवेदकों पर अब हमले कुछ कम इसलिए हो रहे हैं, क्योंकि दहशत के कारण लोग सूचना मांगने के पहले कई बार सोचते हैं। महाराष्ट्र के बाद गुजरात का नंबर आता है, जहां 34 कार्यकर्ताओं पर हमले हो चुके हैं। उनमें से तीन मारे जा चुके हैं।
मगर उत्तर प्रदेश में सूचना की बदहाली नई मिसाल कायम कर रही है। यहां फिलहाल नौ सूचना आयुक्त हैं, जिनकी काबिलियत और उदासीनता पर चर्चा चल रही है। अन्य संस्थानों के साथ-साथ एक्टिविस्ट और सामाजिक कार्यकर्ता उर्वशी शर्मा ने यूपी के सूचना आयुक्तों पर अक्षमता का आरोप लगाते हुए नौ आयुक्तों को खुली बहस की चुनौती दी है। सामाजिक कार्यकर्ता, आरटीआई विशेषज्ञ और 'तहरीर' के संस्थापक अध्यक्ष संजय शर्मा ने भी वर्तमान सूचना आयुक्तों से एक साथ अकेले या खुली बहस करने की चुनौती दी है। पिछले तीन वर्षों से केंद्र सरकार सूचना का अधिकार कानून को नई ताकत देने के नाम पर इसे कमजोर करने का काम कर रही थी। साल 2011 में केंद्रीय सूचना आयोग ने तत्कालीन राष्ट्रपति (प्रतिभा पाटिल) को अपनी संपत्ति का ब्योरा देने का आदेश दिया था। उन्हीं दिनों 2-जी स्पेक्ट्रम के संबंध में तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी (अब राष्ट्रपति) की फाइल टिप्पणी को सरेआम करना पड़ा था। फिर रॉबर्ट वाड्रा की लैंड डील का मामला आरटीआई के माध्यम से उछला।
इन सबका असर सरकार पर दिखाई पड़ा। 15 अक्तूबर, 2011 को केंद्रीय सूचना आयोग के सालाना सम्मलेन में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि अब हमें सूचना के अधिकार कानून पर आलोचनात्मक रुख अपनाना होगा.., आरटीआई का सरकारी विचार-विमर्श की प्रक्रिया पर उल्टा असर नहीं पड़ना चाहिए। फिर अगले साल 12 अक्तूबर, 2012 को मनमोहन सिंह ने कहा कि निजता का उल्लंघन करने वाली बेहूदा और परेशान करने वाली आरटीआई आवेदनों को लेकर चिंता पैदा हो रही है। ठीक इसके बाद ही खबर आई थी कि केंद्र सरकार ने यह फैसला किया है कि वह एक समिति गठित कर यह पता लगाएगी कि सूचना एकत्र करने और देने पर सरकार का कितना खर्च आता है।
इस तरह की बात सूचना के अधिकार अधिनियम की आत्मा के खिलाफ है, क्योंकि इस कानून की धारा 7(3) साफ तौर पर कहती कि सूचना की कॉपी पर खर्च आवेदक को ही वहन करना होगा। साफ है कि दस साल के भीतर ही इसे कमजोर करने की कवायद शुरू हो चुकी है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों के कई फैसलों ने आवेदकों के बीच खलबली मचा दी थी। दो साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला सुनाया था कि हर सूचना आयोग दो-आयुक्तों का पीठ होगा, जिसमें एक हाई कोर्ट के जज होंगे। मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर कोई जज ही होगा। इस आदेश के बाद कई राज्य आयोग का कामकाज बंद हो गया। बाद में खुद सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को 'मिस्टेक ऑफ लॉ' कहकर वापस ले लिया। बिहार सहित कई राज्यों में धारा 20 के तहत लगाए गए दंड की सही तरीके से वसूली नहीं होती, जिसके कारण लोक सूचना पदाधिकारियों का मनोबल बढ़ता जा रहा है और आवेदक भटक रहे हैं। आज दुनिया के लगभग 100 देशों में सूचना का अधिकार कानून लागू है। दक्षिण एशिया में भारत का कानून सबसे कारगर था, क्योंकि खुद कार्यकर्ताओं ने इसकी रचना की थी और केंद्र सरकार ने भी इसे लागू करने में खासी दिलचस्पी दिखाई थी। मगर अब जब सूचना का अधिकार कानून खुद सरकारों के गले की हड्डी बन चुका है, तब कौन बचाए इसे?
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
जो कानून अब तक जनता के हाथ में एक धारदार हथियार था, प्रजातंत्र के लिए ऑक्सीजन था, उस हथियार की धार दस वर्षों में ही कुंद हो चुकी है। सरकारें या प्रशासन हर आवेदक को शक की नजरों से देखते हैं, इसलिए लोक सूचना पदाधिकारी सूचना देने से कतराते हैं या फिर उन्हें दौड़ाते रहते हैं। नतीजा यह है कि वादों का अंबार आकाश छू रहा है। आवेदक अपनी अपील लेकर आयोग का चक्कर काटते-काटते थकते जा रहे हैं। युवा सामाजिक कार्यकर्ता उत्कर्ष सिन्हा को लगता है कि अब हर आवेदक राग दरबारी का बेबस लंगड़ बनकर रह जाएगा, जिसने पूरी जिंदगी एक दस्तावेज की नकल के लिए गंवा दी थी। आरटीआई असेसमेंट और एडवोकेसी ग्रुप और समय-सेंटर फॉर इक्विटीज के अनुसार, आज सूचना आयोगों में करीब दो लाख वाद सुनवाई के लिए तरस रहे हैं। अध्ययन के अनुसार, मध्य प्रदेश में यदि आज कोई अपील दाखिल करता है, तो 60 साल बाद उसका नंबर आएगा। वहीं पश्चिम बंगाल में उसे 17 साल, राजस्थान में तीन साल, असम और केरल में दो साल इंतजार करना होगा। खुद केंद्रीय सूचना आयोग में 26,115 मामले लंबित हैं।
अध्ययन के अनुसार, सबसे अधिक मामले सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में लंबित हैं। इनकी संख्या 48,442 है, जबकि महाराष्ट्र सूचना मांगने वालों की हत्या और उत्पीड़न में पूरे देश में अव्वल नंबर पर है। कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट इनीशिएटिव के अनुसार, महाराष्ट्र में अब तक 53 आवेदकों पर जानलेवा हमले हो चुके हैं, जिनमें नौ लोगों की जान जा चुकी है, जबकि बिहार में छह लोग सूचना मांगने के कारण मारे गए हैं। जाने-माने आरटीआई एक्टिविस्ट शिव प्रकाश राय (जिन्होंने सूचना मांगने के कारण झूठे मामले में कई महीने जेल में गुजारे थे) के अनुसार, बिहार में आवेदकों पर अब हमले कुछ कम इसलिए हो रहे हैं, क्योंकि दहशत के कारण लोग सूचना मांगने के पहले कई बार सोचते हैं। महाराष्ट्र के बाद गुजरात का नंबर आता है, जहां 34 कार्यकर्ताओं पर हमले हो चुके हैं। उनमें से तीन मारे जा चुके हैं।
मगर उत्तर प्रदेश में सूचना की बदहाली नई मिसाल कायम कर रही है। यहां फिलहाल नौ सूचना आयुक्त हैं, जिनकी काबिलियत और उदासीनता पर चर्चा चल रही है। अन्य संस्थानों के साथ-साथ एक्टिविस्ट और सामाजिक कार्यकर्ता उर्वशी शर्मा ने यूपी के सूचना आयुक्तों पर अक्षमता का आरोप लगाते हुए नौ आयुक्तों को खुली बहस की चुनौती दी है। सामाजिक कार्यकर्ता, आरटीआई विशेषज्ञ और 'तहरीर' के संस्थापक अध्यक्ष संजय शर्मा ने भी वर्तमान सूचना आयुक्तों से एक साथ अकेले या खुली बहस करने की चुनौती दी है। पिछले तीन वर्षों से केंद्र सरकार सूचना का अधिकार कानून को नई ताकत देने के नाम पर इसे कमजोर करने का काम कर रही थी। साल 2011 में केंद्रीय सूचना आयोग ने तत्कालीन राष्ट्रपति (प्रतिभा पाटिल) को अपनी संपत्ति का ब्योरा देने का आदेश दिया था। उन्हीं दिनों 2-जी स्पेक्ट्रम के संबंध में तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी (अब राष्ट्रपति) की फाइल टिप्पणी को सरेआम करना पड़ा था। फिर रॉबर्ट वाड्रा की लैंड डील का मामला आरटीआई के माध्यम से उछला।
इन सबका असर सरकार पर दिखाई पड़ा। 15 अक्तूबर, 2011 को केंद्रीय सूचना आयोग के सालाना सम्मलेन में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि अब हमें सूचना के अधिकार कानून पर आलोचनात्मक रुख अपनाना होगा.., आरटीआई का सरकारी विचार-विमर्श की प्रक्रिया पर उल्टा असर नहीं पड़ना चाहिए। फिर अगले साल 12 अक्तूबर, 2012 को मनमोहन सिंह ने कहा कि निजता का उल्लंघन करने वाली बेहूदा और परेशान करने वाली आरटीआई आवेदनों को लेकर चिंता पैदा हो रही है। ठीक इसके बाद ही खबर आई थी कि केंद्र सरकार ने यह फैसला किया है कि वह एक समिति गठित कर यह पता लगाएगी कि सूचना एकत्र करने और देने पर सरकार का कितना खर्च आता है।
इस तरह की बात सूचना के अधिकार अधिनियम की आत्मा के खिलाफ है, क्योंकि इस कानून की धारा 7(3) साफ तौर पर कहती कि सूचना की कॉपी पर खर्च आवेदक को ही वहन करना होगा। साफ है कि दस साल के भीतर ही इसे कमजोर करने की कवायद शुरू हो चुकी है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों के कई फैसलों ने आवेदकों के बीच खलबली मचा दी थी। दो साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला सुनाया था कि हर सूचना आयोग दो-आयुक्तों का पीठ होगा, जिसमें एक हाई कोर्ट के जज होंगे। मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर कोई जज ही होगा। इस आदेश के बाद कई राज्य आयोग का कामकाज बंद हो गया। बाद में खुद सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को 'मिस्टेक ऑफ लॉ' कहकर वापस ले लिया। बिहार सहित कई राज्यों में धारा 20 के तहत लगाए गए दंड की सही तरीके से वसूली नहीं होती, जिसके कारण लोक सूचना पदाधिकारियों का मनोबल बढ़ता जा रहा है और आवेदक भटक रहे हैं। आज दुनिया के लगभग 100 देशों में सूचना का अधिकार कानून लागू है। दक्षिण एशिया में भारत का कानून सबसे कारगर था, क्योंकि खुद कार्यकर्ताओं ने इसकी रचना की थी और केंद्र सरकार ने भी इसे लागू करने में खासी दिलचस्पी दिखाई थी। मगर अब जब सूचना का अधिकार कानून खुद सरकारों के गले की हड्डी बन चुका है, तब कौन बचाए इसे?
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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दस साल में निकला दम - Guest column - LiveHindustan.com जाने-माने ब्रिटिश कवि और स्कॉलर रिचर्ड गारनेट ने एक बार कहा था कि हर परदे की ख्वाहिश होती है कि कोई उसे बेपरदा करे, सिवाय पाखंड के परदे का। | ||||||
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दस साल में निकला दम
दस साल में निकला दम
http://www.livehindustan.com/news/lifestyle/guestcolumn/article1-Well-known-British-poet-scholar-Richard-Garnet-50-62-456122.html
फरजंद अहमद, पूर्व सूचना आयुक्त, बिहार
First Published:12-10-14 09:10 PM
Last Updated:12-10-14 09:10 PM
जाने-माने ब्रिटिश कवि और स्कॉलर रिचर्ड गारनेट ने एक बार कहा था कि हर
परदे की ख्वाहिश होती है कि कोई उसे बेपरदा करे, सिवाय पाखंड के परदे का।
पाखंड का परदा व्यवस्था के चेहरे से उठे या न उठे, मगर सूचना के अधिकार
का इस्तेमाल करने वालों के बीच फैलता खौफ और सरकारी कामकाज में
पारदर्शिता की गारंटी देने वाला सूचना अधिकार कानून खुद पाखंड के परदे के
भीतर दम तोड़ रहा है। आज आरटीआई की दसवीं वर्षगांठ है, मगर पहली बार
केंद्रीय सूचना आयोग में न तो कोई शिकवा-शिकायत करने वाला होगा और न ही
सूचना का अधिकार, यानी सनशाइन कानून पर मंडराते स्याह बादलों पर कोई
चर्चा होगी। केवल बंद कमरे में एक औपचारिकता पूरी की जाएगी, क्योंकि
केंद्रीय सूचना आयोग में फिलहाल कोई मुख्य सूचना आयुक्त नहीं। पहले
राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री इसका उद्घाटन करते थे और सरकार की नजर में इस
कानून की कमजोरियों या उपलब्धि पर बहस की शुरुआत करते थे, लेकिन नई सरकार
को इतनी फुरसत नहीं मिली कि वह मुख्य सूचना आयुक्त नियुक्त कर सके।
जो कानून अब तक जनता के हाथ में एक धारदार हथियार था, प्रजातंत्र के लिए
ऑक्सीजन था, उस हथियार की धार दस वर्षों में ही कुंद हो चुकी है। सरकारें
या प्रशासन हर आवेदक को शक की नजरों से देखते हैं, इसलिए लोक सूचना
पदाधिकारी सूचना देने से कतराते हैं या फिर उन्हें दौड़ाते रहते हैं।
नतीजा यह है कि वादों का अंबार आकाश छू रहा है। आवेदक अपनी अपील लेकर
आयोग का चक्कर काटते-काटते थकते जा रहे हैं। युवा सामाजिक कार्यकर्ता
उत्कर्ष सिन्हा को लगता है कि अब हर आवेदक राग दरबारी का बेबस लंगड़
बनकर रह जाएगा, जिसने पूरी जिंदगी एक दस्तावेज की नकल के लिए गंवा दी थी।
आरटीआई असेसमेंट और एडवोकेसी ग्रुप और समय-सेंटर फॉर इक्विटीज के अनुसार,
आज सूचना आयोगों में करीब दो लाख वाद सुनवाई के लिए तरस रहे हैं। अध्ययन
के अनुसार, मध्य प्रदेश में यदि आज कोई अपील दाखिल करता है, तो 60 साल
बाद उसका नंबर आएगा। वहीं पश्चिम बंगाल में उसे 17 साल, राजस्थान में तीन
साल, असम और केरल में दो साल इंतजार करना होगा। खुद केंद्रीय सूचना आयोग
में 26,115 मामले लंबित हैं।
अध्ययन के अनुसार, सबसे अधिक मामले सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में
लंबित हैं। इनकी संख्या 48,442 है, जबकि महाराष्ट्र सूचना मांगने वालों
की हत्या और उत्पीड़न में पूरे देश में अव्वल नंबर पर है। कॉमनवेल्थ
ह्यूमन राइट इनीशिएटिव के अनुसार, महाराष्ट्र में अब तक 53 आवेदकों पर
जानलेवा हमले हो चुके हैं, जिनमें नौ लोगों की जान जा चुकी है, जबकि
बिहार में छह लोग सूचना मांगने के कारण मारे गए हैं। जाने-माने आरटीआई
एक्टिविस्ट शिव प्रकाश राय (जिन्होंने सूचना मांगने के कारण झूठे मामले
में कई महीने जेल में गुजारे थे) के अनुसार, बिहार में आवेदकों पर अब
हमले कुछ कम इसलिए हो रहे हैं, क्योंकि दहशत के कारण लोग सूचना मांगने के
पहले कई बार सोचते हैं। महाराष्ट्र के बाद गुजरात का नंबर आता है, जहां
34 कार्यकर्ताओं पर हमले हो चुके हैं। उनमें से तीन मारे जा चुके हैं।
मगर उत्तर प्रदेश में सूचना की बदहाली नई मिसाल कायम कर रही है। यहां
फिलहाल नौ सूचना आयुक्त हैं, जिनकी काबिलियत और उदासीनता पर चर्चा चल रही
है। अन्य संस्थानों के साथ-साथ एक्टिविस्ट और सामाजिक कार्यकर्ता उर्वशी
शर्मा ने यूपी के सूचना आयुक्तों पर अक्षमता का आरोप लगाते हुए नौ
आयुक्तों को खुली बहस की चुनौती दी है। सामाजिक कार्यकर्ता, आरटीआई
विशेषज्ञ और 'तहरीर' के संस्थापक अध्यक्ष संजय शर्मा ने भी वर्तमान सूचना
आयुक्तों से एक साथ अकेले या खुली बहस करने की चुनौती दी है। पिछले तीन
वर्षों से केंद्र सरकार सूचना का अधिकार कानून को नई ताकत देने के नाम पर
इसे कमजोर करने का काम कर रही थी। साल 2011 में केंद्रीय सूचना आयोग ने
तत्कालीन राष्ट्रपति (प्रतिभा पाटिल) को अपनी संपत्ति का ब्योरा देने का
आदेश दिया था। उन्हीं दिनों 2-जी स्पेक्ट्रम के संबंध में तत्कालीन वित्त
मंत्री प्रणब मुखर्जी (अब राष्ट्रपति) की फाइल टिप्पणी को सरेआम करना
पड़ा था। फिर रॉबर्ट वाड्रा की लैंड डील का मामला आरटीआई के माध्यम से
उछला।
इन सबका असर सरकार पर दिखाई पड़ा। 15 अक्तूबर, 2011 को केंद्रीय सूचना
आयोग के सालाना सम्मलेन में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था
कि अब हमें सूचना के अधिकार कानून पर आलोचनात्मक रुख अपनाना होगा..,
आरटीआई का सरकारी विचार-विमर्श की प्रक्रिया पर उल्टा असर नहीं पड़ना
चाहिए। फिर अगले साल 12 अक्तूबर, 2012 को मनमोहन सिंह ने कहा कि निजता का
उल्लंघन करने वाली बेहूदा और परेशान करने वाली आरटीआई आवेदनों को लेकर
चिंता पैदा हो रही है। ठीक इसके बाद ही खबर आई थी कि केंद्र सरकार ने यह
फैसला किया है कि वह एक समिति गठित कर यह पता लगाएगी कि सूचना एकत्र करने
और देने पर सरकार का कितना खर्च आता है।
इस तरह की बात सूचना के अधिकार अधिनियम की आत्मा के खिलाफ है, क्योंकि इस
कानून की धारा 7(3) साफ तौर पर कहती कि सूचना की कॉपी पर खर्च आवेदक को
ही वहन करना होगा। साफ है कि दस साल के भीतर ही इसे कमजोर करने की कवायद
शुरू हो चुकी है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों के कई
फैसलों ने आवेदकों के बीच खलबली मचा दी थी। दो साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने
एक फैसला सुनाया था कि हर सूचना आयोग दो-आयुक्तों का पीठ होगा, जिसमें एक
हाई कोर्ट के जज होंगे। मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर कोई जज ही होगा। इस
आदेश के बाद कई राज्य आयोग का कामकाज बंद हो गया। बाद में खुद सुप्रीम
कोर्ट ने इस फैसले को 'मिस्टेक ऑफ लॉ' कहकर वापस ले लिया। बिहार सहित कई
राज्यों में धारा 20 के तहत लगाए गए दंड की सही तरीके से वसूली नहीं
होती, जिसके कारण लोक सूचना पदाधिकारियों का मनोबल बढ़ता जा रहा है और
आवेदक भटक रहे हैं। आज दुनिया के लगभग 100 देशों में सूचना का अधिकार
कानून लागू है। दक्षिण एशिया में भारत का कानून सबसे कारगर था, क्योंकि
खुद कार्यकर्ताओं ने इसकी रचना की थी और केंद्र सरकार ने भी इसे लागू
करने में खासी दिलचस्पी दिखाई थी। मगर अब जब सूचना का अधिकार कानून खुद
सरकारों के गले की हड्डी बन चुका है, तब कौन बचाए इसे?
--
-Sincerely Yours,
Urvashi Sharma
Secretary - YAISHWARYAJ SEVA SANSTHAAN
101,Narayan Tower, Opposite F block Idgah
Rajajipuram,Lucknow-226017,Uttar Pradesh,India
Contact 9369613513
Right to Information Helpline 8081898081
Helpline Against Corruption 9455553838
http://upcpri.blogspot.in/
Note : if you don't want to receive mails from me,kindly inform me so
that i should delete your name from my mailing list.
http://www.livehindustan.com/news/lifestyle/guestcolumn/article1-Well-known-British-poet-scholar-Richard-Garnet-50-62-456122.html
फरजंद अहमद, पूर्व सूचना आयुक्त, बिहार
First Published:12-10-14 09:10 PM
Last Updated:12-10-14 09:10 PM
जाने-माने ब्रिटिश कवि और स्कॉलर रिचर्ड गारनेट ने एक बार कहा था कि हर
परदे की ख्वाहिश होती है कि कोई उसे बेपरदा करे, सिवाय पाखंड के परदे का।
पाखंड का परदा व्यवस्था के चेहरे से उठे या न उठे, मगर सूचना के अधिकार
का इस्तेमाल करने वालों के बीच फैलता खौफ और सरकारी कामकाज में
पारदर्शिता की गारंटी देने वाला सूचना अधिकार कानून खुद पाखंड के परदे के
भीतर दम तोड़ रहा है। आज आरटीआई की दसवीं वर्षगांठ है, मगर पहली बार
केंद्रीय सूचना आयोग में न तो कोई शिकवा-शिकायत करने वाला होगा और न ही
सूचना का अधिकार, यानी सनशाइन कानून पर मंडराते स्याह बादलों पर कोई
चर्चा होगी। केवल बंद कमरे में एक औपचारिकता पूरी की जाएगी, क्योंकि
केंद्रीय सूचना आयोग में फिलहाल कोई मुख्य सूचना आयुक्त नहीं। पहले
राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री इसका उद्घाटन करते थे और सरकार की नजर में इस
कानून की कमजोरियों या उपलब्धि पर बहस की शुरुआत करते थे, लेकिन नई सरकार
को इतनी फुरसत नहीं मिली कि वह मुख्य सूचना आयुक्त नियुक्त कर सके।
जो कानून अब तक जनता के हाथ में एक धारदार हथियार था, प्रजातंत्र के लिए
ऑक्सीजन था, उस हथियार की धार दस वर्षों में ही कुंद हो चुकी है। सरकारें
या प्रशासन हर आवेदक को शक की नजरों से देखते हैं, इसलिए लोक सूचना
पदाधिकारी सूचना देने से कतराते हैं या फिर उन्हें दौड़ाते रहते हैं।
नतीजा यह है कि वादों का अंबार आकाश छू रहा है। आवेदक अपनी अपील लेकर
आयोग का चक्कर काटते-काटते थकते जा रहे हैं। युवा सामाजिक कार्यकर्ता
उत्कर्ष सिन्हा को लगता है कि अब हर आवेदक राग दरबारी का बेबस लंगड़
बनकर रह जाएगा, जिसने पूरी जिंदगी एक दस्तावेज की नकल के लिए गंवा दी थी।
आरटीआई असेसमेंट और एडवोकेसी ग्रुप और समय-सेंटर फॉर इक्विटीज के अनुसार,
आज सूचना आयोगों में करीब दो लाख वाद सुनवाई के लिए तरस रहे हैं। अध्ययन
के अनुसार, मध्य प्रदेश में यदि आज कोई अपील दाखिल करता है, तो 60 साल
बाद उसका नंबर आएगा। वहीं पश्चिम बंगाल में उसे 17 साल, राजस्थान में तीन
साल, असम और केरल में दो साल इंतजार करना होगा। खुद केंद्रीय सूचना आयोग
में 26,115 मामले लंबित हैं।
अध्ययन के अनुसार, सबसे अधिक मामले सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में
लंबित हैं। इनकी संख्या 48,442 है, जबकि महाराष्ट्र सूचना मांगने वालों
की हत्या और उत्पीड़न में पूरे देश में अव्वल नंबर पर है। कॉमनवेल्थ
ह्यूमन राइट इनीशिएटिव के अनुसार, महाराष्ट्र में अब तक 53 आवेदकों पर
जानलेवा हमले हो चुके हैं, जिनमें नौ लोगों की जान जा चुकी है, जबकि
बिहार में छह लोग सूचना मांगने के कारण मारे गए हैं। जाने-माने आरटीआई
एक्टिविस्ट शिव प्रकाश राय (जिन्होंने सूचना मांगने के कारण झूठे मामले
में कई महीने जेल में गुजारे थे) के अनुसार, बिहार में आवेदकों पर अब
हमले कुछ कम इसलिए हो रहे हैं, क्योंकि दहशत के कारण लोग सूचना मांगने के
पहले कई बार सोचते हैं। महाराष्ट्र के बाद गुजरात का नंबर आता है, जहां
34 कार्यकर्ताओं पर हमले हो चुके हैं। उनमें से तीन मारे जा चुके हैं।
मगर उत्तर प्रदेश में सूचना की बदहाली नई मिसाल कायम कर रही है। यहां
फिलहाल नौ सूचना आयुक्त हैं, जिनकी काबिलियत और उदासीनता पर चर्चा चल रही
है। अन्य संस्थानों के साथ-साथ एक्टिविस्ट और सामाजिक कार्यकर्ता उर्वशी
शर्मा ने यूपी के सूचना आयुक्तों पर अक्षमता का आरोप लगाते हुए नौ
आयुक्तों को खुली बहस की चुनौती दी है। सामाजिक कार्यकर्ता, आरटीआई
विशेषज्ञ और 'तहरीर' के संस्थापक अध्यक्ष संजय शर्मा ने भी वर्तमान सूचना
आयुक्तों से एक साथ अकेले या खुली बहस करने की चुनौती दी है। पिछले तीन
वर्षों से केंद्र सरकार सूचना का अधिकार कानून को नई ताकत देने के नाम पर
इसे कमजोर करने का काम कर रही थी। साल 2011 में केंद्रीय सूचना आयोग ने
तत्कालीन राष्ट्रपति (प्रतिभा पाटिल) को अपनी संपत्ति का ब्योरा देने का
आदेश दिया था। उन्हीं दिनों 2-जी स्पेक्ट्रम के संबंध में तत्कालीन वित्त
मंत्री प्रणब मुखर्जी (अब राष्ट्रपति) की फाइल टिप्पणी को सरेआम करना
पड़ा था। फिर रॉबर्ट वाड्रा की लैंड डील का मामला आरटीआई के माध्यम से
उछला।
इन सबका असर सरकार पर दिखाई पड़ा। 15 अक्तूबर, 2011 को केंद्रीय सूचना
आयोग के सालाना सम्मलेन में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था
कि अब हमें सूचना के अधिकार कानून पर आलोचनात्मक रुख अपनाना होगा..,
आरटीआई का सरकारी विचार-विमर्श की प्रक्रिया पर उल्टा असर नहीं पड़ना
चाहिए। फिर अगले साल 12 अक्तूबर, 2012 को मनमोहन सिंह ने कहा कि निजता का
उल्लंघन करने वाली बेहूदा और परेशान करने वाली आरटीआई आवेदनों को लेकर
चिंता पैदा हो रही है। ठीक इसके बाद ही खबर आई थी कि केंद्र सरकार ने यह
फैसला किया है कि वह एक समिति गठित कर यह पता लगाएगी कि सूचना एकत्र करने
और देने पर सरकार का कितना खर्च आता है।
इस तरह की बात सूचना के अधिकार अधिनियम की आत्मा के खिलाफ है, क्योंकि इस
कानून की धारा 7(3) साफ तौर पर कहती कि सूचना की कॉपी पर खर्च आवेदक को
ही वहन करना होगा। साफ है कि दस साल के भीतर ही इसे कमजोर करने की कवायद
शुरू हो चुकी है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों के कई
फैसलों ने आवेदकों के बीच खलबली मचा दी थी। दो साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने
एक फैसला सुनाया था कि हर सूचना आयोग दो-आयुक्तों का पीठ होगा, जिसमें एक
हाई कोर्ट के जज होंगे। मुख्य सूचना आयुक्त के पद पर कोई जज ही होगा। इस
आदेश के बाद कई राज्य आयोग का कामकाज बंद हो गया। बाद में खुद सुप्रीम
कोर्ट ने इस फैसले को 'मिस्टेक ऑफ लॉ' कहकर वापस ले लिया। बिहार सहित कई
राज्यों में धारा 20 के तहत लगाए गए दंड की सही तरीके से वसूली नहीं
होती, जिसके कारण लोक सूचना पदाधिकारियों का मनोबल बढ़ता जा रहा है और
आवेदक भटक रहे हैं। आज दुनिया के लगभग 100 देशों में सूचना का अधिकार
कानून लागू है। दक्षिण एशिया में भारत का कानून सबसे कारगर था, क्योंकि
खुद कार्यकर्ताओं ने इसकी रचना की थी और केंद्र सरकार ने भी इसे लागू
करने में खासी दिलचस्पी दिखाई थी। मगर अब जब सूचना का अधिकार कानून खुद
सरकारों के गले की हड्डी बन चुका है, तब कौन बचाए इसे?
--
-Sincerely Yours,
Urvashi Sharma
Secretary - YAISHWARYAJ SEVA SANSTHAAN
101,Narayan Tower, Opposite F block Idgah
Rajajipuram,Lucknow-226017,Uttar Pradesh,India
Contact 9369613513
Right to Information Helpline 8081898081
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आरटीआई एक्ट की नौवीं सालगिरह पर जनसुनवाई का आयोजन
http://www.instantkhabar.com/lucknow/item/17779-lucknow.html
आरटीआई एक्ट की नौवीं सालगिरह पर जनसुनवाई का आयोजन
Written by Editor
Sunday, 12 October 2014 20:21
आरटीआई एक्ट की नौवीं सालगिरह पर जनसुनवाई का आयोजन
लखनऊ: आज आरटीआई एक्ट की नौवीं सालगिरह पर राजधानी लखनऊ के लक्ष्मण
मेला मैदान धरना स्थल पर 'येश्वर्याज सेवा संस्थान' द्वारा जनसुनवाई और
जनजागरूकता कैंप का आयोजन किया गया तो वही लोक जीवन में पारदर्शिता
संवर्धन, जबाबदेही निर्धारण और आमजन के मानवाधिकारों के संरक्षण के
हितार्थ उत्तर प्रदेश में जमीनी स्तर पर
कार्यशील संस्था 'तहरीर' द्वारा उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग के
निराशाजनक प्रदर्शन के विरोध में धरना और यूपी के हालिया कार्यरत 9
सूचना आयुक्तों पर अक्षमता का आरोप लगाते हुए उनको कैमरे के सामने एक्ट
पर खुली बहस की आरटीआई विशेषज्ञ ई० संजय शर्मा द्वारा दी गयी चुनौती के
कार्यक्रम का आयोजन एक्शन ग्रुप फॉर राइट टु इनफार्मेशन , आरटीआई
कॉउंसिल ऑफ़ यूपी , ट्रैप संस्था अलीगढ , सूचना का अधिकार कार्यकर्ता
एसोसिएशन, पीपल्स फोरम, मानव विकास सेवा समिति मुरादाबाद , जन सूचना
अधिकार जागरूकता मंच,भ्रष्टाचार हटाओ देश बचाओ मंच , एसआरपीडी मेमोरियल
समाज सेवा संस्थान , आल इण्डिया शैडयूल्ड कास्ट्स एंड शैडयूल्ड ट्राइब्स
एम्पलाइज वेलफेयर एसोसिएशन, भागीदारी मंच, सार्वजनिक जबाबदेही भारत
निर्माण मंच आदि संगठनों के साथ संयुक्त रूप से किया गया l कार्यक्रम
की अध्यक्षता तहरीर संस्था के संस्थापक और अध्यक्ष ईo संजय शर्मा ने
की l संजय शर्मा की गिनती देश के मूर्धन्य आरटीआई विशेषज्ञों में होती है
और उत्तर प्रदेश में आरटीआई के क्षेत्र में उनकी विशेषज्ञता का लोहा
प्रदेश के सभी आरटीआई कार्यकर्ता मानते हैं lकार्यक्रम में प्रतिभागी
संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ साथ उत्तर प्रदेश के सभी जिलों के
सामाजिक कार्यकर्ताओं ने प्रतिभाग किया l कैंप में आरटीआई विशेषज्ञों ने
लोगों को आरटीआई के जनोपयोगी प्रयोग करने के लिए प्रशिक्षित किया तो वही
जनसुनवाई में जनसूचना अधिकारी, अपीलीय प्राधिकारी और सूचना आयोग की
आरटीआई एक्ट के क्रियान्वयन के प्रति उदासीनता से व्यथित लोगों ने अपनी
समस्याएं
आरटीआई विशेषज्ञों के साथ साझा कर समस्याओ के समाधान के सम्बन्ध
में मार्गदर्शन प्राप्त किया l संयुक्त कार्यक्रम के प्रतिभागियों ने
अपनी मांगों के सम्बन्ध में उत्तर प्रदेश के राज्यपाल को सम्बोधित एक
मांगपत्र हस्ताक्षरित कर प्रेषित किया l कार्यक्रम में कामनवेल्थ
ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव नई दिल्ली की ओर से येश्वर्याज को निःशुल्क
उपलब्ध कराई गयी आरटीआई गाइड का भी निःशुल्क वितरण किया गया l
इस सम्बन्ध में बात करते हुए संजय शर्मा ने बताया कि लोक जीवन में
पारदर्शिता संवर्धन, जबाबदेही निर्धारण और आमजन के मानवाधिकारों के
संरक्षण के हितार्थ उत्तर प्रदेश में जमीनी स्तर पर कार्यशील संस्था
'तहरीर' को प्राप्त प्रमाणों के आधार पर उन्हें यह कहने में कोई
गुरेज नहीं है कि सूचना आयुक्तों की अक्षमता के कारण ही आरटीआई के तहत
सूचना दिलाने बाली संस्था सूचना आयोग ही आज सूचना दिलाने के मार्ग की
सबसे बड़ी वाधा बन गयी है l संजय ने कहा कि इन सूचना आयुक्तों की
पोल-पट्टी खोलकर इनकी हकीकत संसार के सामने लाने के लिए ही उन्होंने यूपी
के हालिया कार्यरत 9 सूचना आयुक्तों पर अक्षमता का आरोप लगाते हुए उनको
कैमरे के सामने एक्ट पर खुली बहस की चुनौती दी है और कहा कि इन
आयुक्तों से हार जाने की दशा में उन्होंने इन आयुक्तों द्वारा मुक़र्रर
सजाये मौत तक की हर सजा को स्वीकारने का वादा भी किया है l संजय ने बताया
कि चुनौती के सम्बन्ध में उन्होंने राज्य सूचना आयोग को 2 ई-मेल दिनांक
09-10-14 और 10-10-14 को प्रेषित करने के साथ साथ उत्तर प्रदेश के राज्य
सूचना आयोग के सचिव के कार्यालय में दिनांक 10-10-14 को एक तीन पेज का
चुनौती पत्र व्यक्तिगत रूप से आयोग जाकर भी प्राप्त करा दिया है l संजय
ने बताया कि उनके आंकलन के अनुसार उत्तर प्रदेश के वर्तमान सूचना
आयुक्तों में से कोई भी सूचना आयुक्त पद के लिए निर्धारित योग्यताओं में
से 10% भी योग्यता धारित नहीं करते है l संजय बताते हैं कि प्रदेश के
सूचना आयुक्त का पद मुख्य सचिव के समकक्ष है और एक सवाल उठाते हैं कि
क्या यह माना जा सकता है कि जिस कार्यालय में योग्यतानुसार नियुक्त 9
मुख्य सचिव कार्यरत हों वहां ऐसी भयंकर बदहाली व्याप्त हो जबकि मात्र 1
मुख्य सचिव पूरा सूबा संभालता है ? इस सबाल का जबाब देते हुए संजय कहते
हैं कि ऐसा इसलिए है क्योंकि वर्तमान में नियुक्त सभी सूचना आयुक्त
नितांत अयोग्य हैं और वे मात्र अपने राजनैतिक संबंधों के चलते ही यह
महत्वपूर्ण पद पा गए हैं l बौद्धिक असम्बेदनशीलता , अक्षमता और अपने
राजनैतिक आकाओं के दबाब के चलते ही वे अपने पद की गरिमा के अनुकूल कार्य
नहीं कर पा रहे हैं और इस उच्च पद को कलंकित कर रहे हैं l
आरटीआई विशेषज्ञ संजय शर्मा ने बताया कि उनकी खुली बहस की चुनौती
पर आज यूपी का कोई भी सूचना आयुक्तसामने नहीं आया l संजय ने अब अयोग्य
सूचनाआयुक्तों की नियुक्तियां रद्द कराने को उच्च न्यायालय में याचिका
दायर करने का निर्णय लिया है l
आरटीआई एक्टिविस्ट उर्वशी शर्मा के अनुसार उत्तर प्रदेश सूचना आयोग
स्वयं ही आरटीआई एक्ट का विनाश करने में लगा है l उर्वशी ने कहा कि यह
दुर्भाग्यपूर्ण है कि नौ सूचना आयुक्त नियुक्त होने के बाबजूद आयोग में
55000 से अधिक वाद लंबित हैं जो पूरे देश के सभी सूचना आयोगों में
सर्वाधिक हैं l नौ सालों में आयोग की नियमावली तक नहीं लागू हो पाई है और
आयोग का हर कार्मिक मनमाने रूप से स्व घोषित नियमों के अनुसार कार्य कर
रहा है जिसके कारण उत्तर प्रदेश में लागू होने के 9 वर्षों में हीसूचना
का अधिकार लगभग मृतप्राय हो चुका है l
यूपी के राज्य सूचना आयोग के खिलाफ लामबंद हुए संगठनों ने एक सुर
से सूचना आयुक्तों द्वारा आयुक्त पद ग्रहण करने के बाद से अब तक की अवधि
में चल-अचल सम्पत्तियों में किये गए निवेशों को सार्वजनिक कराने, यूपी के
अक्षम सूचना आयुक्तों को तत्काल निलंबित कर के उनके अब तक के कार्यों की
विधिक समीक्षा कराकर इनके विरुद्ध कार्यवाही कराने , सूचना आयुक्तों के
रिक्त पदों पर पद की योग्यतानुसार पारदर्शी प्रक्रिया से सूचना आयुक्तों
की नियुक्ति कराने , 55000 से अधिक लम्वित वादों की विशेष सुनवाईयां
शनिवार और रविवार के अवकाश के दिनों में कराने, आयोग की नियमावली तत्काल
लागू कराने,आयोग में नयी अपीलों और शिकायतों के प्राप्त होने के 1
सप्ताह के अंदर प्रथम सुनवाई कराने, आदेशों की नक़ल आदेश होने के 1 सप्ताह
के अंदर आयोग की वेबसाइट पर अपलोड कराने, सूचना आयोग में रिश्वत मांगे
जाने की शिकायतें करने के लिए एक सतर्कता अधिकारी नियुक्त कराने , अपीलों
और शिकायतों की सुनवाई की अगली तारीखें अधिकतम 30 दिन बाद की देने,सूचना
आयुक्तों और नागरिकों/ आरटीआई कार्यकर्ताओं के पारस्परिक संवाद की
प्रणाली विकसित करके प्रतिमाह एक बैठक कराने, आरटीआई कार्यकर्ताओं को
जनहित के लिए सूचना मांगने को प्रेरित करने का तंत्र विकसित कराने ,
सूचना आयोग में वादियों के मानवाधिकारों को संरक्षित रखने हेतु उनको खड़ा
कर के सुनवाई करने के स्थान पर कुर्सी पर बैठाकर सुनवाई कराने ,
वादियों को झूठे मामलों में फसाए जाने की स्थिति में अपना समुचित वचाव
करने के लिए वादी द्वारा मांगे जाने पर आयोग की सीसीटीवी फुटेज तत्काल
उपलब्ध कराने, आयुक्तों द्वारा पारित आदेश लोकप्राधिकारियों की
सुविधानुसार बदलने की प्रवृत्ति रोकने के लिए आयुक्त के स्टेनो की
शॉर्टहैंड बुक पर पेंसिल के स्थान पर पेन से लिखना अनिवार्य करने तथा
शॉर्टहैंड बुक पर उपस्थित वादी और प्रतिवादी के हस्ताक्षर कराने ,
आयुक्तों द्वारा दण्डादेशों को बापस लेने के असंवैधानिक कारनामों पर
तत्काल रोक लगाने, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न रोकथाम कानून के तहत तत्काल
समिति बनाकर इस समिति द्वारा अब तक सूचना आयुक्तों के विरुद्ध महिलाओं
द्वारा की गयी उत्पीड़न की शिकायतों की तत्काल जांच कराने, आयोग के
कार्यालयीन कार्यों की लिखित प्रक्रिया बनाये जाने, आयोग के द्वारा
सम्पादित कार्यों की मासिक रिपोर्ट तैयार कराकर स्वतः ही सार्वजनिक
कराने आदि मांगों के साथ धरना देते हुए राज्यपाल को एक ज्ञापन भी प्रेषित
किया l
कार्यक्रम का समापन करते हुए येश्वर्याज सेवा संस्थान की सचिव उर्वशी
शर्मा ने सभी आगंतुकों को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए 3 माह में उनकी
मांगें न माने जाने पर प्रदेश के अन्य सभी संगठनों को साथ लेकर सूचना
आयोग और प्रदेश सरकार के खिलाफ वृहद स्तर पर उग्र आंदोलन करने को तैयार
रहने का आव्हान किया l
खबर की श्रेणी लखनऊ
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urvashi
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-Sincerely Yours,
Urvashi Sharma
Secretary - YAISHWARYAJ SEVA SANSTHAAN
101,Narayan Tower, Opposite F block Idgah
Rajajipuram,Lucknow-226017,Uttar Pradesh,India
Contact 9369613513
Right to Information Helpline 8081898081
Helpline Against Corruption 9455553838
http://upcpri.blogspot.in/
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आरटीआई एक्ट की नौवीं सालगिरह पर जनसुनवाई का आयोजन
Written by Editor
Sunday, 12 October 2014 20:21
आरटीआई एक्ट की नौवीं सालगिरह पर जनसुनवाई का आयोजन
लखनऊ: आज आरटीआई एक्ट की नौवीं सालगिरह पर राजधानी लखनऊ के लक्ष्मण
मेला मैदान धरना स्थल पर 'येश्वर्याज सेवा संस्थान' द्वारा जनसुनवाई और
जनजागरूकता कैंप का आयोजन किया गया तो वही लोक जीवन में पारदर्शिता
संवर्धन, जबाबदेही निर्धारण और आमजन के मानवाधिकारों के संरक्षण के
हितार्थ उत्तर प्रदेश में जमीनी स्तर पर
कार्यशील संस्था 'तहरीर' द्वारा उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग के
निराशाजनक प्रदर्शन के विरोध में धरना और यूपी के हालिया कार्यरत 9
सूचना आयुक्तों पर अक्षमता का आरोप लगाते हुए उनको कैमरे के सामने एक्ट
पर खुली बहस की आरटीआई विशेषज्ञ ई० संजय शर्मा द्वारा दी गयी चुनौती के
कार्यक्रम का आयोजन एक्शन ग्रुप फॉर राइट टु इनफार्मेशन , आरटीआई
कॉउंसिल ऑफ़ यूपी , ट्रैप संस्था अलीगढ , सूचना का अधिकार कार्यकर्ता
एसोसिएशन, पीपल्स फोरम, मानव विकास सेवा समिति मुरादाबाद , जन सूचना
अधिकार जागरूकता मंच,भ्रष्टाचार हटाओ देश बचाओ मंच , एसआरपीडी मेमोरियल
समाज सेवा संस्थान , आल इण्डिया शैडयूल्ड कास्ट्स एंड शैडयूल्ड ट्राइब्स
एम्पलाइज वेलफेयर एसोसिएशन, भागीदारी मंच, सार्वजनिक जबाबदेही भारत
निर्माण मंच आदि संगठनों के साथ संयुक्त रूप से किया गया l कार्यक्रम
की अध्यक्षता तहरीर संस्था के संस्थापक और अध्यक्ष ईo संजय शर्मा ने
की l संजय शर्मा की गिनती देश के मूर्धन्य आरटीआई विशेषज्ञों में होती है
और उत्तर प्रदेश में आरटीआई के क्षेत्र में उनकी विशेषज्ञता का लोहा
प्रदेश के सभी आरटीआई कार्यकर्ता मानते हैं lकार्यक्रम में प्रतिभागी
संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ साथ उत्तर प्रदेश के सभी जिलों के
सामाजिक कार्यकर्ताओं ने प्रतिभाग किया l कैंप में आरटीआई विशेषज्ञों ने
लोगों को आरटीआई के जनोपयोगी प्रयोग करने के लिए प्रशिक्षित किया तो वही
जनसुनवाई में जनसूचना अधिकारी, अपीलीय प्राधिकारी और सूचना आयोग की
आरटीआई एक्ट के क्रियान्वयन के प्रति उदासीनता से व्यथित लोगों ने अपनी
समस्याएं
आरटीआई विशेषज्ञों के साथ साझा कर समस्याओ के समाधान के सम्बन्ध
में मार्गदर्शन प्राप्त किया l संयुक्त कार्यक्रम के प्रतिभागियों ने
अपनी मांगों के सम्बन्ध में उत्तर प्रदेश के राज्यपाल को सम्बोधित एक
मांगपत्र हस्ताक्षरित कर प्रेषित किया l कार्यक्रम में कामनवेल्थ
ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव नई दिल्ली की ओर से येश्वर्याज को निःशुल्क
उपलब्ध कराई गयी आरटीआई गाइड का भी निःशुल्क वितरण किया गया l
इस सम्बन्ध में बात करते हुए संजय शर्मा ने बताया कि लोक जीवन में
पारदर्शिता संवर्धन, जबाबदेही निर्धारण और आमजन के मानवाधिकारों के
संरक्षण के हितार्थ उत्तर प्रदेश में जमीनी स्तर पर कार्यशील संस्था
'तहरीर' को प्राप्त प्रमाणों के आधार पर उन्हें यह कहने में कोई
गुरेज नहीं है कि सूचना आयुक्तों की अक्षमता के कारण ही आरटीआई के तहत
सूचना दिलाने बाली संस्था सूचना आयोग ही आज सूचना दिलाने के मार्ग की
सबसे बड़ी वाधा बन गयी है l संजय ने कहा कि इन सूचना आयुक्तों की
पोल-पट्टी खोलकर इनकी हकीकत संसार के सामने लाने के लिए ही उन्होंने यूपी
के हालिया कार्यरत 9 सूचना आयुक्तों पर अक्षमता का आरोप लगाते हुए उनको
कैमरे के सामने एक्ट पर खुली बहस की चुनौती दी है और कहा कि इन
आयुक्तों से हार जाने की दशा में उन्होंने इन आयुक्तों द्वारा मुक़र्रर
सजाये मौत तक की हर सजा को स्वीकारने का वादा भी किया है l संजय ने बताया
कि चुनौती के सम्बन्ध में उन्होंने राज्य सूचना आयोग को 2 ई-मेल दिनांक
09-10-14 और 10-10-14 को प्रेषित करने के साथ साथ उत्तर प्रदेश के राज्य
सूचना आयोग के सचिव के कार्यालय में दिनांक 10-10-14 को एक तीन पेज का
चुनौती पत्र व्यक्तिगत रूप से आयोग जाकर भी प्राप्त करा दिया है l संजय
ने बताया कि उनके आंकलन के अनुसार उत्तर प्रदेश के वर्तमान सूचना
आयुक्तों में से कोई भी सूचना आयुक्त पद के लिए निर्धारित योग्यताओं में
से 10% भी योग्यता धारित नहीं करते है l संजय बताते हैं कि प्रदेश के
सूचना आयुक्त का पद मुख्य सचिव के समकक्ष है और एक सवाल उठाते हैं कि
क्या यह माना जा सकता है कि जिस कार्यालय में योग्यतानुसार नियुक्त 9
मुख्य सचिव कार्यरत हों वहां ऐसी भयंकर बदहाली व्याप्त हो जबकि मात्र 1
मुख्य सचिव पूरा सूबा संभालता है ? इस सबाल का जबाब देते हुए संजय कहते
हैं कि ऐसा इसलिए है क्योंकि वर्तमान में नियुक्त सभी सूचना आयुक्त
नितांत अयोग्य हैं और वे मात्र अपने राजनैतिक संबंधों के चलते ही यह
महत्वपूर्ण पद पा गए हैं l बौद्धिक असम्बेदनशीलता , अक्षमता और अपने
राजनैतिक आकाओं के दबाब के चलते ही वे अपने पद की गरिमा के अनुकूल कार्य
नहीं कर पा रहे हैं और इस उच्च पद को कलंकित कर रहे हैं l
आरटीआई विशेषज्ञ संजय शर्मा ने बताया कि उनकी खुली बहस की चुनौती
पर आज यूपी का कोई भी सूचना आयुक्तसामने नहीं आया l संजय ने अब अयोग्य
सूचनाआयुक्तों की नियुक्तियां रद्द कराने को उच्च न्यायालय में याचिका
दायर करने का निर्णय लिया है l
आरटीआई एक्टिविस्ट उर्वशी शर्मा के अनुसार उत्तर प्रदेश सूचना आयोग
स्वयं ही आरटीआई एक्ट का विनाश करने में लगा है l उर्वशी ने कहा कि यह
दुर्भाग्यपूर्ण है कि नौ सूचना आयुक्त नियुक्त होने के बाबजूद आयोग में
55000 से अधिक वाद लंबित हैं जो पूरे देश के सभी सूचना आयोगों में
सर्वाधिक हैं l नौ सालों में आयोग की नियमावली तक नहीं लागू हो पाई है और
आयोग का हर कार्मिक मनमाने रूप से स्व घोषित नियमों के अनुसार कार्य कर
रहा है जिसके कारण उत्तर प्रदेश में लागू होने के 9 वर्षों में हीसूचना
का अधिकार लगभग मृतप्राय हो चुका है l
यूपी के राज्य सूचना आयोग के खिलाफ लामबंद हुए संगठनों ने एक सुर
से सूचना आयुक्तों द्वारा आयुक्त पद ग्रहण करने के बाद से अब तक की अवधि
में चल-अचल सम्पत्तियों में किये गए निवेशों को सार्वजनिक कराने, यूपी के
अक्षम सूचना आयुक्तों को तत्काल निलंबित कर के उनके अब तक के कार्यों की
विधिक समीक्षा कराकर इनके विरुद्ध कार्यवाही कराने , सूचना आयुक्तों के
रिक्त पदों पर पद की योग्यतानुसार पारदर्शी प्रक्रिया से सूचना आयुक्तों
की नियुक्ति कराने , 55000 से अधिक लम्वित वादों की विशेष सुनवाईयां
शनिवार और रविवार के अवकाश के दिनों में कराने, आयोग की नियमावली तत्काल
लागू कराने,आयोग में नयी अपीलों और शिकायतों के प्राप्त होने के 1
सप्ताह के अंदर प्रथम सुनवाई कराने, आदेशों की नक़ल आदेश होने के 1 सप्ताह
के अंदर आयोग की वेबसाइट पर अपलोड कराने, सूचना आयोग में रिश्वत मांगे
जाने की शिकायतें करने के लिए एक सतर्कता अधिकारी नियुक्त कराने , अपीलों
और शिकायतों की सुनवाई की अगली तारीखें अधिकतम 30 दिन बाद की देने,सूचना
आयुक्तों और नागरिकों/ आरटीआई कार्यकर्ताओं के पारस्परिक संवाद की
प्रणाली विकसित करके प्रतिमाह एक बैठक कराने, आरटीआई कार्यकर्ताओं को
जनहित के लिए सूचना मांगने को प्रेरित करने का तंत्र विकसित कराने ,
सूचना आयोग में वादियों के मानवाधिकारों को संरक्षित रखने हेतु उनको खड़ा
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वादियों को झूठे मामलों में फसाए जाने की स्थिति में अपना समुचित वचाव
करने के लिए वादी द्वारा मांगे जाने पर आयोग की सीसीटीवी फुटेज तत्काल
उपलब्ध कराने, आयुक्तों द्वारा पारित आदेश लोकप्राधिकारियों की
सुविधानुसार बदलने की प्रवृत्ति रोकने के लिए आयुक्त के स्टेनो की
शॉर्टहैंड बुक पर पेंसिल के स्थान पर पेन से लिखना अनिवार्य करने तथा
शॉर्टहैंड बुक पर उपस्थित वादी और प्रतिवादी के हस्ताक्षर कराने ,
आयुक्तों द्वारा दण्डादेशों को बापस लेने के असंवैधानिक कारनामों पर
तत्काल रोक लगाने, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न रोकथाम कानून के तहत तत्काल
समिति बनाकर इस समिति द्वारा अब तक सूचना आयुक्तों के विरुद्ध महिलाओं
द्वारा की गयी उत्पीड़न की शिकायतों की तत्काल जांच कराने, आयोग के
कार्यालयीन कार्यों की लिखित प्रक्रिया बनाये जाने, आयोग के द्वारा
सम्पादित कार्यों की मासिक रिपोर्ट तैयार कराकर स्वतः ही सार्वजनिक
कराने आदि मांगों के साथ धरना देते हुए राज्यपाल को एक ज्ञापन भी प्रेषित
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कार्यक्रम का समापन करते हुए येश्वर्याज सेवा संस्थान की सचिव उर्वशी
शर्मा ने सभी आगंतुकों को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए 3 माह में उनकी
मांगें न माने जाने पर प्रदेश के अन्य सभी संगठनों को साथ लेकर सूचना
आयोग और प्रदेश सरकार के खिलाफ वृहद स्तर पर उग्र आंदोलन करने को तैयार
रहने का आव्हान किया l
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